UP Election 2022: यूपी में बीजेपी की किससे है लड़ाई? एक दूसरे को धक्का दे रहे विपक्षी दल

UP Election 2022: आज दिल्ली में बीजेपी के दिग्गजों का चिंतन और मंथन हो रहा है। अब आगामी चुनाव में कैसे कमल खिलेगा इसको लेकर रणनीति बनेगी। बीजेपी जहां सभी पार्टियों से अकेले लड़ने की तैयारी कर रही है तो वहीं यूपी में विपक्ष एक दूसरे को धक्का देने में लगा हुआ है।

Published By :  Shreya
Update:2021-11-07 12:31 IST

(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

UP Election 2022: वैसे तो 2022 में पांच राज्यों में विधानसभा का चुनाव (Vidhan Sabha Chunaav 2022) हैं। लेकिन भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए सबसे अहम उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) का चुनाव है। क्योंकि उत्तर प्रदेश के रास्ते से ही दिल्ली की गद्दी का सफर तय होता है। आज दिल्ली में बीजेपी के दिग्गजों का चिंतन और मंथन हो रहा है। क्योंकि पिछले दिनों उपचुनाव (By Elections 2022) में मिली हार (BJP Ki Har) के बाद जहां बीजेपी सरकारों ने तुरंत पेट्रोल और डीजल के दामों घटा दिये। अब आगामी चुनाव में कैसे कमल खिलेगा इसको लेकर रणनीति बनेगी। बीजेपी जहां सभी पार्टियों से अकेले लड़ने की तैयारी कर रही है तो वहीं यूपी में विपक्ष एक दूसरे को धक्का देने में लगा हुआ है।

इस बार यूपी का चुनाव (UP Ka Chunaav) भाजपा के लिए जहां काफी महत्वपूर्ण है तो सपा-बसपा के लिए जीने मरने का भी सवाल बना हुआ है। कांग्रेस (Congress) के लिए प्रदेश में वापसी अस्तित्व का प्रश्न बना हुआ है। लेकिन कई अन्य प्रदेशों की तरह उत्तर प्रदेश में भी निराशाजनक तस्वीर पेश कर रहा है। वैसे इन सभी विपक्षी दलों की लड़ाई मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) उनकी सरकार (Yogi Adityanath Government) तथा मोदी सरकार (Modi Government) से है, लेकिन वह एक दूसरे को काटने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं। 

अखिलेश यादव (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

बसपा के दिग्गज हुए सपाई

अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) आज अंबेडकरनगर में लालजी वर्मा (Lalji Verma) और रामअचल राजभर (Ram Achal Rajbhar) को पार्टी में शामिल करेंगे। इससे पहले उन्होंने बसपा (BSP) के विधायकों, आरएस कुशवाहा, वीर सिंह और बसपा से मुजफ्फरनगर के पूर्व सांसद कादिर राणा अखिलेश के साथ अब साइकिल चलाएंगे। यह वह बड़े नेता हैं जिनके नाम राष्ट्रीय मीडिया में आया करते थे। लेकिन अब यह 2022 के लिए अखिलेश के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। अखिलेश यादव की पार्टी में देखें तो कई ऐसे बड़े नाम हैं जो एक समय में बसपा के दिग्गज हुआ करते थे और आज वह साइकिल की सवारी कर लिए हैं। उनके साथ स्थानीय नेता और कार्यकर्ता भी अब सपाई कहलाने लगे हैं।

अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी में एक नई बाबा साहेब वाहिनी (Baba Saheb Vahini) के नाम से कमेटी गठित की है। बसपा से आए मिठाई लाल भारती (Mithai Lal Bharti) को इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष उन्होंने बना दिया है। 2022 के लिए सपा की रणनीति यही दिखाई पड़ती है कि यादव और मुसलमान का मत को लेकर वह आश्वस्त हैं, मुसलमान ओवैसी के साथ जाएंगे ऐसा उसे विश्वास नहीं है। क्योंकि अगर भाजपा को हराना चाहते हैं तो उनके पास ठोस विकल्प सपा ही है। सपा के रणनीतिकारों को लगता है कि इसमें यदि दलित तथा कुछ सामान्य वर्ग जुड़ जाएं तो पार्टी को सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता। इसी को ध्यान में रखते हुए संभवत बसपा को नुकसान पहुंचाने की रणनीति अपनाई है।

