युद्ध हुआ भयानक: हजारों सैनिकों की मौत के बाद साथ आए देश, लेकिन भारत खामोश
अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच नागोर्नो-काराबाख इलाके को लेकर बीते कई दिनों से लड़ाई छिड़ी हुई है। इस संघर्ष में पाकिस्तान भी अब टर्की के पदचिन्हों पर चल रहा है। बीते मंगलवार को पाकिस्तान ने अजरबैजान का खुलकर समर्थन किया।
नई दिल्ली। बीते कई दिनों से आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच चल रहे संघर्ष में पाकिस्तान भी अब टर्की क पदचिन्हों पर चल रहा है। बीते मंगलवार को पाकिस्तान ने अजरबैजान का खुलकर समर्थन किया। लेकिन पाकिस्तान और टर्की दोनों ही देश अजरबैजान की सैन्य सहायता की बात को पूरी तरह से खारिज कर चुके हैं। आपको बता दें कि अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच संघर्ष-विराम को लेकर बनी सहमति के बाद भी युद्ध अभी जारी है।
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अजरबैजान का हिस्सा है लेकिन कब्जा आर्मीनिया का
दरअसल अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच नागोर्नो-काराबाख इलाके को लेकर बीते कई दिनों से लड़ाई छिड़ी हुई है। ऐसे में नागोर्नो-काराबाख आधिकारिक तौर पर अजरबैजान का हिस्सा है लेकिन यहां कब्जा आर्मीनिया का है। साथ ही इस इलाके में आर्मीनियाई मूल के लोग ज्यादा निवास करते हैं। ऐसे में अजरबैजान एक मुस्लिम देश है और आर्मीनिया एक ईसाई बहुल देश है।
इसी कड़ी में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने मंगलवार को कहा कि उनका देश अजरबैजान की क्षेत्रीय संप्रुभता बनाए रखने के पक्ष में है। साथ ही टर्की ने भी कहा है कि जब तक आर्मीनिया अजरबैजान का कब्जा वाला इलाका नहीं लौटा देता, तब तक शांति वार्ता का कोई मतलब नहीं है। लेकिन सामने आई रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि टर्की सीरियाई लड़ाकों को अजरबैजान की सहायता के लिए भेज रहा है।
भारतीयों के इस रुख की एक वजह
ऐसे में भारत सरकार के तटस्थ रुख के बाद भारतीय सोशल मीडिया पर आर्मीनिया के समर्थन में हैं। पाकिस्तान और टर्की का अजरबैजान को समर्थन देना भी भारतीयों के इस रुख की एक वजह है। पाकिस्तान तो लंबे समय से भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करता रहा है।
बता दें, टर्की भी कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दे रहा है इसलिए भारत के साथ उसके भी रिश्तों में दरार आई है। लेकिन कश्मीर मुद्दे पर अजरबैजान का रुख भी भारत विरोधी रहा है।
इसी मुद्दे पर एक यूजर ने लिखा, भारत के आर्मीनिया और अजरबैजान दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं हालांकि, आर्मीनिया भारत को कश्मीर मुद्दे पर भी समर्थन देता रहा है और आर्मीनिया के पाकिस्तान के साथ भी कूटनीतिक संबंध नहीं हैं। यदि पाकिस्तान और टर्की किसी देश के खिलाफ हैं तो वो देश अपनी जगह पर सही ही होगा। भारत को आर्मीनिया का बेशर्त समर्थन करना चाहिए।
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कश्मीर को लेकर कूटनीतिक नुकसान
इसके अलावा स्पुतनिक के साथ बातचीत में भारत के पूर्व राजदूत अचल मल्होत्रा ने बताया, आर्मीनिया को समर्थन करने का मतलब है कि भारत आत्म-निर्णय के अधिकार का समर्थन कर रहा है। इस संघर्ष में क्षेत्रीय संप्रुभता का मामला है और भारत अगर आर्मीनिया का समर्थन करता है तो कश्मीर को लेकर कूटनीतिक नुकसान झेलने होंगे।
लेकिन पूर्व राजदूत ने कहा कि कश्मीर विवाद आर्मीनिया-अजरबैजान के मामले से काफी अलग भी है। भारत ने कश्मीर के पूर्व राजा हरि सिंह की सहमति से 1948 में इसका विलय किया था जबकि पाकिस्तान ने अवैध तरीके से कश्मीर पर कब्जा कर रखा है। पाकिस्तान और टर्की इस्लामिक सहयोग संगठन में भारत के खिलाफ तमाम मुस्लिम देशों की राय बदलने में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
1992 से ही कूटनीतिक संबंध
आगे भारत के पूर्व राजदूत ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि भारत अजरबैजान की तुलना में आर्मीनिया के ज्यादा करीब रहा है। दोनों देशों के बीच 1992 से ही कूटनीतिक संबंध रहे हैं। सन् 1992 के बाद से भारत की तरफ से राष्ट्रपति स्तर के तीन दौरे हुए।
आगे बताते हुए- एक 1995 में, दूसरा 2003 में और तीसरा 2017 में। विदेश मंत्री के स्तर पर भी भारत की तरफ से (2000, 2006, 2010) तीन दौरे हुए हैं। दूसरी ओर, भारत और अजरबैजान के बीच कभी भी शीर्ष स्तर के नेता का कोई दौरा नहीं हुआ। लेकिन कूटनीतिक रूप से आर्मीनिया के करीब होने के बावजूद भारत किसी एक का पक्ष लेने की स्थिति में नहीं है।
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