सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी: यूपी के इतने शहरों में लगते हैं मेले, अब सब पर लगेगी रोक!

Syed Salar Masud Ghazi: कहा जाता है अजमेर में जन्मे गाजी के माता पिता बाद में बाराबंकी आकर रहे और यहां उसके पिता बूढ़े बाबा की कब्र बनी जहां बूढ़े बाबा का मेला हर साल लगता है।;

Update:2025-03-20 12:10 IST

गाजी सालार मसूद के नाम पर लगने वाले मेलों पर ग्रहण  (PHOTO: Social media )

Syed Salar Masud Ghazi: महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र पर विवाद के बाद अब उत्तर प्रदेश में गाजी सालार मसूद के नाम पर लगने वाले मेलों पर ग्रहण लग गया है। उत्तर प्रदेश के संभल, बहराइच, बाराबंकी, अमरोहा, मेऱठ में गाजी मसूद के नाम पर मेले लगते हैं। संभल के मेले पर रोक लगने के बाद प्रदेश के अन्य शहरों में लगने वाले इस आतताई आक्रमणकारी की याद में लगने वाले मेलों के भविष्य पर सवाल खड़ा हो गया है।

मेलों पर चर्चा करने से पहले आइए जानते हैं गाजी मियां के बारे में। जानकारी करने पर पता चलता है कि उसका परिवार महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। अगर विकीपीडिया में उपलब्ध जानकारी को सही मानें तो अब से लगभग एक हजार साल पहले 1014 में उसका जन्म हुआ और 1034 में उसकी मौत हुई। लेकिन अपने कारनामों के चलते या फिर सुलतान का भांजा होने के नाते इतिहास में उसे धार्मिक योद्धा या गाजी की उपाधि मिली। गाजी अरबी का बहुवचन है जिसका अर्थ ऐसे व्यक्ति से लिया जाता है जिसने गजवा में भाग लिया है।

गजवा का अर्थ डाकूपन से लिया जाता था 

इस्लाम से पहले बेडौइन संस्कृति में गजवा का अर्थ डाकूपन से लिया जाता था जिसमें सीधे हमले की जगह छुपकर, छापेमारी कर हमला किया जाता था। उमय्यद काल के बेडौइन कवि अल-कुटामी ने लिखा था, "हमारा काम दुश्मन पर, अपने पड़ोसी पर और अपने भाई पर छापेमारी करना है, अगर हमें छापेमारी करने के लिए भाई के अलावा कोई न मिले। ऐसा लगता है गजनवी इन लाइनों से प्रभावित हुआ और उसने इसे अपने दुश्मनों जो कि ज्यादातर मूर्ति पूजक थे उनकी ओर मोड़ दिया। और सैनिक छापेमारी में परिवर्तित कर दिया।

अगर सालार मसूद के उल्लेखनीय कार्य देखें तो सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी ने अज़मेर के राजा को हराया और उनकी बहन से बलात्कार विवाह किया। सोमनाथ को ध्वस्त करने के इरादे से आक्रमण किया। बहराइच के सूर्य मन्दिर को तोड़कर मस्जिद बनाई। युद्ध में मृत्यु के पश्चात मसूद को गाज़ी (धार्मिक योद्धा) की उपाधि दी गई।

आश्चर्य होता है कि एक ऐसा व्यक्ति जो मात्र 25 साल जिंदा रहा। इतिहास में अमर कैसे हो गया। इसके अलावा हिन्दुओं का कत्लेआम करने पाला हिन्दुओं की अंध श्रद्धा का प्रतीक कैसे हो गया। बहराइच दरगाह हिन्दुओं का तीर्थ कैसे बन गई।

विलियम हेनरी स्लीमन अवध में ब्रिटिश रेजिडेंट

19वीं शताब्दी में खुद ब्रिटिश प्रशासक मसूद के प्रति हिंदू लोगों की श्रद्धा से हतप्रभ थे। विलियम हेनरी स्लीमन जो अवध में ब्रिटिश रेजिडेंट थे ने लिखा है, यह कहना अजीब है कि मुसलमान के साथ-साथ हिन्दू भी इस दरगाह में चढ़ावा चढ़ाते हैं, और इस सैन्य गुण्डे के पक्ष में प्रार्थना करते हैं, जिसकी एकमात्र दर्ज योग्यता यह है कि उसने अपने क्षेत्र पर अनियंत्रित और अकारण आक्रमण में बड़ी संख्या में हिंदुओं को नष्ट कर दिया।

