UP Ki Rajneeti: देश में चाचा-भतीजे के राजनीतिक टकराव पर  एक और परदा खुलेगा 11 अक्टूबर को

UP Ki Rajneeti: पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तरफ से प्रयास न किए जाने के बाद  अब चाचा शिवपाल सिंह यादव ने साफ कह दिया है कि हमे 11 अक्टूबर तक इंतजार रहेगा।

Report :  Neel Mani Lal
Published By :  Chitra Singh
Update:2021-10-03 09:19 IST

UP Ki Rajneeti: इन दिनों उत्तर प्रदेश की राजनीति में विधानसभा चुनाव से अधिक मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एवं उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के अगले कदम पर लोगों की निगाहें टिकी हुई है कि 11 अक्टूबर के बाद आखिर क्या होगा? चाचा और भतीजे की राजनीतिक राहें पूरी तरह से जुदा हो जाएगी अथवा दोनो फिर एक ही रास्ते पर आ जाएगें। पांच साल पहले जब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी उस दौरान ही चाचा भतीजे के बीच मतभेद पैदा होने के बाद से आज तक विवाद सुलझ नहीं पाया है।

यादव कुनबे की आपसी कलह के चलते ही पहले विधानसभा फिर लोकसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी शिकस्त का सामना कर चुकी है। मुलायम सिंह यादव  के परिवार के इस विवाद को सुलझाने के न जाने कितने प्रयास किए जा चुके हैं । लेकिन यह सुलझ नहीं पाया है। अब जब विधानसभा चुनाव की दस्तक हो चुकी है तो एक बार फिर भतीजे अखिलेश यादव की तरफ से प्रयास न किए जाने के बाद  अब चाचा शिवपाल सिंह यादव ने साफ कह दिया है कि हमे 11 अक्टूबर तक इंतजार रहेगा। इसके बाद 12 अक्टूबर से वृंदावन मथुरा से पीएसपी की सामाजिक परिवर्तन रथ यात्रा शुरू होगी।

यहां यह बताना जरूरी है कि 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले 2016 में समाजवादी पार्टी में वर्चस्व की जंग को लेकर कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव में मतभेद इतने बढे कि सीएम रहते अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल को अपने मंत्रिमंडल से भी बर्खास्त कर दिया। यह पहला मौका था जब यादव परिवार में किसी वरिष्ठ सदस्य को संगठन से फिर सरकार से बेदखल किया गया। बात इतनी बढ़ी कि समाजवादी पार्टी दो फाड़ हुई। नाराज शिवपाल ने अलग पार्टी बना ली । नाम दिया प्रगतिशील समाज पार्टी(लोहिया)।

अखिलेश यादव-शिवपाल सिंह यादव (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

राजनीतिक क्षेत्र में चाचा भतीजे के बीच होने वाले विवाद का कोई यही मामला नहीं है बल्कि हर राज्य में राजनीतिक विरासत को लेकर टकराव होते रहे हैं। इसी तरह चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने भाजपा को समर्थन देकर देवेन्द्र फडऩवीस की सरकार बनवाई। लेकिन यह सरकार चंद घंटों की रही। इससे पहले अजित पवार ही चाचा को गच्चा देकर डिप्टी सीएम तो बन गए । लेकिन बहुमत के अभाव और परिवार के दबाव में वे इस्तीफा देकर वापस आ गए।

हरियाणा की सियासत में देवीलाल परिवार का खासा दखल रहा है। लेकिन यहां भी आपसी कलह ने सब कुछ तीन तेरह कर दिया है। देवीलाल के पुत्र ओमप्रकाश चौटाला भी सीएम हुए जो इस समय अपने पुत्र अजय चौटाला के साथ भ्रष्ट्राचार के एक मामलें में जेल चले गए। अजय चौटाला और स्वयं जेल में होने के कारण पार्टी की कमान ओमप्राकाश चौटाला ने अपने दूसरे पुत्र अभय चौटाला को दे रखी है। यहां भी चाचा भतीजे की नहीं बनी तो अजय चौटाला के पुत्र और अभय चौटाला के भतीजे दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी का गठन किया । दस विधायक जितवाकर खट्टर सरकार में डिप्टी सीएम बन गए।  

इसी तरह पंजाब की सियासत में बादल का एक लंबे समय तक खासा दबदबा रहा है। अकाली दल के मुखिया प्रकाश सिंह बादल जहां कई बार पंजाब के सीएम रहे तो उनके पुत्र सुखबीर बादल वहां के डिप्टी सीएम हुए । प्रकाश सिंह बादल के परिवार में भी खासी कलह रही। जिसका नतीजा यह रहा कि उनके भतीजे मनप्रीत बादल की जब राजनीति आकांक्षाएं पूरी नहीं हुयी तो उन्होंने भी बगावत कर पंजाब पीपुल पार्टी का गठन कर लिया।

भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता और महाराष्ट्र की भाजपा शिवसेना गठबंधन सरकार में डिप्टी सीएम रहे गोपी नाथ मुंडे (दिवंगत) वर्ष 2009 में जब बीड से विजयी हुए तो ज्यादातर लोगों ने सोचा कि विधानसभा चुनाव में वह अपने भतीजे धनंजय मुंडे को उतारेंगे। लेकिन इसकी जगह उन्होंने अपनी बेटी पंकजा मुंडे को परली सीट से मैदान में उतारा। इससे चाचा-भतीजे के बीच मनभेद और गहरा गया तथा धनंजय मुंडे राकांपा में शामिल हो गए। बाद में वह विधान परिषद में नेता विपक्ष बने।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना के जयदत्त क्षीरसागर को उनके भतीजे एवं राकांपा उम्मीदवार संदीप क्षीरसागर ने बीड सीट से हरा दिया।  महाराष्ट्र के ठाकरे परिवार की राजनीति में चाचा के खिलाफ भतीजे की बगावत कोई नई बात नई नहीं है। यहां की राजनीति यह कोई नया अध्याय नहीं है। पहले भी शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरें के खिलाफ उनके भतीजे ने अपनी उपेक्षा से उबकर वर्ष 2006 में उनसे किनारा करके महाराष्ट नवनिर्माण सेना का गठन किया। राज ठाकरे बाल ठाकरें का राजनीति उत्तराधिकारी बनना चाहते थे । लेकिन बाल ठाकरें ने उनके बजाए अपने पुत्र उद्वव ठाकरे को ही चुना जो बाद में शिवसेना के प्रमुख बने। राज ठाकरे ने बाद में अपनी अलग राह ली और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन कर सियासत शुरू कर दी। अब दोनों भाइयों की राहे जुदा हैं। हालांकि राजनीतिक दृष्टि से महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का महाराष्ट्र की राजनीति में कोई खास दखल नहीं है।

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