तबाही की ओर देश: बारूद का खतरनाक ढेर है बर्ड फ्लू, जानें इसके बारे में

बर्ड फ्लू ज़ूनोटिक बीमारियों का सबसे मुफीद उदाहरण है। सच्चाई तो ये है कि अधिकांश महामारियों का उदगम पक्षियों में पाए जाने वाले इन्फ्लूएंजा वायरस से ही हुआ है।

Update:2021-01-06 16:32 IST
तबाही की ओर देश: बारूद का खतरनाक ढेर है बर्ड फ्लू, जानें इसके बारे में (PC: social media)

लखनऊ: पूरी दुनिया कोरोना वायरस महामारी से जूझ रही है और ऐसे में बर्ड फ्लू की दहशत फैल रही है। दरअसल, कोरोना, इबोला, स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू, सार्स और मर्स आदि तमाम बीमारियां, महामारियां और संक्रमण पशु पक्षियों से इंसानों में फैले हैं। ये कतई जरूरी नहीं कि पशु-पक्षी खाने से संक्रमण फैले। जितना इनसान और पशु पक्षियों के बीच नज़दीकियां बढ़ेंगी, वायरस का फैलाव उतना ही ज्यादा होने का खतरा और जोखिम बढ़ता जाएगा। ऐसी बीमारियों को 'ज़ूनोटिक' बीमारी कहा जाता है।

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पक्षियों से निकले वायरस ने मचाई हैं तबाही

बर्ड फ्लू ज़ूनोटिक बीमारियों का सबसे मुफीद उदाहरण है। सच्चाई तो ये है कि अधिकांश महामारियों का उदगम पक्षियों में पाए जाने वाले इन्फ्लूएंजा वायरस से ही हुआ है। बर्ड फ्लू वायरस प्राकृतिक रूप से जंगलों में पाए जाने वाले उन पक्षियों में पलता है जो पानी में रहते हैं। ऐसा लाखों साल से होता आ रहा है और इन वायरस से पक्षी बीमार भी नहीं होते हैं। जल पक्षियों में इन वायरस को एक आदर्श होस्ट मिलता है और वो एक पक्षी से दूसरे में पास होता रहता है।

लेकिन जब शिकारी ये पक्षी पकड़ कर बाजार ले जाते हैं तब वायरस को फैलने के लिए जलीय वातावरण नहीं मिलता और ऐसे में वायरस या तो म्यूटेट करता है या खत्म हो जाता है। पानी के बाहर के नए वातावरण में ऐसे म्यूटेशन होते हैं जिसके चलते वायरस संक्रमित पक्षी के मल, नाक - मुंह या आंख से निकले तरल पदार्थ के जरिये स्प्रेड करता है। कई मर्तबा पक्षियों में बैठा वायरस खासतौर पर सुअर में बैठे वायरस के साथ मिक्स होकर इंसान में पहुंच जाता है।

स्पैनिश फ्लू

1918 में दुनियाभर में फैला भयानक स्पैनिश फ्लू भी एच1एन1 एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस से पैदा हुआ था। अभी तक ये तो पता नहीं चला है कि ये किस वन्य जीव से इंसान में आया लेकिन इतना जरूर है कि ये एवियन मूल का था सो ये संभवतः वन्य पक्षी या पोल्ट्री से इंसान में पहुंचा होगा। एवियन मायने होता है पक्षी।

Bird flu (PC: social media)

एशियन फ्लू

1957 के एशियन फ्लू ने 11 लाख लोगों की जान ली थी। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस महामारी वाले एच2एन2 वायरस की उत्पत्ति किसी जंगली बत्तख से हुई थी जो सूअर में पाए जाने वायरस के साथ मिल कर इंसान में प्रवेश कर गया था। एच2एन2 वायरस जंगली और पालतू पक्षियों में पाया जाता है और इसके संक्रमण का खतरा हमेशा बना हुआ है।

हॉंगकॉंगफ्लू

1968 के हॉंगकॉंग फ्लू से करीब 10 से 40 लाख लोगों की मौत हुई थी। ये महामारी एच3एन2 वायरस से पैदा हुई थी। माना जाता है कि पहले की महामारियों को फैलाने वाले वायरस से एच3एन2 निकला जिसने किसी पक्षी के फ्लू वाले वायरस के साथ मिलकर एक ऐसा नया स्ट्रेन बनाया जो इंसानों को संक्रमित और उनमें स्प्रेड कर सकता था।

स्वाइन फ्लू

2019 का स्वाइन फ्लू एच1एन1 वायरस से पैदा हुआ था। ये मेक्सिको से निकल और पूरी दुनिया में फैल गया। ‘एच1एन1’ में इनसानों, पक्षियों, उत्तर अमेरिका के सुअरों और यूरेशियन सुअरों के वायरसों के अंश थे। शुरू में स्वाइन फ्लू ने बहुत जानें लीं लेकिन अब ये सीज़नल वायरस बन चुका है।

