September 11 attacks Anniversary: 9/11 के बाद बदल गयी अमेरिका की जिन्दगी, अब हर आदमी और हर कोने पर है जासूसों की नजर

9/11 के बाद अमेरिका ने अपनी किलेबंदी जिस तरह की वह लगातार मजबूत होती गयी है। अब अमेरिका में जिस तरह का सर्विलांस है उसकी कल्पना 2001 के पहले शायद ही किसी ने की होगी।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Ashiki
Update:2021-09-11 14:28 IST

9/11 की फाइल फोटो, (सा. सोशल मीडिया )

नई दिल्ली: दुनियाभर के जिहादियों का टॉप दुश्मन है अमेरिका, लेकिन 2001 के बाद 9/11 जैसी घटना दोहराई नहीं जा सकी है। इसकी एक ही वजह है - न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 11 सितम्बर, 2001 के आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ ग्लोबल अभियान छेड़ा। बीते 20 सालों में हजारों आतंकी, षड्यंत्रकारी और उनके मददगारों को ढूंढ ढूंढ ख़त्म किया, साजिशें नाकाम कीं, जिससे चलते परिंदा पर नहीं मार सका है।

9/11 के बाद अमेरिका ने अपनी किलेबंदी जिस तरह की वह लगातार मजबूत होती गयी है। अब अमेरिका में जिस तरह का सर्विलांस है उसकी कल्पना 2001 के पहले शायद ही किसी ने की होगी। दरअसल, 9/11 के तुरंत बाद इस बात की पड़ताल शुरू हुई कि आखिर इंटेलिजेंस एजेंसियां क्यों विफल हो गईं। किन कमियों के चलते आतंकवादी अमेरिका में घुसने में सफल रहे थे।

पेट्रियट एक्ट

दरअसल, 9/11 के हमलों के सिर्फ 6 हफ़्तों बाद अमेरिकी कांग्रेस में पेट्रियट एक्ट पास कर दिया गया। इस कानून का एक ही मकसद था, साजिशों और आतंकियों का पता लगाना। पेट्रियट एक्ट के तहत अमेरिका के भीतर सर्विलांस यानी खुफियागीरी करने के व्यापक अधिकार एफबीआई जैसी इंटेलिजेंस एजेंसियों को दे दिए गए। इसके अलावा छोटी से छोटी जानकारी एकत्र करने के लिए कई लेवल की व्यवस्था कर दी गयी थी।


यही नहीं, अमेरिकी नागरिकों को निजता, तलाशी और जब्ती से सम्बंधित मिली आज़ादी व सुरक्षा को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर खत्म कर दिया गया। कुल मिला कर यह कानून अमेरिका में आन्तरिक जासूसी का अल्टीमेट औजार बन गया। असल में चिंता और आशंका इस बात की थी कि 9/11 के हमले आतंकी वारदातों की शुरुआत भर हैं। ये आशंका बन गयी कि अमेरिका के शहरों में अनेक आतंकी सेल सक्रिय हैं जो हमले करने के आदेशों के इन्तजार में हैं। इस आशंका के चलते आनन-फानन में सरकार और संसद ने कदम उठाये और कानून पास कर दिया।

देश में मौजूद आतंकियों को ढूंढ निकलने के लिए अमेरिकी कांग्रेस ने फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन (एफबीआई) और नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी (एनएसए) को सूचना एकत्र करने और उसे शेयर करने की नई क्षमता और अधिकार दे दिए। मिसाल के तौर पर पेट्रियट एक्ट में इंटेलिजेंस एजेंसियों को किसी भी व्यक्ति के लाइब्रेरी रिकॉर्ड और इन्टरनेट सर्च हिस्ट्री को पता करने का अधिकार दे दिया गया। खुफिया एजेंट्स किसी के भी घर में बिना सूचना के तलाशी ले सकते थे। कोई निश्चित कारण बताये बगैर लैंड लाइन फ़ोन लाइनें टैप की जा सकती थीं।


पेट्रियट एक्ट के खिलाफ सिविल लिबर्टी संगठनों ने काफी आवाजें उठाईं कि इस कानून से लोगों की निजता का उल्लंघन हो रहा है। लेकिन इसके बावजूद 2008 में तो एक और भी ज्यादा विवादास्पद कानून 'फीसा अमेंडमेंट एक्ट' पास कर दिया गया । इसके तहत एनएसए को अमेरिकी नागरिकों की फोन कॉल, टेक्स्ट मैसेज और ईमेल की जासूसी करने का व्यापक अधिकार दे दिया गया। कहा गया कि इससे उन विदेशी नागरिकों को टारगेट किया जाएगा जिन पर आतंकवाद का संदेह है। सर्विलांस के लिए 2013 में 52.6 अरब डालर का बजट था – इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस लेवल का इंटेलिजेंस नेटवर्क स्थापित किया गया था। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि इंटेलिजेंस के काम में अमेरिका की 16 जासूसी एजेंसियां औए 1 लाख से ज्यादा कर्मचारी लगे हुए थे। अब इनकी वास्तविक संख्या क्या है, कोई नहीं जानता।

