लखनऊ : पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। अंतिम संस्कार में अब गोबरी का प्रयोग तेजी से होने लगा है। गोबरी का निर्माण गोबर से किया जा रहा है। इसको गोकाष्ठ भी कहा जाता है। देश की कई गोशालाओ में गोकाष्ठ तैयार करने की मशीने स्थापित की गयी हैं। इनमे गोबर को डाला जाता है जो लकड़ी के टुकड़े के आकार में बाहर आता है। इसको १५ दिन तक सुखाया जाता है और गोबरी यानी गोकाष्ठ जलाने के लिए तैयार हो जाता है। चिटा में गोकाष्ठ का प्रयोग देश के कई हिस्सों में हो रहा है।
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सिलीगुड़ी में श्याम मईया का अभिनव प्रयोग
सिलीगुड़ी में एक समाजसेवी श्याम मईया हैं जो बीते 20-25 वर्षों में अब-तक तकरीबन 1400 मृत शरीर का दाह-संस्कार करवा चुके हैं। उन्होंने समाज को एकबार फिर नयी राह दिखा दी है। श्री मईया गोबर से बने गोकाष्ठ (कंडो और गोयठा) से चिता जलाकर पूरे उत्तर बंगाल में इतिहास कायम कर रहे हैं।
गोकाष्ठ से अंतिम संस्कार
अभी हाल ही में इस इतिहास का गवाह बने स्वर्गीय महेंद्र अग्रवाल के परिवार वाले और सिलीगुड़ी के सैकड़ों मारवाड़ी समाज के लोग। वह बताते हैं कि श्री मईया ने स्थानीय पांच नंबर वार्ड के नूतन पाड़ा स्थित श्मशान घाट ‘रामघाट’ में लकड़ी के जगह गोकाष्ठ से चिता सजायी। इस पर स्थानीय आश्रमपाड़ा निवासी स्वर्गीय महेंद्र अग्रवाल (इलामवाले) का विधिवत रुप से दाह-संस्कार करवाया। इस दौरान लकड़ी का कोई इस्तेमाल नहीं हुआ और घी भी काफी मामूली मात्रा में इस्तेमाल हुआ.
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कैसे बनती है गोकाष्ठ
गोकाष्ठ बनाने में गाय के गोबर के अलावा पाट वाली संठी, पुआल व बेंत का इस्तेमाल किया जाता है। पुआल की आंटी पर गोबर का लेप चढ़ाकर लकड़ी के सिल्ली का रुप दिया जाता है। इसके अलावा कई संठी या बेंतों को बांधकर उसपर भी गोबर का लेप चढ़ा कर कड़ी धूप में सुखा दिया जाता है। सूखने के बाद यही गोकाष्ठ बन जाता है। इसके अलावा गोयठा भी बनवाया जाता है। चिता जलाने में गोयठा का भी इस्तेमाल होता है।
ऐसे मिली प्रेरणा
श्याम मइया की माने तो जयपुर, कोलकाता समेत देश भर में कई बड़े शहरों में चिता जलाने के लिए इसी विधि का इस्तेमाल शुरु हो चुका है। कुछ महीनों पहले सोशल मीडिया पर गोकाष्ठ से बने चिता और दाह-संस्कार की वीडियो देखकर प्रेरणा जागृत हुई। वह बताते हैं कि इसके लिए कई शहरों का दौरा कर सर्वे किया और विस्तृत रुप से इसका अध्ययन भी किया। गोकाष्ठ की पूरी जानकारी लेने के बाद समाज के कई लोगों से इस पर चर्चा भी की। सबों ने इसके लिए प्रोत्साहित किया। पूरे समाज की रजामंदी के बाद उन्होंने गोकाष्ठ का निर्माण करने में दिन-रात एक कर दिया।
कई ग्रामीण जुटे रोजगार में
श्याम मईंया ने बताया कि कई महीनों तक गोकाष्ठ के चिते का सर्वे और अध्ययन करने के बाद स्थानीय फूलबाड़ी क्षेत्र के बोर्डर इलाके के कुछ ग्रामीण को समझा-बुझाकर इस रोजगार को शुरू करने के लिए तैयार किया। गोकाष्ठ बनाने के लिए पहले एक ग्रामीण परिवार को उन्होंने खुद प्रशिक्षत किया। आस-पास के कई ग्रामीण भी इस रोजगार से जुड़ने लगे हैं। अब जैसे-जैसे चिता के लिए गोकाष्ठ की मांग बढ़ेगी, वैसे-वैसे ग्रामीणों का भी रोजगार बढ़ेगा। अब श्री मईंया इस प्रोजेक्ट को और विस्तृत रूप देने की भी योजना बना रहे हैं।
गोशाला कमेटी भी सक्रिय
