Afghanistan Taliban: अफगानिस्तान की महिला जांबाज, डटकर मुसीबतों का कर रहीं सामना

Afghanistan Taliban: तालिबान के आतंक से अफगानिस्तान में लोगों ने अपने ठिकाने भी बदलने शुरू कर दिये हैं। पर कुछ महिलाएं हैं जो डटकर इस मुसीबत का सामना कर रही हैं ।

Written By :  AKshita Pidiha
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2021-08-07 13:20 IST

अफ़ग़ानिस्तान की महिला जाबांज (फोटो- सोशल मीडिया)

Afghanistan Taliban: तालिबान और अफगानिस्तान की स्तिथि अभी भी अस्थिर है।चारों ओर युद्ध जैसा माहौल है।तालिबान लगातार अपने हमलों से अफगानिस्तान की जनता को डराने , धमकाने और लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर कर रहा है।इसी वजह से कई अफ़गानी पाकिस्तान की सीमा पर जाते हुए दिखाई दे रहे हैं।हालाँकि पाकिस्तान ने अपनी सीमाओं पर कड़ा पहरा लगा दिया है जिसके बाद अफगानियों को किसी और देश की ओर भागना पड़ रहा है।

कल की खबर में तालिबानियों ने सरकारी मीडिया प्रमुख की हत्या कर दी।इसके बाद अफगानिस्तान में लोगों ने अपने ठिकाने भी बदलने शुरू कर दिये हैं। पर कुछ महिलाएं हैं जो डटकर इस मुसीबत का सामना कर रही हैं ।और कहीं और जाने के विकल्प होने के बाद भी लोगों की मदद कर रहीं हैं।

अपने देश से प्यार करते

कमिला सिद्दीकी- कमिला सिद्दीकी एक कपड़ा कारोबारी हैं।जिन्होने 90 के दशक में अपना व्यापार शुरू किया।कमिला बताती हैं कि तालिबान के शासन में इन्होंने व्यापार शुरू किया।जिसमें महिलाओं लड़कियों के अलावा , कई तालिबानियों की बच्चियों को भी रोजगार मिला।

उनका कहना है वे तब भी काम जारी रखती थी जब तालिबान स्कूल, कॉलेजो में रॉकेट से हमले करते थे।उस वक्त भी कमिला के पिता ने उन्हें देश ये प्यार करना सिखाया।उनके पास कभी भी देश छोड़ने के विकल्प हो सकते हैं।पर वे उनके लिए अभी भी रुकी है जो अफगानिस्तान में रहकर बड़ा होना चाहते हैं।बड़ी तनख्वाह पाना चाहते हैं।जो अभी भी अपने देश से प्यार करते हैं।

वे कहती हैं कि तालिबान में अभी भी स्थिति खतरनाक है पर हम जब अफगान गृह युद्ध,रूसी आक्रमण, तालिबानी आक्रमण में कहीं भागे नही तो अभी भी कहीं नही जायंगे।

फोटो- सोशल मीडिया

पिछले हफ्ते ही अमेरिका ने 200 दुभाषियों को जिन्होंने अमेरिका का साथ दिया था उनको अमेरिका वापस बुला किया पर कमिला जैसी अनेक महिलाएं अभी भी अफगानिस्तान में लड़ने का जज्बा दिखा रहीं हैं।

वजमा फ्रो- 2000 के दशक से महिला अधिकारों और शांति के किये काम कर रही वज्मा फ्रो का दिन रात 11.30 बजे से शुरू होता है।वे पूरी- पूरी रात कंधार ,हेलमंद के इलाकों में घूमती हैं और उन महिलाओं से बात करती हैं जो दर्द झेल रहीं हैं।

हमारा मकसद लोगोंं की आवाज बनना

वजमा कहती है कि फोन लाइन ,एयरपोर्ट बन्द होने से हमारी सुरक्षा भी खतरे में है।पर हम बिना डरे लड़ते रहेंगे।वे कहती हैं कि हमें जिंदगी बलिदान करनी होगी और उसके बाद जुलूस निकाले जाएंगे पर हमारा मकसद तब तक ऐसे दबे हुए लोगों की आवाज बनना ही होगा।और हमे भरोसा है ऐसे लोगो की आवाज हमारे साथ होगी।

नरगिस नेहान - ब्रेस्ट कैंसर सर्वाइवर और एनजीओ प्रमुख नरगिस नेहान कहती हैं कि हमें पता है कि हम तालिबानियों के निशाने पर हैं। इसलिये मैंने अपनी माँ को समझा दिया है कि जो भी भविष्य में होगा उसके लिए वे तैयार रहें।

नरगिस कहती हैं तालिबान कब तक हमला करेंगे। हम महिलाएं जब सब एकजुट हो जायँगी तो उन्हें ये छोड़ना ही होगा।वे ज्यादा समय तक किसी को आतंकित नही कर पाएंगे।ये अंतहीन युद्ध नही है।और हमारे पास लड़ना ही एक मात्र विकल्प है।

इन के अलावा भी कई महिलाओं के संगठन मिलकर महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रहें हैं और ये तालिबान के विरुद्ध एक जुट होना सीख रहे हैं।


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