Imran Khan Arrest Update: क्या इमरान का भी पहले के प्रधानमंत्रियों वाला होगा हश्र, यहाँ देखें क्या हुआ था इन सभी का

Imran Khan Arrest Update: पाकिस्तान में लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए जिन हुक्मरानों ने ‘इस्टैबलिशमेंट’ को चुनौती देने की हल्की कोशिश भी की, उन्हें दुध में से मक्खी की तरह सत्ता से निकाल कर फेंक दिया गया।

Update:2023-05-10 14:31 IST
Imran Khan Arrest Update (photo: social media )

Imran Khan Arrest Update: सैन्य तख्तापलट और राजनीतिक अस्थिरता के लिए कुख्यात पाकिस्तान सुलग रहा है। दुनिया के इस एकमात्र परमाणु शक्ति संपन्न इस्लामिक राष्ट्र में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद स्थिति बेकाबू हो चुकी है। खान के समर्थक और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ (पीटीआई) के हजारों कार्यकर्ता मुल्क के तमाम बड़े शहरों में सड़कों पर उतरे हुए हैं। राजधानी इस्लामाबाद, लाहौर, पेशावर और रावलपिंडी जैसे देश के बड़े शहरों से आगजनी और हिंसक प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं।

आजादी के बाद के पाकिस्तान का राजनीतिक इतिहास पूर्व प्रधानमंत्रियों के खून से रंगा हुआ है। भारत की तरह यहां भी प्रधानमंत्री मुल्क का सबसे ताकतवर सियासी शख्स होता है। लेकिन ये बिल्कुल हाथी की सफेद दांत की तरह होते हैं। असल सत्ता रावलपिंडी स्थित सैन्य मुख्यालय में बैठे जनरल के पास होती है। इनके लिए पाकिस्तान में एक शब्द का इस्तेमाल होता है ‘इस्टैबलिशमेंट’।

पाकिस्तान में लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए जिन हुक्मरानों ने ‘इस्टैबलिशमेंट’ को चुनौती देने की हल्की कोशिश भी की, उन्हें दुध में पड़ी मक्खी की तरह सत्ता से निकाल कर फेंक दिया गया। क्रिकेट की पिच से सियासत की पिच पर एंट्री करने वाले इमरान खान का भी ऐसा ही अंजाम दिखता नजर आ रहा है। कभी फौज के लाडले खान अब उसी सेना की आंखों में चुभ रहे हैं। वो और उनके लोगों ने जिस तरह से सेना और आईएसआई जैसी पाकिस्तान की दो सबसे ताकतवर संस्थाओं को चुनौती देने की कोशिश की है, उसने उनके खात्मे की पटकथा एक तरह से लिख दी है।

फौज के लाडले से बने दुश्मन नंबर वन

पाकिस्तान में कोई भी सियासी दल या राजनेता आर्मी या आईएसआई जैसी ताकतवर संस्थाओं के खिलाफ बोलने से पहले 100 बार सोचता है। 2018 में क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान जब पहली बार मुल्क के वजीर - ए - आजम (प्रधानमंत्री) बने तो सबको काफी हैरानी हुई। तब आम चुनाव में मात खाए सियासी दलों ने इमरान खान पर फौज की मदद से जीतने का आरोप लगाया। पीपीपी नेता और पाकिस्तान के मौजूदा विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी तब अपनी तकरीरों में कहा करते थे, इमरान खान ‘इलेक्टेड नहीं बल्कि सेलेक्टेड’ पीएम हैं।

भुट्टो का इशारा साफ तौर पर इस्टैबलिशमेंट की ओर था। इधर, इमरान खान और इस्टैबलिशमेंट के बीच हनीमून पीरियड जैसे ही खत्म हुआ विपक्षी दलों ने मौके को लपक लिया। पीपीपी, पीएमएलएन जैसी पार्टियां जो सेना पर हमलावर थीं, उन्हीं की मदद से पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मुवमेंट (पीडीएम) बनाकर आज सत्ता का सुख भोग रही हैं। वही, कभी फौज के डार्लिंग रहे इमरान आज की तारीख में सेना के दुश्मर नंबर वन बन गए हैं।

इमरान गिरफ्तार और निशाने पर आई आर्मी

बीते साल यानी 2022 के अप्रैल में इमरान खान भी पाकिस्तान के उन राजनेताओं की जमात में शामिल हो गए, जिन्हें बतौर प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही हटना पड़ा। इमरान का एक तरह से तख्तापलट हुआ था। जिसे सेना ने विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर अंजाम दिया। यही वजह है कि इस घटना के बाद से खान विपक्ष से सत्ता में आए सियासी दलों के साथ-साथ इस्टैबलिशमेंट पर भी खूब बरसे। उनकी तकरीरों में फौज और आईएसआई के जनरलों के खिलाफ आरोपों की बौछार रहती थी। फौज द्वारा चेताने के बावजूद प्रचंड लोकप्रियता की जहाज पर सवार इमरान नहीं रूके और तभी से उनकी उल्टी गिनती शुरू हो गई।

कल यानी मंगलवार 9 मई को पाक रेंजर्स ने इमरान खान को इस्लामबाद हाईकोर्ट से ही उठा लिया। उनके खिलाफ अल कादिर यूनिवर्सिटी स्कैम केस में ये कार्रवाई हुई। इसके बाद ही पूरे देश में हिंसक प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया। दिलचस्प बात ये है कि प्रदर्शनकारियों के निशाने पर सरकार नहीं बल्कि सेना है। रावलपिंडी स्थित मिलिट्री हेडक्वार्टर तक पर हमला किया गया। लाहौर में तो एक सैन्य अधिकारी के घर को आग के हवाले कर दिया गया। पूरे देश में धारा 144 लागू कर दी गई है।

