इसके लिए ट्रंप ने भारत को दी थी धमकी लेकिन अमेरिका में काम नहीं आई
अमेरिका से एक नई स्टडी में सामने आई है, जिसमें कहा गया है कि हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन (Hydroxy chloroquine) दवा के उपयोग से मरीजों की मौत ज्यादा हो रही है।
नई दिल्ली: इस समय पूरी दुनिया कोरोना वायरस के चलते आए चुनौतीपूर्ण समय का सामना कर रही है। इस वायरस से दुनिया के सबसे शक्तिशाली कहे जाने वाला देश अमेरिका बुरी तरह से जूझ रहा है। कोरोना की इस लड़ाई में बीते दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत से मदद की गुहार लगाई थी। उन्होंने भारत से हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन (Hydroxy chloroquine) दवा की सप्लाई करने की मांग की थी।
हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन के इस्तेमाल से हो रहीं ज्यादा मौतें
अमेरिका ने इस दवा के लिए धमकी भरे लहजे का उपयोग किया था। ट्रंप की इस मांग के बाद ये दवा पूरी दुनिया में चर्चा का केंद्र बन गई। अब अमेरिका से एक नई स्टडी में सामने आई है, जिसमें कहा गया है कि हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन (Hydroxy chloroquine) दवा के उपयोग से मरीजों की मौत ज्यादा हो रही है। स्टड़ी में कहा गया है कि सामान्य इलाज की तुलना में इस दवा की खुराक लेने वाले मरीजों की मौत ज्यादा हो रही है।
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सामान्य इलाज में मौत की आशंका कई गुनी कम
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के शोधकर्ताओं ने पाया है कि कोरोना से संक्रमित जिन मरीजों का इलाज सामान्य तरीकों से किया जा रहा है, उनके मरने की आशंका कम रहती है। वहीं जो मरीजों ने हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवा का उपयोग किया उनकी मौंते ज्यादा हुईं।
हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन से हुईं 28 फीसदी मौतें
इस स्टडी में साफ तौर पर कहा गया है कि हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवा के उपयोग से करीब 28 फीसदी कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत हो रही है। जबकि सामान्य प्रोसेस से इलाज करने पर केवल 11 फीसदी मरीजों की ही मौते हो रही हैं।
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मरीज की मौत की आशंका है ज्यादा
इस स्टडी से सामने आए परिणाम में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि कोरोना संक्रमित मरीजों को इस दवा की खुराक अकेले दी जाए या फिर एजिथ्रोमाइसिन के साथ दी जाए, मरीजों के बीमारी से ठीक होने के मौके कम रहते हैं। बल्कि मरीज की हालत बिगड़ने और उनके मरने की आशंका ज्यादा हो जाती है।
अमेरिका के शोधकर्ताओं ने इलाज के प्रक्रिया की जांच की
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के शोधकर्ताओं की टीम ने 368 कोरोना मरीजों के इलाज की प्रक्रिया की जांच की। इनमें से कई मरीजों की या तो जान गई या फिर उन्हें ठीक होने के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
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इस जांच में पता चला कि इनमें से 97 मरीजों को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन दवा दी गई। वहीं 113 मरीजों को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन के साथ एजिथ्रोमाइसिन दी गई। जबकि 158 मरीजों का सामान्य तरीक से इलाज किया गया। उन्हें इस दवा की खुराक नहीं दी गई।
जिन 97 मरीजों के केवल हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन की दवा दी गई, उनमें से 12.8 प्रतिशत मरीजों की मौत हो गई। वहीं जिन 11 मरीजों को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन के साथ एजिथ्रोमाइसिन दी गई, उनमें से 22.1 प्रतिशत मरीजों की मौत हो गई। जबकि जिन 158 मरीजों का सामान्य तरीक से इलाज किया गया, उनमें केवल 11.4 प्रतिशत मरीजों की मौत ही दर्ज की गई।
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कारगर साबित नहीं हुई ये दवा
इस स्टडी रिपोर्ट से ये साफ तौर स्पष्ट हो गया कि जिस दवा (एंटी मलेरिया दवा हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन) को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गेमचेंजर समझा था, ये दवा उतनी कारगर साबित नहीं हुई। न केवल अमेरिका में बल्कि ब्राजील में भी डॉक्टर इस दवा का उपयोग होने से बच रहे हैं। ब्राजील ने तो साफ तौर पर इस दवा का उपयोग करने से मना कर दिया है। क्योंकि इस दवा के उपयोग से मरीज को दिल और सांस से संबंधित दिक्कतें बढ़ जाती हैं।
NIH ने जारी की नई गाइडलाइंस
अगर मरीज को पहले से ही दिल या फिर सांस से रिलेटेड प्रॉब्लम्स हैं तो उसके लिए हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन किसी कहर से कम साबित नहीं होगा। अमेरिका में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) ने डॉक्टरों के लिए हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन और एजिथ्रोमाइसिन को लेकर नई गाइडलाइंस जारी की हैं। जारी गाइडलाइंस में इस दवा का उपयोग न करने के लिए कहा गया है।
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