World News : अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डॉलर का खेल

Update:2019-11-29 12:14 IST
World News : अमेरिकी के राष्ट्रपति  चुनाव में डॉलर का खेल

वाशिंगटन : चुनाव में पैसे का खेल कोई नई बात नहीं है और अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव भी इससे अछूता नहीं है। पिछली बार डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव मैदान में उतरने से जिस बहस को हवा मिली थी वो इस बार दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक माइकल ब्लूमबर्ग के राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होने के बाद और तेज हो गई है। वैसे, चुनावों के लिए पैसा अहम है लेकिन इतना भी नहीं कि नतीजों को प्रभावित कर सके। आखिर पिछले चुनाव में ट्रंप के मुकाबले दोगुनी रकम (60 करोड़ डॉलर) खर्च करने के बाद भी हिलेरी क्लिंटन हार गईं।

माइकल ब्लूमबर्ग न्यूयॉर्क के भूतपूर्व मेयर हैं। उनकी की निजी संपत्ति 50 अरब डॉलर से ज्यादा है। ब्लूमबर्ग के एक प्रमुख सलाहकार के अनुसार वे डोनाल्ड ट्रंप को अगले साल चुनाव में हराने के लिए जितना जरूरी होगा उतना खर्च कर सकते हैं। दरअसल, अमेरिका में किसी उम्मीदवार के चुनाव पर पैसा खर्च करने की कोई सीमा नहीं है। अमेरिका के कानून में यह तय किया गया है कि किसी उम्मीदवार को कोई आदमी 2,800 डॉलर से ज्यादा का चंदा नहीं दे सकता। हालांकि उम्मीदवारों को छूट है कि वे अपनी निजी संपत्ति से जितना चाहें उतना पैसा चुनाव प्रचार पर खर्च कर सकते हैं। इसका फायदा ब्लूमबर्ग, टॉम स्टेयर और उन जैसे दूसरे अरबपति उम्मीदवारों को मिलेगा। जो लोग अमीर नहीं हैं वो भी चुाव में करोड़ों डॉलर की रकम खर्च कर सकते हैं। पॉलिटिकल एक्शन कमेटियों के चुनाव प्रचार के लिए असीमित धन जमा करने की छूट है हालांकि ये कमेटियां सीधे उम्मीदवारों से नहीं जुड़ी होती हैं। मुख्य उम्मीदवार आमतौर पर सार्वजनिक धन का इस्तेमाल करते हैं। इसके जरिए उन्हें संघीय धन का उपयोग करने का अधिकार मिल जाता है हालांकि इस खर्च की कुछ सीमाएं हैं।

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संघीय खजाना

संघीय खजाने से उम्मीदवारों को प्राइमरी और आम चुनाव दोनों के लिए पैसा मिल सकता है। अमेरिकी का संघीय चुनाव आयोग के मुताबिक प्राइमरी के अभियान में उम्मीदवार को धन देने वाले हर समर्थक के बदले 250 डॉलर की रकम मिल सकती है। इसके अलावा प्रमुख पार्टी के उम्मीदवारों को आम चुनाव में खर्च करने के लिए भी पैसा मिलता है। 1976 से 2012 के बीच प्रमुख पार्टियों के उन सम्मेलनों के लिए पैसा दिया गया जिनमें उम्मीदवारों का नामांकन होता है। इसके अलावा छोटी पार्टियों को इन सम्मेलनों के लिए कुछ आर्थिक मदद दी गई। 2014 में यह कानून बन गया कि सम्मेलनों के लिए सरकारी पैसा नहीं मिलेगा। उम्मीदवारों को बहुत सारा पैसा जुटाने की जरूरत पड़ती है ताकि वो अपनी प्रचार टीम को भुगतान कर सकें या फिर विज्ञापन खरीद सकें।

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खर्च में ब्लूमबर्ग पहले ही आगे

माइकल ब्लूमबर्ग ने २४ नवम्बर को ही अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल होने का एलान किया। इससे पहले ही वह अपने पैसे का इस्तेमाल नए-नए आयाम गढऩे में कर रहे हैं। पिछले हफ्ते उन्होंने 3.35 करोड़ डॉलर खर्च कर 20 राज्यों में टीवी विज्ञापन के स्लॉट खरीदे। इससे पहले इस काम पर सबसे ज्यादा रकम बराक ओबामा ने खर्च की थी। राजनीतिक विज्ञापनों पर नजर रखने वाली फर्म एडवर्टाइजिंग एनालिटिक्स के मुताबिक ओबामा ने 2012 में इसके लिए 2.5 करोड़ डॉलर खर्च किए थे। इससे पहले ब्लूमबर्ग एलान कर चुके है कि वह ट्रंप को निशाना बनाने वाले विज्ञापनों पर 10 करोड़ डॉलर खर्च करेंगे। ब्लूमबर्ग का कहना है कि अपनी संपत्ति का इस्तेमाल कर वे खेमेबाजी करने वाले गुटों के असर से खुद को आजाद रख सकेंगे। उम्मीदवारों पर इन गुटों के असर के बारे में अकसर चर्चा होती है। ये गुट राष्ट्रपतियों को नीतियां बनाने या उनमें बदलाव करने पर विवश करते हैं। 2015-16 में चुनाव मैदान में उतरे डोनाल्ड ट्रंप ने भी यही दलील दी थी। अमेरिका में व्हाइट हाउस की दौड़ में शामिल होने वाले पहले ट्रंप ने कहा था कि उनका चुनाव खर्च उनकी कंपनी उठाएगी ताकि उन पर किसी का कर्ज ना रहे। ट्रंप ने हालांकि 6.6 करोड़ डॉलर अपनी जेब से खर्च किए लेकिन आखिर में उन्होंने भी कई बड़े दानदाताओं से चंदा लिया।

 

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