बाबा साहब वाहिनी से दलितों का वोट हासिल करने की कोशिश

अखिलेश यादव बाबा साहेब वाहिनी के द्वारा दलितों के बीच संदेश देने की कोशिश में लगे हैं कि सपा के अंदर ही वास्तव में बसपा की वैचारिक इकाई खड़ी हो गई है। वह यह भी कह रहे हैं कि डॉ राम मनोहर लोहिया और बाबा साहब अंबेडकर मिलकर काम करना चाहते थे। हम आज उनके सपनों को पूरा कर रहे हैं। फिलहाल सामान्य दलितों और बसपा समर्थकों के बीच इसका क्या संदेश जाएगा या कहना मुश्किल है। इतना जरूर कहा जा सकता है कि आने वाले समय में सपा बनाम बसपा के बीच संघर्ष के स्वर ज्यादा तेज होंगे और ऐसा कई बार मायावती खुले मंच से कह भी चुकी है कि सपा उनके नेताओं को जगह देकर अपने लिए गड्ढा खोद रही है। 

मायावती (फाइल फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

दलित वोट बैंक को लेकर आश्वस्त मायावती

बीएसपी सुप्रीमो मायावती (Mayawati) यह मानकर चलती हैं कि उनके जनाधार में कोई सेंध नहीं लगा सकता। हालांकि 2014, 2017 में उनका यह विश्वास गलत साबित हुआ। भाजपा को आम दलितों और यहां तक कि बसपा समर्थकों का वोट मिला। 2019 की बात करें तो सपा से गठबंधन के कारण उन्हें हल्की कामयाबी जरूर मिली पर भाजपा ने फिर भी उनके परंपरागत वोट पाने में कामयाबी हासिल की।

मायावती चाहे जितना आत्मविश्वास प्रदर्शित करें उनके लिए अखिलेश का रवैया कहीं न कहीं चिंता का विषय अवश्य बना हुआ है। क्योंकि बसपा के तमाम ऐसे दिग्गज जो अपने क्षेत्र में अच्छी हनक और जीतने का माद्दा रखते हैं वह आज अखिलेश के साथ हो गए हैं और अब इसे अखिलेश को फायदे के तौर पर दिखाई दे रहा है। 

प्रियंका गांधी वाड्रा (फोटो साभार- सोशल मीडिया)  

सपा ने कांग्रेस को भी दिया झटका

अखिलेश बसपा को ही नहीं कांग्रेस को भी पूरी क्षति पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। इधर प्रियंका गांधी वाड्रा ने लखनऊ में कांग्रेस की चुनावी रणनीति का ऐलान करते हुए 40 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित और छात्राओं को स्मार्टफोन, स्कूटी देने का वादा किया तो वही उनके विश्वासपात्र पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक और उनके बेटे पंकज मलिक साइकिल पर सवार हो लिए। कांग्रेस के लिए यह बहुत बड़ा झटका है क्योंकि दोनों नेताओं की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है।

अब इन सारे घटनाक्रम को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भाजपा के सामने विपक्ष की कोई एक सशक्त चुनौती नहीं है। भाजपा में माहौल या है कि जब 2017 में अखिलेश और राहुल गांधी मिलकर भी उसे सत्ता में आने से नहीं रोक पाए। 2019 में साइकिल और हाथी मिलकर भी मोदी की राह में रोड़े नहीं बन पाए तो 2022 में अलग अलग लड़कर उन्हें सत्ता से वंचित कौन कर सकता है। वैसे भी भारतीय राजनीति में पाला बदलने वाले नेताओं में सफलता पाने वालों का प्रतिशत ज्यादा नहीं रहा है, और चुनाव से पहले उनका आने और जाने का सिलसिला जारी है।

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