बदल गया अमेरिका

ट्विन टावर पर हमले के अलावा इतिहास में 11 सितम्बर , 2001 एक ऐसे दिन के रूप में दर्ज है जिस दिन के बाद की जिन्दगी एकदम अलग हो गयी है। 9/11 से पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि अमेरिका पर ऐसा भी हमला हो सकता है। इस घटना ने अमेरिकी जनजीवन पर बहुत गहरी छाप छोड़ी। एक आम धारणा बन गयी कि आतंकवादी अब कभी भी और कहीं भी हमला कर सकते हैं। यह हमला जैविक या एटमी भी हो सकता है। एक समान सोच यह भी बनी कि अब कोई हमला न होने पाए इसके लिए सभी जरूरी उपाय किये जाने चाहिए। दुःख, निराशा और आक्रोश से भरे अमेरीकियों ने अपने नेताओं से कार्रवाई की अपेक्षा की जिसके बाद कांग्रेस और व्हाइट हाउस ने देश के भीतर और बाहर किसी भी कीमत पर आतंकवादियों को रोकने व उन्हें ख़त्म करने के उद्देश्य से सैन्य, पुलिसिंग और इंटेलिजेंस के अभूतपूर्व उपाय और कदम उठाये।

बदल गयी हवाई यात्रा

9/11 को अल कायदा के 19 आतंकी न सिर्फ अमेरिका की कमर्शियल उड़ानों में हथियारों समेत प्रवेश करने में कामयाब हो गए थे बल्कि विमानों के कॉकपिट में भी घुस गए थे। न सिर्फ इंटेलिजेंस एजेंसियां आतंकियों को पहचानने में फेल रही थीं बल्कि हवाई अड्डों की सुरक्षा व्यवस्था भी नाकाम साबित हुई थी। वैसे तो 9/11 के पहले भी हवाई उड़ानों को लेकर आतंकी वारदातें हो चुकी थीं। विमानों का अपहरण और उड़ानों में बमबाजी की घटनाएँ हुईं थीं । लेकिन इसके बावजूद एयरलाइन्स के लिए सुरक्षा कभी शीर्ष प्राथमिकता में नहीं रही। 9/11 के पहले अमेरिका में लोगों को एयरपोर्ट में घुसने और इधर उधर घूमने के लिए टिकट की जरूरत नहीं होती थी। फ्लाइट में प्रवेश करने से पहले यात्रियों के आईडी प्रूफ को चेक नहीं किया जाता था। चेक पॉइंट से गुजरने के पहले यात्रियों को अपनी जेब में रखे फुटकर सिक्के ही निकल कर अलग रखने होते थे, जमा तलाशी नहीं के बराबर थी। चेक-इन किये गए बैगेज की स्कैनिंग भी नहीं होती थी। अधिकांश एयरपोर्ट्स पर कर्मचारियों की पड़ताल भी नहीं की जाती थी। लेकिन 9/11 के बाद सब बदल गया। नवम्बर 2002 में ट्रांसपोर्टेशन सिक्यूरिटी एडमिनिस्ट्रेशन बनाया गया जिसके बाद हवाई अड्डों और फ्लाइट्स की सुरक्षा एकदम अगले लेवल पर पहुँच गयी। दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका में यह पहला सबसे बड़ा फ़ेडरल स्टार्टअप था, जिसका काम सभी हवाई अड्डों में सुरक्षा व्यवस्था कायम करना है।


इमिग्रेशन और डिपोर्टेशन

बुश प्रशासन ने 2002 में डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्यूरिटी की स्थापना की। यह विभाग 22 सरकारी एजेंसियों का विलय करके बनाया गया था। इसके अलावा यूएस इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एन्फोर्समेंट (आईस) विभाग बनाया गया। जहाँ होमलैंड सिक्यूरिटी का काम आन्तरिक सुरक्षा को देखना था वहीं 'आईस' का काम अवांछित लोगों को देश से निकाल बाहर करना था। ओबामा के कार्यकाल में 2009 – 2010 में सर्वाधिक 4 लाख लोग सालाना अमेरिका से डिपोर्ट किये गए। 2001 के बाद अमेरिका में किसी का भी आना पहले जैसा आसान नहीं रहा। वीजा आवेदनों की सघन और सख्त चेकिंग शुरू की गयी।

आतंकवाद के खिलाफ युद्ध

20 सितम्बर को प्रेसिडेंट जॉर्ज डब्लू बुश ने कांग्रेस और देश को संबोधित करते हुए बताया कि उन्होंने किस तरह आतंकवाद के खिलाफ एक ग्लोबल युद्ध छेड़ दिया है। बुश ने उस ऐतिहासिक संबोधन में कहा – "आतंक के खिलाफ हमारी लड़ाई अल कायदा से शुरू होती है । लेकिन ये सिर्फ वहीँ ख़त्म नहीं होगी। यह लड़ाई तब तक ख़त्म नहीं होगी जब तक दुनिया के हरेक आतंकी ग्रुप को ढूंढ कर रोका और हराया नहीं दिया जाता।" 9/11 के एक महीने के भीतर अमेरिकी सेनाओं ने अफगानिस्तान पर धावा बोल दिया।.यह लड़ाई अमेरिका के इतिहास की सबसे लम्बी लड़ाई साबित हुई है। इस लड़ाई को अमेरिकी जनता व नाटो के सहयोगियों का साथ मिला था। इसका उद्देश्य था अल कायदा को छिन्न भिन्न कर देना, तालिबान को कुचल देना और ओसामा बिन लादेन को ख़त्म कर देना। ये लड़ाई कई देशों में तमाम संगठनों के खिलाफ चलाई गयी। आतंकवाद अभी भी कायम है। लेकिन यह भी सच है कि उसको कुचलने में भी काफी हद तक सफलता पाई जा चुकी है।

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