पाकिस्तान में सेना के सामने असहाय होते जा रहे हैं इमरान खान
यह पैसे का ही लालच था कि तमाम युवा फिदायीन तक बनने को तैयार हो गए। कश्मीर में तमाम आतंवादी घटनाओं को ऐसे युवाओं ने ही अंजाम दिया और उन्हें इस बात के लिए तैयार करने में पाक की सेना और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ रहा है।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान की सत्ता पर सेना हमेशा हावी रही है। पाकिस्तान के मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान भले ही चुनाव जीतकर इस पद तक पहुंचे हैं मगर उनके कार्यकाल में भी सेना का प्रभुत्व लगातार बढ़ता जा रहै।
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अमेरिकी कांग्रेस (संसद) की स्वतंत्र अनुसंधान विंग कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) की रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि की गई है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद भारत व पाक के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है और इतिहास साक्षी है कि जब-जब दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है तब-तब पाकिस्तान में सेना सत्ता पर और हावी होती रही है।
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हाल में जारी सीआरएस की रिपोर्ट में भी इस बात का खुलासा किया गया है कि प्रधानमंत्री के तौर पर इमरान खान के कार्यकाल में पाकिस्तान की विदेश और सुरक्षा नीतियों पर वहां की सेना हावी रही है। सीआरएस ने अमेरिकी सांसदों के लिए यह रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनाव जीतने से पहले इमरान खान के पास हुकूमत चलाने का कोई अनुभव नहीं था। वे कई मामलों में दूसरों की सलाह पर निर्भर थे और ऐसे में सेना की भूमिका महत्वपूर्ण हो गयी।
हर मोर्चे पर विफल साबित हुए इमरान
इमरान ने नया पाकिस्तान बनाने का वादा कर चुनाव जीता था। इसी के बल पर उन्हें युवाओं, शहरी लोगों और मध्यम वर्ग का समर्थन हासिल हुआ था मगर देश बदलने के उनके प्रयास रंग नहीं ला पा रहे हैं। पूरा पाकिस्तान गंभीर वित्तीय संकट में फंसा हुआ है और महंगाई इस हद तक बढ़ गई है कि आम आदमी के लिए रोजमर्रा की चीजें जुटाना भी मुश्किल हो गया है।
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गंभीर वित्तीय संकट और विदेश से और उधार लेने की आवश्यकता के कारण वे पूरी तरह विफल साबित हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर विश्लेषकों को लगता है कि पाकिस्तान का सैन्य प्रतिष्ठान विदेश और सुरक्षा नीतियों पर लगातार हावी रहा है।
मजबूरी में बढ़ाया बाजवा का कार्यकाल
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सेना ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सत्ता से हटाने और उनकी पार्टी को कमजोर करने के मकसद से चुनाव के दौरान और उससे पहले देश की राजनीति में भी दखल दिया। रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि पीएम इमरान खान की पार्टी का समर्थन करने के लिए सेना और न्यायपालिका ने साठगांठ तक की।
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इस रिपोर्ट से समझा जा सकता है कि इमरान को इस पद तक पहुंचाने में अप्रत्यक्ष रूप से सेना की मदद मिली। पिछले दिनों जब पाक के सैन्य प्रमुख बाजवा का कार्यकाल एक साथ तीन वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया तो पाकिस्तान में फिर ऐसी चर्चाएं फैलीं कि इमरान पूरी तरह सेना के दबाव में हैं और इसी कारण वे बाजवा का कार्यकाल बढ़ाने पर मजबूर हुए। बाजवा की ताकत इतनी बढ़ चुकी है कि कई मामलों में इमरान उनके सामने असहाय नजर आ रहे हैं।
तख्तापलट का इतिहास
पाकिस्तान का यह इतिहास रहा है कि वहां जब भी किसी प्रधानमंत्री ने सेना का कहा नहीं माना तो या तो उनका तख्तापलट कर दिया गया या फांसी पर लटका दिया गया। सेना ने पीएम को दरकिनार कर सत्ता पर कब्जा कर लिया। फील्ड मार्शल अयूब खान से लेकर याहया खान तक और जियाउल हक से लेकर परवेज मुशर्रफ तक 1947 से अब तक करीब 35 साल तक पाक की सत्ता पर सेना प्रमुख काबिज रहे हैं।
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पाकिस्तान का सामाजिक ढांचा ऐसा है कि वहां सेना और नौकरशाह वर्ग के पास तो काफी पैसा है मगर आम जनता भीषण गरीबी से जूझ रही है। इसका मुख्य कारण यह माना जाता है कि किसी भी हुक्मरान ने वहां न तो उद्योग धंधे खड़े करने की कोशिश की और न आम लोगों की जिंदगी में खुशहाली लाने का प्रयास किया।
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने ही जनरल जिया उल को चीफ ऑफ ऑर्मी स्टाफ बनाया था। उसी जनरल ने मौका मिलते ही 5 जुलाई 1977 को प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्तापलट कर सैन्य शासन लागू कर दिया। बाद में उन्हें फांसी पर लटका दिया। इसी तरह नवाज शरीफ ने परवेज मुशर्रफ को सैन्य प्रमुख बनाया और उसी मुशर्रफ ने शरीफ को सत्ता से बेदखल कर खूब मनमानी की।
अर्थव्वस्था पर सेना हावी
पाकिस्तान में सेना के प्रभुत्व को इस बात से भी समझा जा सकता है कि वहां की अर्थव्यवस्था पर भी पूरी तरह सेना का ही नियंत्रण है। सेना 20 अरब डॉलर से अधिक की 50 वाणिज्यिक संस्थाओं को चलाती है। इनमें पेट्रोल पंपों से लेकर विशाल औद्योगिक संयंत्रों, बैंकों, बेकरियां, स्कूल, विश्वविद्यालय आदि शामिल हैं। सेना देश के सभी विनिर्माण का एक तिहाई और निजी संपत्तियों का सात फीसदी तक नियंत्रण करती है।
पैसा देकर युवाओं को आतंकवाद के रास्ते पर झोंका
सेना ने देश में बेरोजगारों की बढ़ती फौज का भी खूब फायदा उठाया है। सेना ने इन युवाओं का इस्तेमाल कर उन्हें आतंकवाद के रास्ते पर झोंक दिया। बेरोजगार युवकों को पैसे की जरुरत थी और सेना ने पैसे का लालच देकर इन युवाओं को अफगानिस्तान और भारत के खिलाफ आतंक के रास्ते पर धकेल दिया।
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यह पैसे का ही लालच था कि तमाम युवा फिदायीन तक बनने को तैयार हो गए। कश्मीर में तमाम आतंवादी घटनाओं को ऐसे युवाओं ने ही अंजाम दिया और उन्हें इस बात के लिए तैयार करने में पाक की सेना और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ रहा है। इन आतंकी घटनाओं के कारण ही आज दुनिया में पाकिस्तान की पहचान आतंकवाद के संरक्षणदाता देश के रूप में की जा रही है।