एच5एन1 है बड़ी चिंता का कारण

एक्सपर्ट्स का कहना है कि सबसे बड़ी चिंता का कारण एच5एन1 वायरस है। ये वायरस 50 के दशक से पोल्ट्री को संक्रमित करता आ रहा है। लेकिन 1996 में चीन के गुआंगडोंग प्रान्त में एक बेहद विषाक्त स्ट्रेन सामने आया जिससे संक्रमित पक्षियों में से 40 फीसदी से ज्यादा मर गए। 1997 में ये पोल्ट्री फार्मों और जिंदा मुर्गा बेचने वाले बाजारों तक फैल गया। हांगकांग में तो इसने इनसानों को संक्रमित कर दिया जिससे 6 लोगों की जान चली गई। संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सरकार ने 15 लाख से ज्यादा मुर्गियों को मार देने का आदेश दिया था।

ये वायरस आज भी लोगों को संक्रमित कर रहा है लेकिन अच्छी बात ये है कि ये इनसानों से इनसानों के बीच आसानी से नहीं फैलता है। भयानकबात ये है कि डब्लूएचओ का कहना है कि इस अत्यधिक विषाक्त वायरस से मृत्यु दर करीब 60 फीसदी है।

अगर ये म्यूटेट हो कर ज्यादा संक्रामक हो गया तो से 50 लाख 15 करोड़ तक जानें ले सकता है।

बहुत बड़ी आफत

पहले भी बर्ड फ्लू का प्रकोप की मर्तबा एशियाई देशों में हो चुका है लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि एक बहुत बड़ी आफत बर्ड फ्लू के रूप में कभी भी आ सकती है। अमेरिका के एक प्रख्यात फिजीशियन, न्यूट्रिशन एक्सपर्ट और लेखक डॉ माइकल हर्शेल ग्रेगर ने दावा किया है कि कोरोना महामारी से कहीं ज्यादा बड़ा संकट अभी आना बाकी है। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि अगली महामारी पोल्ट्री फार्म्स के कारण होगी। डॉ ग्रेगर ने लिखा है कि जिन हालातों में आज मुर्गी पालन किया जा रहा है वो बेहद खतरनाक वायरस की पैदाइश और फैलाव के लिए आदर्श ब्रीडिंग ग्राउंड है।

Bird flu (PC: social media)

100 गुना ज्यादा भयानक

डॉ ग्रेगर ने चेतावनी दी है कि अगले महामारी पोल्ट्री फार्मों से निकलेगी और ये कोविड-19 से 100 गुना ज्यादा भयानक सिद्ध होगी। उन्होंने कहा है कि सभी पोल्ट्री फार्म बुरी तरह ओवर क्राउडेड हें। मुर्गियों को ठूंस ठूंस कर रखा जाता है और ऐसे में वायरस किसी भी समय म्यूटेट हो कर मुर्गियों के फेफड़ों में बैठ सकता है। ऐसे में जो बीमारी फैलेगी उससे 50 फीसदी संक्रमित लोगों की मौत हो सकती है। डॉ ग्रेगर के अनुसार मांस के लिए मुर्गियों का बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन बर्ड फ्लू व दूसरी वाइरल बीमारियों के लिए आदर्श स्थिति है।

संक्रमण का स्रोत

जितना ज्यादा पशुओं को साथ साथ रखा जाएगा उतना ही वायरस को म्यूटेट होने के अवसर मिलेंगे और मौका पाते ही वह जानवर के फेफड़े में चला जाएगा। डॉ ग्रेगर के अनुसार 1997 में हाँगकाँग में फैले एच1एन1 संक्रमण का स्रोत पोल्ट्री फार्म ही थे। इस वायरस से वहाँ 18 संक्रमित लोगों में से 6 की मौत हो गई यानी मृत्यु दर 33 फीसदी थी जो बहुत ही ज्यादा है। इसकी बाद 2003 और 2009 में भी संक्रमण फैला। बड़ी संख्या में मुर्गियों को मारे जाने की बावजूद वायरस खत्म नहीं हुआ अहै। चीन में बर्ड फ्लू के कई दौर आए हैं और वहाँ संक्रमण का फैलाव रोकने के लिए करोड़ों मुर्गियों को मारा गया। डॉ ग्रेगर के अनुसार चुनता की बात ये है कि वायरस स्थिर नहीं रहता बल्कि लगातार स्वरूप बदलता रहता है।

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अमोनिया की अधिकता

मुर्गियों या किसी भी चिड़िया की बीट में अमोनिया बहुत होता है। ये वायरस के म्यूटेट और मल्टीप्लाई होने के लिए बहुत आदर्श स्थिति होती है और इसमें एक स्थान पर ढेर सारे पक्षियों का रहना आग में घी का काम करता है। मुर्गियों की तरह कबूतर की बीत भी फेफड़े की बीमारी फैलाने में सहायक पायी गई है।

रिपोर्ट- नीलमणि लाल

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