Artificial Rain Technology: दुबई ने आर्टिफिशियल बारिश से दिखाई नई राह मिनटों में हुई बारिश, जानिए क्लाउड सीडिंग और आर्टिफीसियल बारिश की प्रक्रिया

Artificial Rain Technology: क्लाउड सीडिंग एक ऐसी विधि है जिसके माध्यम से नकली बारिश बनाने के लिए बादलों को रसायनों से इंजेक्ट किया जाता है या बिजली से झटका दिया जाता है।    

Update: 2023-05-18 20:25 GMT
Artificial Rain Technology (फोटो: सोशल मीडिया)

Artificial Rain Technology: भारत के कुछ हिस्सों में मॉनसून द्वारा किए गए कहर के बारे में खबरें आती रहती हैं, दुबई ने अपने लिए कुछ बारिश की कल्पना की है। क्लाउड सीडिंग की एक नई विधि का उपयोग करते हुए जिसमें उन्होंने बादलों को बिजली से चार्ज किया। संयुक्त अरब अमीरात के इस शहर को 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान से जूझने के बाद कुछ राहत मिली। पिछले कुछ समय से क्लाउड सीडिंग चल रही है और सूखे को कम करने के लिए कई मौकों पर भारत में प्रयोग किया गया है।

संयुक्त अरब अमीरात में प्रयोग

संयुक्त अरब अमीरात में मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने क्लाउड सीडिंग तकनीक का एक नया रूप इस्तेमाल किया। वैज्ञानिकों ने रसायनों पर निर्भर रहने के बजाय बिजली का उपयोग किया। इन बिजली उपकरणों ने पानी की बूंदों को बड़े आकार में संयोजित करने के लिए मजबूर किया, जिससे पानी की बूंदें उड़ने के बजाय जमीन से टकराने लगीं।

तकनीक यूऐई के लिए सटीक

तकनीक संयुक्त अरब अमीरात में परीक्षण के लिए भी एकदम सही है। क्लाउड सीडिंग, जैसा कि नाम से पता चलता है, वर्षा पैदा करने के लिए बादलों की उपस्थिति की आवश्यकता होती है। जबकि संयुक्त अरब अमीरात एक सूखा देश है, ओमान की खाड़ी से नमी, फारस की खाड़ी और अरब सागर देश पर भारी बादल बनाते हैं। वर्ष की शुरुआत के बाद से यूएई राष्ट्रीय मौसम विज्ञान केंद्र द्वारा 126 से अधिक क्लाउड सीडिंग उड़ानें संचालित की गईं।तकनीक उसी पर आधारित है जिसका अध्ययन और शोध यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के वैज्ञानिकों ने किया था।

नयी और पुरानी विधि में अंतर

1)परंपरागत क्लाउड सीडिंग: इसमें वायुमंडल में हेलिकॉप्टर यह विमानों के जरिए कुछ रसायन जैसे सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड, ड्राई आइस के कणों का छिड़काव करते है। येह में मौजूद पानी को आकर्षित कर के बादल बनाते हैं जिससे बारिश होती है।

2)आधुनिक ड्रोन क्लाउड सीडिंग: दुबई ने क्लाउड सीडिंग के लिए एक नया तरीका अपनाया है। इसके लिए बिजली का करंट देकर बादलो को गीला किया जाता है। यह तकनीक परंपरागत विधि के मुकाबले हरित विकल्प मानी जाती है। इसमें ड्रोन के जरिये बिजली बनाकर क्लाउड सीडिंग करते है। यह कार्य विमान के जरिये भी हो सकता है लेकिन बैटरी वाले ड्रोन ज्यादा सफल और पर्यावरण के लिए सुरक्षित है।

रासायनिक कणो के छिड़काव, बादल बनना और फिर बारिश होना कुछ मिनटों का ही खेल है। इसमें बस 30 मिनट का समय लगता है। लेकिन बारिश होने का समय इस बात पर निर्भर करता है ही कणों का छिड़काव वायुमंडल की के सतह में किया जा रहा है।

चीन ने बारिश को ओलंपिक से दूर रखा

चीन ने वर्ष 2008 में बीजिंग में आयोजित ओलंपिक के दौरान बारिश की आशंका को दूर करने के लिए क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल किया था। इसके लिए आसमान में केमिकल युक्त रॉकेट छोड़ा गया ताकि खेल शुरू होने से पहले ही बारिश करा ली जाएं और बाद में बारिश न हो। चीन एक बड़ी मात्रा में प्रत्येक वर्ष आर्टिफीसियल बारिश का प्रयोग करता है।

आर्टिफिशियल बारिश का इतिहास

आर्टिफिशियल बारिश कराने के लिए पहली बार क्लाउड सीडिंग का प्रयोग वर्ष 1946 में अमेरिका हुआ था। तमिलनाडु सरकार ने वर्ष 1983, 1984-87, 1993-94 में आर्टिफिशियल बारिश पर काम किया था। कर्नाटक सरकार ने वर्ष 2003-04 में आर्टिफिशियल बारिश करवाई थी। आईआईटी कानपुर ने भी क्लाउड सीडिंग पर शोध करा है।

आर्टिफिशियल बारिश का भविष्य

ग्लोबल वार्मिंग के कारण कहीं बाढ़ तो कहीं अधिक सूखे से निपटने के लिए कुछ वैज्ञानिक इसे एक हथियार के रूप में मानते हैं। कुछ वैज्ञानिक से दुष्प्रभाव को लेकर चिंता में हैं। दो महीने क्लाउड सीडिंग के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया उससे भारत जैसे कृषि प्रधान देश में भी एक उम्मीद जागी है।

आर्टिफिशियल बारिश को लेकर आशंकाएं

कुछ वैज्ञानिक का मानना है कि आर्टिफिशियल बारिश की तकनीक का प्रयोग करके पर्यावरण से छेड़छाड़ करना सही नहीं है। जी ओजोन लेयर में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है। यह एक अच्छी चीज़ के साथ खतरा भी बताया जा रहा है। सिल्वर एक ऐसी धातु है जो पेड़ पौधे और जीव दोनों के लिए नुकसानदायक है।

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