सबको साक्षर करने का संकल्प लिये जिले में पहुंचे साइकिल गुरू

यूं तो गुरूजी काम करते हैं लेकिन बिना पगार और मानदेय के जब कोई करता है तो बात अनूठी बन जाती है। फक्कड़ी स्वभाव के धनी आदित्य की जिंदगी साइकिल पर कट रही है।

Update: 2020-02-15 15:12 GMT

अंबेडकरनगर। यूं तो गुरूजी काम करते हैं लेकिन बिना पगार और मानदेय के जब कोई करता है तो बात अनूठी बन जाती है। फक्कड़ी स्वभाव के धनी आदित्य की जिंदगी साइकिल पर कट रही है। अविवाहित रहकर देश को साक्षर बनाने की मुहिम चला रहे हैं, आदित्य देश के सभी 29 राज्यों में डेढ़ लाख से अधिक पाठशालाएं लगाकर करोड़ों बच्चों को स्कूल भेजा।

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पिता मजदूरी करते थे। मां ने भीख मांगकर बीएससी तक पंहुचाया, किन्तु आगे की शिक्षा बस एक सपना बनकर रह गयी। इसी पीड़ा को लेकर आदित्य ने समाज के उन बच्चों को स्कूल पंहुचाने की ठान ली, जो गरीबी या अज्ञानता के कारण स्कूल नही जा पाते है, 27 साल से घर छोड़कर गरीब बच्चों को शिक्षित कर उन्हें स्कूल भेजने की धुन सवार आदित्य बताते हैं कि भ्रमण के दौरान लोग उन्हें कुछ पैसा उपहार स्वरूप देते हैं, उसी से वह भोजन करते हैं।

विषम परस्थिती में भी हिम्मत नही हारे

फुटपाथ पर चादर बिछाई और सो गए। कई बार भूखे भी रहना पड़ता है।, आज भी याद है एक बार एक ऑटो रिक्शा चालक ने मुझे दस रूपया दिये और कहा कि मेरे पास यही है और यह कहते हुए उसकी ऑंखों में ऑसू भर आये थे। हालात विषम भी हुए लेकिन अपने मिशन आओ भारत को साक्षर बनायें से कदम नही ड़िगे।

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पूर्वोत्तर के आदिवासी क्षेत्रों में उनके साथ मार-पीट और उनके पैसे छीनने जैसे घटनाएं हुई लेकिन आदित्य अपने कार्य में पूरी श्रद्धा के साथ लगे हुए हैं। आदित्य कुमार इन दिनों यूपी के जिलों में घूम-टहल कर गांव-देहातों में बच्चों की पाठशाला लगा रहे हैं, वह जहां भी जाते उस इलाके के पास-पड़ोस में कुछ युवक ऐसे तलाशते हैं जो इन पाठशालाओं को रेगुलर चला सके।

करोड़ों बच्चों को स्कूल भेजकर उनके सपने को साकार कर चुके हैं

आदित्य बच्चों को कुछ देर पढ़ाते ही नही बल्कि वंचितों को स्थानीय सहयोग से स्कूल भेजते है, पांच लाख किमी. का सफर कर चुके आदित्य अपनी साइकिल के जरिये उन क्षेत्र में पंहुचते हैं जहां पर निरक्षरता अधिक मिलती है, 1992 से लेकर आदित्य अब तक करोड़ों बच्चों को स्कूल भेजकर उनके सपनों को साकार कर चुके है।

इसी लगन और मेहनत को देखते हुए आदित्य कुमार को सैंकड़ों पुरस्कार प्रदेश सरकार से लेकर दूसरे प्रांतो की सरकारों से मिले। आदित्य को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी सम्मानित किया है। वह अपने इस काम को एक अभियान भर नही बल्कि फर्ज समझते हैं।

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आदित्य बताते हैं मेरे पढ़ाये बच्चे आज डीएम से लेकर जज, वकील, डाक्टर, इंजीनियर और हजारों बच्चे देश -विदेश में अपना कारोबार चला रह हैं। आदित्य कुमार का जन्म 18 जुलाई 1970 को फर्रूखाबाद के सलेमपुर गांव में हुआ था। पिता भूपनरायन और मां लौंगश्री मजदूरी करती थीं। घर में पांच भाई बहनों में आदित्य तीसरे नम्बर के हैं, परिवार एक झोपड़ी में रहता था।

भूमिहीन पिता की वजह से परिवार को मुश्किल भरे दौर से गुजरना पड़ा था

भूमिहीन पिता की वजह से परिवार को मुश्किल भरे दौर से गुजरना पड़ा था, इसलिए न तो ढंग से खाना-पीना और नही ढंग से पढ़ाई लिखाई हो सकी। बचपन से ही आदित्य की इच्छा थी कि वह हायर स्टडीज की पढ़ाई पूरी करें। आदित्य खुद के लिए कभी पुस्तकें भी नही खरीद पाये, पढ़ाई का जूनून इतना था कि दूसरों से किताबें मांगकर अपनी पढ़ाई पूरी की।

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