UP Nagar Nikay Chunav: नगर निकाय चुनाव समय से होंगे या फिर टल जाएँगे, आज होगा बड़ा फैसला

UP Nagar Nikay Chunav 2022: हाईकोर्ट ने पिछली सुनवाई में सीधे तौर पर ट्रिपल टेस्ट न कराने और 2017 के रैपिड टेस्ट को ही आधार मानकर इस बार भी आरक्षण देने पर प्रश्न खड़ा किया था।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2022-12-27 08:47 IST

UP Nagar Nikay Chunav (photo: social media )

UP Nagar Nikay Chunav: उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच आज यानी मंगलवार 27 दिसंबर को अपना फैसला सुनाएगी। शनिवार 24 दिसंबर को घंटों चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला आज के लिए सुरक्षित रख लिया था। हाईकोर्ट ने पिछली सुनवाई में सीधे तौर पर ट्रिपल टेस्ट न कराने और 2017 के रैपिड टेस्ट को ही आधार मानकर इस बार भी आरक्षण देने पर प्रश्न खड़ा किया था। कोर्ट के रूख को देखते हुए निकाय चुनाव के टलने के आसार बन गए हैं।

चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर है विवाद

निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण पर विवाद है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में ओबीसी आरक्षण को लेकर कई दिनों से सुनवाई चल रही है। शनिवार को जस्टिस देवेंद्र उपाध्याय और जस्टिस सौरभ लवानिया की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई। इस दौरान याची पक्ष की ओर से पेश हुए सीनियर अधिवक्ता डॉ एलपी मिश्रा ने निकाय चुनावों में पिछड़े वर्ग को दिए जाने वाले आरक्षण को नौकरियों या शिक्षण संस्थानों में दाखिले के दौरान दिए जाने वाले आरक्षण से अलग बताया। उन्होंने कहा कि यह एक राजनीतिक आरक्षण है, न कि सामाजिक, शैक्षिक या आर्थिक।

उन्होंने कोर्ट के समक्ष सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश सरकार 2021 केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को विस्तार से पढ़ा। मिश्रा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सुरेश महाजन केस के फैसले में स्पष्ट आदेश दिया था कि नगर निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से पहले ट्रिपल टेस्ट कराया जाएगा। अगर ट्रिपल टेस्ट की शर्त पूरी नहीं की जाती है तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा बाकी सभी सीटों को सामान्य घोषित कर चुनाव कराया जाना चाहिए।

पॉलिटिक्ल कॉस्ट और पॉलिटिक्ल क्लास में अंतर

आरक्षण के खिलाफ कोर्ट में दाखिल याचिकाओं का विरोध करते हुए सरकारी की ओर से कहा गया कि हमारा सर्वे काफी विस्तृत है। अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता अमिताभ राय ने दलील दी कि हर घर का सर्वे किया गया है। सरकार ने म्यूनिसिपल एक्ट के प्रावधानों के तहत ही सर्वे के बाद ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था की है।

हालांकि, कोर्ट सरकार की इन दलीलों से संतुष्ट नजर नहीं आया। जज ने कहा कि अगर मान भी लिया जाए की आप का सर्वे सही है तो आपका आयोग कहां है। पॉलिटिक्ल कॉस्ट और पॉलिटिक्ल क्लास में जमीन आसमान का अंतर है। आप सामाजिक आधार पर तो पिछड़े हो सकते हैं, मगर यह जरूरी नहीं है कि आप राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिहाज से भी पिछड़े हों। ओबीसी आरक्षण देना है तो ट्रिपल टेस्ट प्रक्रिया के आधार पर ही राजनीतिक पिछड़ेपन को तय किया जा सकता है।

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