Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के विरुद्ध संत समाज हुआ एकजुट- विहिप
Same Sex Marriage: विश्व हिंदू परिषद द्वारा ब्रज के प्रमुख संतो व कथावाचको की अध्यक्षता में प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया जिसमें निर्णय लिया गया कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई...
Same Sex Marriage: वृंदावन स्थित गोकुल धाम आश्रम रुकमणी बिहार पर विश्व हिंदू परिषद द्वारा ब्रज के प्रमुख संतो व कथावाचको की अध्यक्षता में प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया जिसमें निर्णय लिया गया कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई एक याचिका को निपटाने के लिए जिस प्रकार की जल्दबाजी माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा की जा रही है वह किसी भी तरह से उचित नहीं है। यह नए विवादों को जन्म देगी और भारत की संस्कृति के लिए घातक सिद्ध होगी। इसलिए इस विषय पर आगे बढ़ने से पहले माननीय सर्वोच्च न्यायालय को धर्मगुरुओं, चिकित्सा क्षेत्र, समाज विज्ञानियों व शिक्षाविदों की समितियां बनाकर उनकी राय लेनी चाहिए।
विश्व विख्यात कथावाचक डा. संजीव कृष्ण ठाकुर ने कहा कि एक ओर तो समलैंगिक संबंधों को प्रकट करने के लिए मना किया गया वहीं दूसरी ओर उनके विवाह की अनुमति पर विचार किया जा रहा है। क्या इससे निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा? चतु:संप्रदाय के महंत फूलडोलदास महाराज ने बताया की विवाह का विषय विभिन्न आचार संहिताओ के द्वारा संचालित होता है, भारत में प्रचलित कोई भी आचार संहिता इनकी अनुमति नहीं देता, हिंदू समाज में विवाह एक पवित्र बंधन है जिसके लिए हमारे शस्त्रों में प्रक्रिया दी हुई है उसके विपरीत यदि इस प्रकार के विवाह को मान्यता देना भारतीय संस्कृति की मूल भावना के विपरीत है, क्या सर्वोच्च न्यायालय इन सब में परिवर्तन करना चाहेगा?
महामंडलेश्वर संत चित्रप्रकाशानंद महाराज ने कहा की हमें स्मरण रखना चाहिए कि हिंदू धर्म में शादी केवल सुख भोगने का एक अवसर नहीं है, इसके द्वारा संबंधों को संयमित रखना, संतति निर्माण करना, उनका उचित पोषण करना, वंश परंपरा को आगे बढ़ाना और अपनी संतति को समाज के लिए उपयोगी नागरिक बनाना भी है। समलैंगिक विवाहों में ये संभावनाएं समाप्त हो जाती है। इसको यदि अनुमति दी गई तो कई प्रकार के विवादों को जन्म दिया जाएगा। ब्रज शिरोमणि कथावाचक रसिया बाबा ने प्रश्न के उत्तर में बताया कि दत्तक देने के नियम, उत्तराधिकार के नियम, तलाक संबंधी नियम आदि को विवाद के अंतर्गत लाया जाए, समलैंगिक संबंध वाले अपने आप को लैंगिक अल्पसंख्यक घोषित करके अपने लिए विभिन्न प्रकार के आरक्षण की मांग भी कर सकते हैं।
महामंडलेश्वर नवल गिरी महाराज ने उत्तर देते हुए बोला कि यह ऐसे अंतहीन विवादों को जन्म देगा जो स्वयं सर्वोच्च न्यायालय के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन सकता है। रोजगार के अधिकार, स्वास्थ्य के अधिकार, पर्यावरण संरक्षण के अधिकार, आतंकवाद से मुक्ति प्राप्त करने के अधिकार, मजहबी कट्टरता से मुक्ति प्राप्त करने के अधिकार जैसे कई विषय है जिन का निर्णय माननीय सर्वोच्च न्यायालय से होना है। इन प्राथमिक विषयों को छोड़कर केवल कुछ लोगों की इच्छा को ध्यान में रखकर इतनी तीव्रता कैसे दिखाई जा सकती है?
प्रख्यात कथावाचक सत्यमित्रा महाराज द्वारा कथन है कि सुप्रीम कोर्ट का यह कहना है कि इसको वैसे ही सुनेंगे जैसे राम जन्मभूमि का मामला सुना गया बहुत आपत्तिजनक है। राम जन्मभूमि के लिए 500 वर्ष तक हिंदू समाज ने संघर्ष किया। लाखों लोगों ने बलिदान दिए। न्यायालय द्वारा तथ्य और सत्य का परीक्षण एक लंबे समय तक लगातार किया गया। इस विषय की तुलना राम जन्मभूमि के साथ करना न केवल भगवान राम का अपमान है अपितु हिंदू समाज और उसके संघर्ष का भी अपमान है।
विहिप के महानगर अध्यक्ष अमित जैन ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय से निवेदन किया है कि वे तरह की अपमानजनक टिप्पणी को वापस लें। इस विषय पर आगे बढ़ने से पहले इसके विभिन्न पक्षों तथा उनके परिणामों का गहन अध्ययन करवाएं अन्यथा इस प्रक्रिया का समाज के द्वारा विधि सम्मत ढंग से विरोध किया जाएगा।
इस अवसर पर ब्रिज के प्रमुख संतों के अलावा ब्राह्मण सेवा संघ के अध्यक्ष पंडित सत्यभान शर्मा, विहिप मथुरा के मंत्री गोकुलेश गौतम, सामाजिक समरसता प्रमुख अजय अग्रवाल, प्रांत धर्माचार्य संपर्क प्रमुख राजकुमार शर्मा, सह प्रमुख ज्ञानेंद्र गौड़, राजीव कृष्ण शर्मा, मदन गोपाल बनर्जी, जितेंद्र, अल्केश पचौरी, माधव पांडे, रामू राजपूत, अर्जुन, नरेश आदि पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता उपस्थित रहे।