अफगान-तालिबान वार्ता से पहले ही उभरे मतभेद
इस समझौते के मुताबिक अफगानिस्तान की सरकार को दस दिनों में तालिबान से वार्ता शुरू करनी है मगर अभी तक वार्ता में शामिल होने वाले नेताओं की टीम तक तैयार नहीं हो सकी है।
काबुल: अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते के बाद शुरू होने वाली वार्ता पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। इस समझौते के मुताबिक अफगानिस्तान की सरकार को दस दिनों में तालिबान से वार्ता शुरू करनी है मगर अभी तक वार्ता में शामिल होने वाले नेताओं की टीम तक तैयार नहीं हो सकी है। वार्ता से पहले ही टीम के सदस्यों को लेकर अफगान राष्ट्रपति अशरफगनीऔर चीफ एग्जीक्यूटिव अब्दुल्लाह मेंआपसी मतभेद भी पैदा हो गए हैं।
दस मार्च को होने वाली इस वार्ता की टीम को लेकर विवाद
अब्दुल्लाह सितंबर2014 से फरवरी 2020 तकअफगानिस्तान की यूनिटी सरकार के चीफ एग्जिक्यूटिव थे। वार्ता की टीम को लेकर विवाद
दस मार्च को होने वाली इस वार्ता की टीम को लेकर विवाद पैदा हो गया है। राष्ट्रपतिगनी चाहते हैं कि टीम में आठ सदस्य हों। उनका मानना है कि यदि इसमें इससे अधिक सदस्य शामिल हुए तो दल के अंदर ही दूसरा दल बन जाएगा। वे पांच दिनों में इस काम को पूरा कर लेना चाहतेहैं। उनका कहना है कि आपसी बातचीत के जरिये टीम का गठन किया जाना चाहिए।
वहीं अब्दुल्लाह ने गनी पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि राष्ट्रपति शांति वार्ता में अपनी बात मनवाना चाहते हैं। उनका आरोप है कि गनी इस पूरी प्रक्रिया में एकाधिकार बनाए रखना चाहते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इस सोच के कारण ही किसी अफगान नेता ने दोहा में अफगानिस्तान की शांति को लेकर हुए समझौते में शिरकत नहीं की थी।
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सरकार के अंदर भी मतभेद
चीफ एग्जीक्यूटिव अब्दुल्लाह ने कहा कि अफगानसरकार का एक सीक्रेट डेलिगेशन लगातार तालिबान के संपर्क में है। अफगानिस्तान के अखबार टोलो न्यूज के मुताबिक कुछ अफगान नेता ये भी मानते हैं कि तालिबान से वार्ता को लेकर सरकार के अंदर ही मतभेद हैं। हाई पीस काउंसिल सचिवालय के पूर्व प्रमुख अकरम खा पुलवाक भी मानते हैं कि इस वक्त विदेशों औरआंतरिक दबाव काफी ज्यादा है।वैसे उन्हें विश्वास है कि सरकार तालिबान से किसी समझौते तक जरूर पहुंचेगी।
तालिबानी कैदी को नहीं छोड़ेंगे
तालिबान से वार्ता से पहले ही राष्ट्रपति गनी के एक बयान ने राजनीतिक हलकों में भूचाल लादिया है। गनी ने कहा कि वार्ता से पहले सरकार किसी तालिबानी कैदी को नहीं छोड़ेगी। उनका कहना है कि ये समझौते में शामिल नहीं है।उन्होंने यह भी कहा है कि तालिबान कैदियों की रिहाई का मुद्दा वार्ता का हिस्सा तोबन सकता है, लेकिन इसे वार्ता के लिए शर्त के तौर पर मंजूरनहीं किया जाएगा।वैसे समझौते के मुताबिक अफगान सरकार 5000 कैदियों को रिहा करेगी, जबकि तालिबान 1000 अफगान कैदियों को रिहा करेगा।
तालिबान पर भरोसा नहीं
दूसरी ओरअमेरिकी संसद के एक धड़े का मानना है कि अफगानिस्तान में शांति लाने के लिए उठाया गया कदम सही तो है,लेकिन इसके साथ ही उसका यह भी मानना है कि तालिबान अभी विश्वास करने लायक नहीं है। इन सांसदों का कहना है कि इसमें संदेह है कि आतंकवादी संगठन समझौते में अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कहा है कि यदि तालिबान समझौते की शर्तों को मानने से पीछे हटातो वे अफगानिस्तान मेंऔर ज्यादा बड़ी फौज भेजेंगे।
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महिलाओं को सता रहा डर
तालिबान-अमेरिकी समझौते को लेकर अफगान महिलाएं भी डरी हुई हैं। इन महिलाओं को यह डर सता रहा है कि उनकी आजादी फिर छिन जाएगी। तालिबान के शासन के समय महिलाओं पर तमाम तरह की पाबंदियां लागू थीं। तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता से बे दखल होने के बाद यहां की महिलाओं को कई तरह की आजादी नसीब हुई। तालिबानी शासन खत्म होने के कारण ही आज अफगानी महिलाएं वहां की संसद से लेकर विभिन्न तरह के कारोबार और कई क्षेत्रों से जुड़ी हैं मगर अब महिलाएं फिर अपनी आजादी को सशंकित हैं।