श्री दार्जिलिंग-सिलीगुड़ी गोशाला कमेटी ने भी गोकाष्ठ प्रोजेक्ट स्थापित करने हेतु कवायद शुरु कर दी है। कमेटी के सचिव बनवारी लाल करनानी के अनुसार इस प्रोजेक्ट के तहत गोकाष्ठ हाथ से नहीं बल्कि अत्याधुनिक मशीन से निर्मित किया जायेगा। इसके लिए गुजरात व हरियाणा की कंपनियों से संपर्क भी साधा जा रहा है। मशीनों के खरीदारी होते ही बहुत जल्द गोशाला में गोकाष्ठ बनाने का काम शुरु कर दिया जायेगा। श्री करनानी का कहना है कि इससे कुछ लोगों को रोजगार का अवसर मिलेगा और गोशाला की आमदनी में काफी हद तक इजाफा भी होगी, जो गोपालन में ही खर्च होगा. साथ ही गोकाष्ठ का इस्तेमाल भी एक अच्छे कार्य में ही होगा।
कम खर्च और बचेगा पर्यावरण
गोकाष्ठ से दाह-संस्कार किये जाने से एक और जहां फिजूलखर्ची में काफी हद तक लगाम लगेगी वहीं, पर्यावरण को भी प्रदूषण से बचाने में नयी कवायद शुरु होगी। सनातन परम्परा में मृत इंसान का दाह-संस्कार आम की लकड़ी, चंदन की लकड़ी के अलावा घी से करने का रिवाज है। लकड़ी की चिता पर ही अपने परिवार के मृत सदस्य को अंतिम विदायी देने का रिवाज बरकरार है।
बहुत काम खर्च में
एक चिता जलाने में तकरीबन साढ़े तीन क्विंटल आम की लकड़ी और तकरीबन एक किलो चंदन लकड़ी का इस्तेमाल हो जाता है। आज के बाजार में साढ़े तीन क्विंटल लकड़ी की कीमत करीब पांच हजार रुपये और 10 किलो घी (करीब चार हजार रुपये) का इस्तेमाल हो जाता है। लेकिन गोकाष्ठ का चिता काफी कम खर्च में ही पूरा हो जाता है और घी भी मात्र दो-अढ़ाई किलो ही इस्तेमाल होता है।
गोकाष्ठ से कोई असुविधा नहीं
लकड़ी का चिता जलाने में काफी असुविधाओं का भी सामना कई बार करना पड़ता है। लेकिन गोकाष्ठ के चिता में उस तरह की परेशानियां काफी हद तक कम हो जायेगी। श्री मईंया के इस सफल प्रयास का सिलीगुड़ी का समस्त समाज और पर्यायवरण प्रेमी भी काफी तारीफ कर रहे हैं।
धनबाद में भी शुरू हुआ प्रयोग
बिहार के धनबाद में भी पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अंतिम संस्कार या कर्म-कांड में लकड़ी की जगह गोबर से तैयार गोबरी (गोकाष्ठा) का प्रयोग किया जा रहा है। करीब 10 माह पहले यहां एक अंतिम संस्कार में यह प्रयोग किया गया। जिसके बाद से गोबरी का यह इस्तेमाल अब चलन में आ गया है। आंकड़ों के मुताबिक धनबाद में 11 माह में 50 दाह संस्कार गोबरी से किए गए हैं, जिससे यह साबित होता है कि लोगों के विचारों में परिवर्तन आ रहा है।
बीकानेर और जयपुर गोशाला में भी प्रयोग
राष्ट्रीय गाय आन्दोलन राजस्थान के संयोजन में मां भारती सेवा प्रन्यास द्वारा बीकानेर गौशाला सेवा समिति के सहयोग से बीकानेर की प्रथम गौ काष्ठ योजना का संचालन जल्द ही करने जा रहा है। इस योजना के शुरू होने से न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण में सहयोग मिलेगा बल्कि वृक्ष बचाओं योजना को भी फायदा मिलेगा। जयपुर बगरू की नारायणधाम गोशाला में इसे बनाया जा रहा है।
राष्ट्रीय गाय आन्दोलन राजस्थान के सूरजमाल सिंह नीमराणा ने बताया कि अंतिम संस्कार में यूं भी कंडों का उपयोग तो लोग करते ही हैं, मगर उन्हें लकड़ी के साथ इस्तेमाल किया जाता है। सिर्फ गौकाष्ठ के उपयोग में लकड़ी पूरी तरह बचेगी और धार्मिक भावनाएं भी आहत नहीं होंगी। उन्होंने बताया कि संगठन इसके लिये वृक्ष मित्र व पर्यावरण मित्र बनाने के लिये लोगों को जागरूक करेगा। नीमराणा ने बताया कि गौ मय काष्ठ का उपयोग यदि श्मशान भूमि,फैक्ट्रियों आदि में होने लग जाये तो गौपालक के रोजगार के अवसर बढ़ जायेंगे साथ ही गौसेवा में जुटी गौशालों की आमदनी भी बढ़ेगी।