UP News: पुरानी फाइल से! प्रति हेक्टेयर उपज में उ.प्र. फिसड्डी
Agriculture : उत्तर प्रदेश में प्रति हेक्टेयर फसल उपज में फिसड्डी का उत्पादन बढ़ता जा रहा है। इसका मुख्य कारण पशुओं के बीमारियों के लिए उपयुक्त वनस्पति के रूप में फिसड्डी की मांग बढ़ना है। यह उत्तर प्रदेश में अन्नपूर्ण ब्रह्मण परियोजना तथा पशुपालन उत्पादक कंपनियों द्वारा खरीदे जाने के लिए प्रतिबद्धता से भी जुड़ा हुआ है।
UP News: नई दिल्ली, 16 जुलाई, 2000, Agriculture - औद्योगिक विकास तो वैसे भी नहीं है और जिस कृषि पर उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था निर्भर है, उसका भी हाल बदहाल है। कृषि उत्पादों के उदार आयातों के प्रतिस्पर्धा के इस दौर में उत्तर प्रदेश प्रति हेक्टेयर उपज के पैमाने पर पीछे ही बना हुआ है । जबकि खाद की खपत और खेती के तहत आने वाले रकबे में खासी बढोत्तरी हुई है। यह बताता है कि प्रदेश में प्रशासनिक स्तर पर खेती को किस तरह का प्रोत्साहन मिल रहा है?
जिस प्रदेश की लगभग सत्तर फीसदी जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती हो, जहां 67 फीसदी क्षेत्र सुनिश्चित सिंचाई सुविधाओं के अंतर्गत आता हो, सिंचाई सुविधाओं की दृष्टि जो प्रदेश देश में तीसरे स्थान पर हो और उर्वरकों की खपत में जिस प्रदेश का छठा स्थान हो, वह प्रति हेक्टेयर अनाज उत्पादन में देश में पांचवे नंबर पर है और सकल अनाज उत्पादन में वृद्धि कृषि क्षेत्रफल में बढोत्तरी से कम है। यह सही है कि प्रदेश का देश में सकल अनाज उत्पादन में पहला स्थान प्राप्त है । लेकिन जमीनी हकीकत यह भी है कि अनाज उत्पादन का सर्वाधिक क्षेत्रफल भी उत्तर प्रदेश में ही पाया गया है। इतना ही नहीं, प्रदेश में कुल फसल क्षेत्र का 80 फीसदी हिस्सा खाद्यान उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है। लेकिन इसके बाद भी प्रति हेक्टेयर उत्पादन में प्रदेश को देश में पांचवा स्थान प्राप्त है।
इस वर्ष खरीफ की फसल के लिए उत्पादन लक्ष्य 185 लाख टन निर्धारित किया गया है जो पिछले वर्ष की तुलना में 14 फीसदी अधिक है। वर्ष 99 में खरीफ की फसल का उत्पादन 98 की अपेक्षा 14.9 फीसदी अधिक जरुर था । लेकिन यह निर्धारित लक्ष्य से आधा फीसदी कम रहा।
प्रदेश में चावल उत्पादन का लक्ष्य पिछले वर्ष की तुलना में मात्र 2.2 फीसदी रखा गया है। 90 फीसदी चावल खरीफ के मौसम में पैदा होता है। वर्ष 99 में 98 की तुलना में 13 फीसदी अधिक चावल पैदा हुआ। जबकि चावल उत्पादन के क्षेत्रफल में भी इससे कम इजाफा दर्ज नहीं किया गया। इसके बाद भी उत्तर प्रदेश पूरे का चावल उत्पादन में देश में दूसरा स्थान ही रहा। यह प्रदेश के पूरे देश के चावल उत्पादन में 14 फीसदी का अशंदान करता है । जबकि पश्चिम बंगाल इससे काफी कम क्षेत्रफल में धान खेती करके सोलह फीसदी अंशदान का सबसे आगे है। चावल उत्पादन की दर राज्य में प्रति हेक्टेयर 2121 किग्रा है। यह राष्ट्रीय औसत 1879 किग्रा प्रति हेक्टेयर से भले ही अधिक हो लेकिन अपने पड़ोसी राज्य पंजाब और हरियाणा से काफी कम है। पंजाब में यह 3397 किग्रा प्रति हेक्टेयर है। सी एम आई की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 99 में रबी खद्यान्नों का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में 4.4 फीसदी अधिक था। इस वर्ष गेहूं के उत्पादन में प्रति हेक्टेयर वृद्धि दशमलव नौ फीसदी दर्ज की गई । लेकिन यह वृद्धि गेहूं उत्पादन क्षेत्र को दशमलव आठ प्रतिशत बढ़ाने के बाद प्राप्त हो सकी। प्रदेश के 21.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में गेहूं का उत्पादन किया जाता है। वर्ष 97 में 243.30 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ । लेकिन वर्ष 98 में यह घटकर मा़त्र 235.50 लाख टन रह गया। गौरतलब है कि 90 फीसदी गेहूं उत्पादन क्षेत्र सुनिश्चित सिंचाई सुविधाओं के तहत आता है। फिर भी हम गेहूं उत्पादन में पंजाब और हरियाणा से पीछे ही हैं।
सी एम आई की रिपोर्ट के आधार पर प्रदेश सरकार यह दावा करती है कि वह खाद्यान्नों के साथ ही साथ अरहर, आलू और गन्ने की खेती में भी सर्वाधिक उत्पाद करने वाला राज्य है। लेकिन सच यह है कि राष्ट्रीय औसत में तिलहन और शकरकंदी के उत्पादन में प्रदेश काफी पीछे है। तिलहन का प्रति हेक्टेयर उत्पादन औसत प्रदेश में मात्र 894 किग्रा है , जो राष्ट्रीय औसत से 37 किग्रा कम है। इतना ही नहीं यह तमिलनाडु के औसत 1393 किग्रा तथा हरियाणा के औसत 1481 किग्रा प्रति हेक्टेयर से काफी कम है।
(मूल रूप से दैनिक जागरण के नई दिल्ली संस्करण में दिनांक- 17 जुलाई, 2000 को प्रकाशित)