हालांकि, पाकिस्तान के सियासी जानकार मानते हैं कि मुल्क के सुलगने और आर्मी को निशाना बनाए जाने से इमरान खान की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान मुल्क में कभी भी किसी लोकप्रिय राजनेता को पचा नहीं पाया है, जिसकी स्वीकार्यता आम जनता में इनती हो जाए कि फौज उसके सामने बौना लगने लगे। ऐसे में इमरान खान के खिलाफ आने वाले दिनों में सेना का और कठोर रूख देखने को मिल सकता है।

क्या इमरान का भी पहले के प्रधानमंत्रियों वाला होगा हश्र ?

पाकिस्तान में सत्ता से बेदखल होते ही प्रधानमंत्री या तो मारे जाते हैं या उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ता है। इमरान खान ने भी इस कुख्यात परंपरा को अब तक जीवित रखा है। पाकिस्तान में प्रधानमंत्री का पद सियासी तौर पर जितना महत्वपूर्ण है, वो उतना ही खतरनाक है। इसे शेर की सवारी करना कहा जाता है। अतीत में प्रधानमंत्रियों का हश्र काफी खौफनाक रहा है।

लियाकत अली खान

बंटवारे के बाद भारत से पाकिस्तान में जाकर बसे लियाकत अली खान मुल्क के पहले प्रधानमंत्री बने। 16 अक्टूबर 1951 में रावलपिंडी में एक जनसभा को संबोधित करने के दौरान गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या सईद अकबर खान बबराकजई नामक अफगान रिफ्यूजी ने की थी। हमले के फौरन के बाद पाक सुरक्षाबलों ने उसे वहीं ढ़ेर कर दिया था। इससे कई राज हमेशा के लिए दफन हो गए। खान की हत्या की जांच रिपोर्ट कभी सामने नहीं आ पाई। दबी जुबान में लोग इसमें सेना और आईएसआई का हाथ मानते हैं।

जुल्फिकार अली भुट्टो

पाकिस्तान की सियासत में भुट्टो फैमिली का खासा रसूख है और इस परिवार की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) मुल्क में कई बार पॉवर में आ चुकी है। 1973 से 1977 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे भुट्टो देश में काफी लोकप्रिय थे। उनकी इसी लोकप्रियता से घबराई पाक आर्मी ने उनकी कब्र खोदनी शुरू की। भुट्टो द्वारा नियुक्त आर्मी चीफ जिया उल हक ने मौका देख एक दिन उनका तख्तापलट कर उन्हें जेल में डाल दिया। 1979 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।

बेनजीर भुट्टो

जुल्फिकार अली भुट्टो की सियासी वारिस और बेटी बेनजीर भुट्टो कई बार पाकिस्तान की प्रधानमत्री रही हैं। हालांकि, हर बार उन्हें भ्रष्टाचार या अन्य वजहों से कार्यकाल पूरा किए बगैर सत्ता से बेदखल होना पड़ा। बेनजीर किसी इस्लामिक राष्ट्र की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। 27 दिसंबर 2007 को रावलपिंडी के कंपनी गार्डन में रैली के दौरान उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। ये वही जगह है जहां पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को भी मारा गया था। भुट्टो के शव का पोस्टमार्टम तक नहीं कराया जा सका और आज तक वहां की पुलिस उनके कातिल को दबोच नहीं पाई है।

नवाज शरीफ

उद्योगपति और राजनेता नवाज शरीफ को इमरान खान की ही तरह पाकिस्तान की राजनीति में स्थापित करने का श्रेय सेना को जाता है। बताया जाता है कि भुट्टो परिवार को चुनौती देने के लिए उन्हें इस्टैबलिशमेंट की ओर से शह मिली थी। लेकिन पाकिस्तान के हर लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए राजनेता की तरह नवाज शरीफ और सेना के संबंध भी पटरी से उतरे और उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा। जुल्फिकार अली भुट्टो की तरह शरीफ का तख्तापलट भी उनके द्वारा नियुक्त आर्मी चीफ जनरल परवेज मुशर्रफ ने किया था। हालांकि, सऊदी अरब के दखल के कारण शरीफ की जान बच गई और उन्हें देश से बाहर जाने दिया गया।

2013 में फिर से मुल्क के प्रधानमंत्री बने नवाज शरीफ एक बार फिर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण उन्हें पद गंवाना पड़ा। इस घटना ने एक तरह से पाकिस्तान में उनकी सियासी गतिविधि पर ब्रेक लगा दिया। लंबे समय से शरीफ लंदन में रह रहे हैं। पाकिस्तान में उनपर कई मामले चल रहे हैं। उनकी अनुपलब्धता के कारण ही उनके छोटे भाई शहबाज शरीफ ने प्रधानमंत्री का पद संभाला।

बता दें कि इमरान खान साफ कह चुके हैं, वो मुल्क छोड़कर कहीं नहीं जाने वाले, इसके लिए वह हर स्थिति का सामना करने के लिए तैयार हैं। ऐसे में उनके साथ आने वाले समय में क्या होता है, इस पर पूरी दुनिया की निगाह रहेगी।

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