तबाही तो होनी थी! विरोध के बाद भी चल रहा था पॉवर प्रोजक्ट, अब मौत का तांडव
उत्तराखंड में चमोली में ऋषि गंगा नदी पर बन रहे हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट एक बार फिर स्थानीय लोगों की बड़ी विपदा का कारण बना है। लोगों के लगातार विरोध के बावजूद इसका निर्माण होता गया। आज जोशीमठ के पास हिम ग्लेशियर फटने से आए सैलाब ने सैकड़ों लोगों को लील लिया।
रिपोर्ट- रामकृष्ण वाजपेयी
नई दिल्ली। उत्तराखंड में गढ़वाल ग्लेशियरों के नीचे वाले इलाकों में झील फटने से होने वाली तबाही का खतरा दूसरे क्षेत्रों से अधिक है। वैज्ञानिकों की लगातार चेतावनियों को नजरअंदाज करने का ही नतीजा है कि पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में बादल फटने व ग्लेशियर फटने की घटनाएं बेतहाशा बढ़ गई हैं। ऋषि गंगा बांध परियोजना के पास ग्लेशियर का फटना इसी पारिस्थितिकी से खिलवाड़ की एक कड़ी है। रिशी गंगा परियोजना का लंबे समय से विरोध किया जा रहा है लेकिन इसे लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है।
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सैलाब ने सैकड़ों लोगों को लीला
चमोली में ऋषि गंगा नदी पर बन रहे हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट एक बार फिर स्थानीय लोगों की बड़ी विपदा का कारण बना है। लोगों के लगातार विरोध के बावजूद इसका निर्माण होता गया। आज जोशीमठ के पास हिम ग्लेशियर फटने से आए सैलाब ने सैकड़ों लोगों को लील लिया। इसका जिम्मेदार कौन है।
जिस उत्तराखंड में जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन हुआ था। आज उनकी संतानें ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ़ खड़ी हुईं लेकिन उनकी नहीं सुनी गई।
रैणी गांव के लोगों ने अन्य बातों के अलावा इस प्रोजेक्ट के लिए क्षेत्र में की जा रही ब्लास्टिंग पर सवाल उठाए थे। जिस उत्तराखंड में एक पत्थर के गिरने पर उसकी गूंज से पहाड़ दरक जाते हैं वहां विस्फोट कर पत्थर तोड़े गए। जंगलों को साफ कर दिया गया।
वर्ष 2005 में ऋषि गंगा नदी पर पावर प्रोजेक्ट स्थापित किया गया था। पॉवर प्रोजेक्ट के लिए किये जा रहे निर्माण कार्यों की वजह से नंदा देवी बायो स्फेयर रिजर्व एरिया को नुकसान पहुंचा। नदी किनारे स्टोन क्रशर यूनिट लगाए गए। गांववालों को उस हिस्से में जाने से रोक दिया गया।
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प्रोजेक्ट के निर्माण से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा और आज यह तबाही उसी की एक कड़ी है। नदी के किनारे रहने वाले कम पढ़े-लिखे लोग हैं और वह कंपनी के रोजगार देने के झांसे में आ गए।
स्थानीय विधायक महेंद्र भट्ट ने भी कहा था कि क्षेत्र में नियमों को ताक पर रखकर काम किया जा रहा है। ऋषि गंगा नदी पर उत्तराखंड जल विद्युत निगम यानी यूजेवीएन के साथ प्राइवेट कंपनी के भी पावर प्रोजेक्ट बन रहे हैं।
ये हैं उत्तराखण्ड के प्रमुख बांध / जल विद्युत परियोजनाएं
उत्तराखण्ड विद्युत निगम-: 1 अप्रैल 2001 को स्थापित किया गया।
THDC टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन-: 12 जुलाई 1988 को स्थापित।
PTCUL पॉवर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन ऑफ़ उत्तराखण्ड लिमिटेड-: 1 जून 2004 को स्थापित।
UPCL उत्तराखण्ड पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड-: यह उत्तराखण्ड विद्युत निगम के अधीन ही कार्य करता है।
UREDA उत्तराखण्ड रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी-: अल्मोड़ा में 2001 में स्थापित।
ये हैं प्रमुख जल-विद्युत परियोजनाएं:
ग्लोगी जल विधुत परियोजना, टिहरी परियोजना, विष्णु प्रयाग जल विधुत परियोजना, धौलीगंगा परियोजना व पंचेश्वर बाँध परियोजना
इनके अलावा कुछ अन्य जल विद्युत परियोजनाएं मनेरी भाली परियोजना – भागीरथी , 90 मेगावाट , उत्तरकाशी, श्रीनगर जल विधुत परियोजना – अलकनंदा, 330 मेगावाट , श्रीनगर, पथरी परियोजना – गंगा नहर , 20 मेगावाट, हरिद्वार, खटीमा परियोजना – शारदा , 41 मेगावाट , उधम सिंह नगर, छिबरो परियोजना – टोंस , 240 मेगावाट , देहरादून, रामगंगा परियोजना – रामगंगा , 198 मेगावाट , पौड़ी, टनकपुर परियोजना – शारदा , 120 मेगावाट , चम्पावत हैं।
कुल मिलाकर बांधों और परियोजनाओं ने उत्तराखंड के विनाश की इबारत लिख दी है। अफसोस की बात यह है कि केदारनाथ और रामबाड़ा की तबाही से हमने कोई सबक नहीं लिया।
ऐसी घटनाएं पहले भी होती थीं लेकिन नदियों के बहाव क्षेत्र के पास लोग घर न बनाकर खेती बाड़ी किया करते थे आज नदियों के बहाव को अवरुद्ध कर जो विकास हो रहा है वह तबाही का कारण बन रहा है। पर्यावरणविद लगातार विकास के इस स्वरूप का विरोध करते रहे हैं।
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