जल्द महंगा पेट्रोल-डीजल: आतंकियों के हमले का पड़ेगा बुरा असर
सऊदी अरब के राष्ट्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस कंपनी के दो संयंत्रों पर ड्रोन से आतंकी हमला किया गया था। जिस तेल कंपनी पर हमला हुआ था वो राजस्व के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी कच्चे तेल की कंपनी है।
सऊदी अरब के राष्ट्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस कंपनी के दो संयंत्रों पर ड्रोन से आतंकी हमला किया गया था। जिस तेल कंपनी पर हमला हुआ था वो राजस्व के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी कच्चे तेल की कंपनी है। कंपनी पर हुए हमले के बाद वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की सप्लाई में 5 फीसदी की कमी आने वाली है। इस हमले के बाद पर्शियन गल्फ क्षेत्र के साथ-साथ भारत के लिए भी ये चिंतापूर्वक स्थिति है। दरअसल, भारत कच्चे तेल के मामले में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आयातक देश है और इस हमले के बाद भारत की चिंता बढ़ गई है।
कच्चे तेल की कमी से गुजरना पड़ सकता है भारत को-
सऊदी अरामको पर हुए इस हमले के बाद दुनिया भर के कच्चे तेल के आयातक देशों को इसकी कमी से गुजरना पड़ सकता है। इस हमले के बाद सऊदी अमराको ने विश्वास जताया है कि वो जल्द ही इस स्थिति से रिकवर कर लेगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी पर हुए हमले के बाद कच्चे तेल में हर महीने 150MM बैरल की कमी हो सकती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर ऐसा होता है तो इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल के पार जा सकता है।
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कीमतों में हो सकता है इजाफा-
सऊदी अमराको पर हुए इस हमले की यमन के हूती विद्रोहियों द्वारा जिम्मेदारी लिए जाने के बाद दुनियाभर के ट्रेडर्स भी कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल होने की आशंका जता रहे हैं। बिजनेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पर्शियन गल्फ की स्थिति पर भारत की कड़ी नजर है।
दूसरा सबसे बड़ा स्त्रोत है सऊदी अरब-
बता दें कि सऊदी अरब भारत के कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण स्त्रोत है। भारत के लिए कच्चे तेल और कुकिंग गैस की आपूर्ति के लिए सऊदी अरब दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। ऐसे में हुए हमले के बाद तेल की कीमतों का असर भारत पर भी पड़ेगा। तेल की कीमतों में तेजी से इजाफा होने के कारण भारत के तेल आयात बिल के साथ राजकोषीय घाटे पर भी बुरा असर पड़ेगा। बता दें कि भारत ने साल 2018-2019 में कच्चे तेल क आयात के लिए करीब 111.9 अरब डॉलर खर्च किया था। कच्चे तेल की कीमत में प्रति डॉलर के इजाफा से भारत पर सालाना आयात बिल पर करीब 10,700 रुपये का असर होगा।
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बता दें कि भारत में कुल जरुरतों में 80 फीसदी से अधिक कच्चे तेल और 18 फीसदी नेचुरल गैस का हिस्सा आयात द्वारा ही पूरा किया जाता था।
इसके साथ ही नरेन्द्र मोदी की एनडीए सरकार पर भी इसका असर होने वाला है। आर्थिक कमजोरी, वैश्विक मंदी के डर और ट्रेड वॉर के अनिश्चितता के बीच अब कच्चे तेल की कीमतों में इजाफे से घरेलू बाजार के ग्राहकों पर बुरा असर पड़ सकता है।
कच्चे तेल की कीमत जुलाई 2009 में 147 डॉलर प्रति बैरल के साथ उच्चतम स्तर पर थी। जानकारी के मुताबिक, उस समय घरेलू बाजार में पेट्रोल की कीमत 48 रुपये प्रति लीटर और डीजल 35 रुपये प्रति लीटर के आसपास था।
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