UP board result 2020: बोर्ड के रिजल्ट से पहले जान लें काम की ये बातें, बदल जाएगी जिंदगी
यूपी बोर्ड की 10वीं तथा 12वीं कक्षाओं के नतीजे कल 27 जून को आ रहे है। यूपी बोर्ड की हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा में इस बार 56 लाख सात हजार 118 परीक्षार्थी पंजीकृत थे।
लखनऊ: यूपी बोर्ड की 10वीं तथा 12वीं कक्षाओं के नतीजे कल 27 जून को आ रहे है। यूपी बोर्ड की हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा में इस बार 56 लाख सात हजार 118 परीक्षार्थी पंजीकृत थे। इतनी बड़ी संख्या में शामिल परीक्षार्थियों में से काफी परीक्षार्थी पास होंगे और कुछ ऐसे भी होंगे जिनको उम्मीद से कम नंबर मिलेंगे। जबकि कुछ फेल भी होंगे। तो यहां सवाल यह है कि किसी एक परीक्षा में फेल होने से क्या जीवन रूक जायेगा या क्या भविष्य के सारे दरवाजे बंद हो जायेंगे।
यह सही है कि परीक्षा में फेल होने पर परीक्षार्थी को दुख तो होता ही है साथ ही सामाजिक तौर पर भी उसको नीचा देखना पड़ता है। वह समझ नहीं पाते है कि यह जीवन का एक पड़ाव है, जो गुजर जायेगा। इसी कारण कई बार परीक्षा में असफल विद्यार्थी अवसाद में चले जाते है और कई तो आत्महत्या तक कर लेते है। विद्यार्थियों की इसी मनोदशा को समझते हुए, ऐसी किसी स्थिति से बचने के लिए न्यूजट्रैक ने बात की राजधानी के डा. अलीम।
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लखनऊ के मशहूर मनोचिकित्सक व आईएमए के प्रवक्ता डा. अलीम सिद्दीकी से
डा. अलीम का कहना है कि परीक्षा में असफल होना कोई बड़ी बात नहीं है। दुनिया में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो लगातार सफल रहा हो। जरूरत इस असफलता को सकारात्मक तौर पर स्वीकार करने की है। यह जीवन में कोई आखिरी परीक्षा नहीं है और बहुत से लोग जो कम शिक्षित होते है या नहीं पढ़े होते है वह भी जीवन में अच्छा काम कर रहे है। इसलिए परीक्षा को जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं मानना चाहिए। वह कहते है कि असफल विद्यार्थियों को अपनी गलतियों से सीख कर अगले साल की परीक्षा पर फोकस करना चाहिए और केवल परीक्षा के समय ही नहीं बल्कि पूरे साल पढ़ना चाहिए। असफलता में हुए अनुभवों से सीख लेकर अपने आगे का जीवन बेहतर कर सकते है। वह कहते है कि किसी भी परीक्षा में या तो आप जीतते है या सीखते है। इसलिए परीक्षा के खराब नतीजों को हार की तरह नहीं बल्कि सीख की तरह लेना चाहिए।
माता-पिता के लिए सलाह
डा. अलीम का कहना है कि विद्यार्थियों की असफलता के लिए माता-पिता भी जिम्मेदार होते है। कई बार माता पिता बच्चे की पढ़ाई में अपनी इच्छाओं का बोझ लाद देते है। बच्चे का रूझान संगीत में है लेकिन उसे विज्ञान पढ़ा कर डाक्टर बनाना चाहते है। डा. अलीम कहते है कि माता पिता को बच्चों पर पढ़ाई के मामले में दबाव नहीं बनाना चाहिए। इसके साथ ही माता पिता को यह भी पहचनाना होगा कि उनका बच्चा कितना दबाव बर्दाश्त कर सकता है, उसका ब्रेक प्वाइंट क्या है।
माता पिता को अपने बच्चे के स्ट्रांग प्वाइंट को भी पहचानना होगा। वह उदाहरण देते हुए कहते है कि सचिन तेंदुलकर को आज कौन नहीं जानता लेकिन अगर उनके मां-बाप उन्हे इंजीनियर बनाने में जुट जाते तो शायद आज दुनिया को इतना अच्छा क्रिकेटर नहीं मिलता। वह कहते है कि बच्चों को डांट कम और प्रोत्साहन ज्यादा देना चाहिए। डा. अलीम का कहना है कि दरअसल, माता पिता के लिए छड़ी उठा कर बच्चे की पिटाई कर देना तो बहुत ही आसान काम है लेकिन उनके साथ बैठना, उन्हे समय देना और उन्हे समझना थोड़ा मुश्किल। इसीलिए अक्सर माता-पिता छड़ी वाला विकल्प ही चुन लेते है और जब बच्चा असफल होता है तो अपनी गलती न मान कर सारा ठीकरा बच्चे के सिर फोड़ देते है।
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परिणाम खराब आने पर अगर बच्चे में है ये लक्षण तो हो जाए सतर्क
डा. अलीम बताते है कि बच्चों का मन नाजुक होता है और यह उनके जीवन की पहली बड़ी परीक्षा होती है, जिसमे वह असफल नहीं होना चाहते है। माता-पिता के साथ ही उन पर समाज का सामना करने का दबाव भी होता है। माता-पिता की नाराजगी और समाजिक तिरस्कार के भाव का दबाव उनका कोमल मन सह नहीं पाता है और वह या तो अवसाद में चले जाते है या फिर आत्महत्या जैसा प्रयास कर लेते है।
डा. अलीम कहते है कि ऐसे बच्चों के माता पिता को बच्चों पर खास नजर रखनी चाहिए। अगर बच्चों के सामान्य व्यवहार में ज्यादा बदलाव देखने में आ रहा है तो सतर्क हो जाना चाहिए। वह बताते है कि खराब परिणाम आने के बाद अगर बच्चा अकेले रहना पसंद करे या उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाए, खान-पान में कमी आ जाए, खेलकूद में कमी आ जाए, सोने और उठने के समय में बदलाव आ जाए और बेवजह गुस्सा दिखाए तो उससे बात करके उसे समझाना चाहिए और जल्द से जल्द किसी मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए ।
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