ऐसा कहा जाता है अजमेर में जन्मे गाजी के माता पिता बाद में बाराबंकी आकर रहे और यहां उसके पिता बूढ़े बाबा की कब्र बनी जहां बूढ़े बाबा का मेला हर साल लगता है।

ओटोमन इतिहासकार अहमदी के मुताबिक गाजी अल्लाह के दीन का साधन है, अल्लाह का बन्दा है जो धरती को मुश्रिका की गंदगी से पाक करता है। गाजी अल्लाह की तलवार है, वह ईमान वालों का रक्षक और शरणदाता है। अगर वह अल्लाह के रास्ते में शहीद हो जाता है, तो यह मत समझो कि वह मर गया, वह अल्लाह के साथ खुशी में रहता है, उसके पास हमेशा की ज़िंदगी है।

इस सबसे ऐसा लगता है कि शुरुआत में मुगलिया शासन में भय के कारण या जान बचाने की खातिर इसकी शुरुआत हुई और फिर यह एक परंपरा बन गई।

संभल के नेजा मेले

हालांकि प्रशासन द्वारा जिस तरह से संभल के नेजा मेले को अनुमति देने से इनकार किया है उसके बाद बाराबंकी बहराइच आदि स्थानों पर लगने वाले मेलों को लेकर असमंजस और ऊहापोह की स्थिति उत्पन्न हो गई है। खुद मुस्लिम यह मानते हैं इन दरगाहों पर नब्बे फीसद हिन्दू जाते हैं। मुसलमानो का एक बड़ा तबका दरगाहों की जियारत को मूर्ति पूजा के रूप में देखता है। और इनसे दूरी बनाकर चलता है।

सालार मसूद गाजी ने भारत में आक्रमण करने के दौरान जहाँ-जहाँ डेरा डाला था, वहाँ-वहाँ आज मुस्लिमों द्वारा उर्स मनाया जाता है। इन में मेरठ का नौचंदी मेला, पुरनपुर (अमरोहा) का नेजा मेला, थमला और संभल के मेले प्रमुख हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि एक साजिश के तहत एक आतताई लुटेरे को संत के रूप में नाम बदलकर प्रसारित किया गया। इसके बाद बड़ी संख्या में हिंदू भी इन मजारों पर आने लगे और लाखों-करोड़ों रुपए की कमाई इन दरगाह समितियों को होने लगी। इसके लिए की तरह के अफवाह एवं भ्रांतियाँ फैलाई गईं।


इस मामलें संभल के एएसपी श्रीशचंद्र दीक्षित की कही बात आज नजीर बन गई है कि “किसी भी लुटेरे के प्रति आप कहेंगे कि यह बहुत अच्छा है तो इस बात को बिलकुल नहीं माना जाएगा। अगर आप लोग अभी तक अच्छा मानकर मेला कर रहे थे तो यह कुरीति थी और आप अज्ञानता में यह कर रहे थे। अगर जानबूझ कर ऐसा रहे थे तो आप देशद्रोही थे।”

वास्तव में विदेशी लुटेरे गाजी ने इस देश के प्रति अपराध किया था। लुटेरे की याद में कोई नेजा (झंडा-निशान) नहीं गड़ेगा। अगर ये झंडा गड़ गया तो वह देशद्रोह है। यह बात संभल में सालार मसूद गाजी के कब्र पर मेला (उर्स) की इजाजत से इनकार करते हुए यह बात कही गई।

जब संभल में नेजा मेला किसी लुटेरे आक्रान्ता की याद में आयोजित नहीं किया जाएगा। तो फिर बाकी जगह क्या हो गा। बाकी जगह भी मेलों का आयोजन सवालों के घेरे में है।

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