यूं ही नहीं कहा जाता इन्हें 'रेडियो मैन', ये है पूरी कहानी

आपको यकीन नहीं होगा लेकिन यह बात सत्य है। दरअसल, प्रमोद कौथनपुरवा गांव, सिंहपुर, अमेठी के निवासी है। बताया जा रहा है कि 1990 में अचानक तेज बुखार से बिमार हो गये थे, असके बाद वह मानसिक रूप से परेशान रहने लगे थे। साथ ही बताया जा रहा है कि इसको लेकर परिवार वाले कुछ समझ नहीं पा रहे थे।

Update:2019-10-15 14:07 IST

लखनऊ: सूचना क्रान्ती के इस युग में सदाबहार रेडियो अब भी उतना प्रभावी और बेमिसाल है। यह लोगों के मन मष्तिष्क पर किस कहर असर पैदा करता है, सिंहपुर, अमेठी के (उप्र) निवासी प्रमोद श्रीवास्तव का कहानी इसकी गवाह है।

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अमेठी के निवासी हैं प्रमोद...

आपको यकीन नहीं होगा लेकिन यह बात सत्य है। दरअसल, प्रमोद कौथनपुरवा गांव, सिंहपुर, अमेठी के निवासी है। बताया जा रहा है कि 1990 में अचानक तेज बुखार से बिमार हो गये थे, असके बाद वह मानसिक रूप से परेशान रहने लगे थे। साथ ही बताया जा रहा है कि इसको लेकर परिवार वाले कुछ समझ नहीं पा रहे थे।

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इसके बाद घरवालों ने प्रमोद को लखनऊ के केजीएमसी अस्पताल में डॉक्टरों को दिखाया। बताया जा रहा है कि इलाज करने वाले डॉक्टर ने पहले पूरा मामला समझा, और उनके शौक को जाना।

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परिजनों ने बताया कि प्रमोद को रेडियो सुनना बहुत पसंद है, फिर डॉक्टरों ने ऐसी तरकीब निकाली, जिसे सुन हर कोई हैरान रह गया।

इलाज करने वाले डॉक्टर ने दवा के साथ रेडियो सुनने की सलाह दी, यह नुस्खा असरदार निकला, रेडियो की आवाज से धीरे-धीरे प्रमोद की तबीयत ठीक होने लगी।

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बीएड कर चुके आज पूरी तरह स्वस्थ हैं और वो इसका पूरा श्रेय रेडियो को देते हैं। रेडियो थेरेपी से लाभ पाकर प्रमोद का शौक कब शगल बन गया, उन्हें पता ही नहीं चला। इसी शगल ने उन्हें विभिन्न प्रसारण केन्द्रों से सर्वश्रेष्ठ श्रोता का सम्मान दिलाकर शोहरत दिलाई।

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पुत्र का नाम तरंग...

प्रमोद ने अपने पुत्र का नाम 'तरंग' रखकर ये जता दिया कि रेडियो से कितना प्रेम करते है। बता दें कि आज प्रमोद करीब 14 घटें रेडियो सुनते है।

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बनाया भारतीय रेडियो श्रोता संघ बनाया...

आपको बता दें कि 15 फरवरी 1995 को प्रमोद श्रीवास्तव ने भारतीय रेडियो श्रोता संघ बनाया। उन्होंने पत्र भेजकर देश-विदेश के विभिन्न रेडियो चैनलों में संघ पंजीयन कराया।

105 सदस्यों वाले इस संघ में उप्र के साथ पठानकोट, राजस्थान, के लोग भी शामिल हैं।

प्रमोद अब तक 32000 पत्र अलग-अलग रेडियो सेवाओं में भेज चुके हैं, जिससे विभिन्न रेडियो चैनलों में पहचान मिली। वर्ततमान में उनके पास 13 रेडियो है, इनमें पैरामाउंट, पायनियर, फिलिप्स के मॉडल है, साथ ही साथ इसमें टू इन वन सहित सचिन सेलेक्शन पॉकेट रेडियो भी है।

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सफर 30 साल का...

प्रमोद की इस कहानी पर थेरेपी इन कैथनपुरवा कार्यक्रम को 2006-07 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। 2007 में जर्मन रेडियो डॉयचे वेले के सर्वश्रेष्ठ श्रोता चुने जाने पर जर्मन दूतावास ने सम्मानित किया।

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2011 में बीबीसी की पत्रकारिता विभाग की प्रमुख निकी क्लार्क ने भी प्रमोद के गांव पहुंचकर उनको सम्मानित किया। इसके साथ ही उनको कई प्रसारण केंद्रों से मिल सम्मान चुका है।

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