Samajwadi Party: पश्चिमी यूपी से उठी सपा मे विद्रोह की लहर पहुंचेगी कहां तक?
पश्चिमी यूपी से शुरू हुआ पार्टी में नेताओं के इस्तीफों का सिलसिला लगातार बढता ही जा रहा है। इसे सीधे अर्थाे में पार्टी नेतृत्व के खिलाफ उपजा विद्रोह कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
Lucknow: उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में विद्रोह की लहर कहां तक पहुंचेगी? इसे लेकर पार्टी हाईकमान के माथे पर चिंता की सिलवटें साफ देखी जा सकती है। समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक मो आजम खां के जेल में होने को लेकर पार्टी के अंदर विद्रोह की चिंगारी थमने का नाम नहीं ले रही है।
पश्चिमी यूपी से शुरू हुआ पार्टी में नेताओं के इस्तीफों का सिलसिला लगातार बढता ही जा रहा है। इसे सीधे अर्थाे में पार्टी नेतृत्व के खिलाफ उपजा विद्रोह कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। उधर जयंत चौधरी की आजम खान के बेटे अब्दुल्ला से मुलाकात भी चिंता का सबब है। ये बात अलग है कि इस क्षेत्र में सपा इतनी ताकतवर नहीं है जितनी मध्य और पूर्वांचल मे मजबूत है।
इसी कड़ी में मुलायम सिंह यूथ बिग्रेड के जिला उपाध्यक्ष अदनान चौधरी का भी नाम जुड़ गया है। उन्होंने भी अखिलेश यादव पर आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया। हाल ही में सपा लोहिया वाहिनी के नवीन शर्मा ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। उससे पहले कासिम राईन, युवजन सभा के नूरपुर ब्लॉक अध्यक्ष मोहम्मद हमजा शेख और दर्जा प्राप्त पूर्व राज्यमंत्री इरशाद खान भी सपा से इस्तीफा दे चुके हैं।
इस हफ्ते कुछ और नेता समाजवादी पार्टी से किनारा करने की तैयारी में है। विशेष बात यह है कि अब तक जिन नेताओं ने पार्टी से किनारा किया है उन सभी ने अपनी नाराजगी की वजह पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को ही माना है।
इसकी शुरुआत रामपुर से हुई जहां पूर्व मंत्री आजम खां के समर्थन में उनके मीडिया प्रभारी ने अखिलेश यादव के प्रति अपनी नाराजगी जताते हुए जब कहा कि अखिलेश यादव एक बार भी आजम खां से मिलने जेल नहीं पहुंचे और न ही उन्होंने मुस्लिम समाज के आगे बढकर कोई काम किया है। वह अपने बयान में अखिलेश यादव पर मुसलमानों की अंदेखी करने का सीधा आरोप लगाते हुए कह चुके हैं कि पार्टी में दरी बिछाने से लेकर अन्य सभी काम मुसलमान करते है और इसके बदले उन्हें क्या मिल रहा है।
इस हफ्ते कुछ और नेता समाजवादी पार्टी से किनारा करने की तैयारी में है। विशेष बात यह है कि अब तक जिन नेताओं ने पार्टी से किनारा किया है उन सभी ने अपनी नाराजगी की वजह पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को ही माना है।
मुस्लिम नेताओं की अपने ही पार्टी के प्रति नाराजगी को लेकर राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा चल रही है कि 2024 में मुसलमान मतदाता किसके साथ जाएगा।
कांग्रेस मुस्लिम मतदाताओं की पहली और स्वाभाविक पसंद है लेकिन उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का समर्थन तभी संभव है जब उसके साथ अन्य वर्ग का मतदाता भी जुड़ जाए । फिलहाल ऐसा होता दिख नहीं रहा है। बहुजन समाज पार्टी के साथ दलित मतदाता जुड़ा हुआ है लेकिन मुसलमान स्वाभाविक रूप से इसके साथ जुड़ने को फिलहाल तैयार नहीं है।
विधानसभा चुनाव में हुई करारी पराजय के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने हार की जिम्मेदारी मुसलमानों के सर थोप दी थी। जबकि मुसलमान अब बदली स्थितियों में बसपा और भाजपा में बहुत ज्यादा अंतर नहीं देखते। तो क्या मुस्लिम मतदाता असदुद्दीन ओवैसी के साथ भी जा सकता है ।
इससे साफ है कि तमाम शिकवा शिकायतों के बावजूद मुस्लिम मतदाताओं के बीच अभी भी समाजवादी पार्टी का कोई विकल्प नहीं है। लेकिन किसी भी पार्टी के लिए अपने ही नेताओ व मतदाताओं की नाराज़गी अच्छा संकेत नही होती है।