Gandhi Statue In Japan : हिरोशिमा में महात्मा गांधी - ताकि फिर न करे इंसान ऐसी 'तबाही'
Gandhi Statue In Japan : हिरोशिमा का विस्तारण, जब अणुबॉम्ब का वार पड़ा, एक दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास के रूप में माना जाता है। इस विस्तारण ने असंतोष, मौत और तबाही का दृश्य दिखाया। इसे सुनिश्चित करने के लिए कि इस तरह की तबाही फिर से न हो, महात्मा गांधी की सोच को याद करने की आवश्यकता है।
Gandhi Statue In Japan : लखनऊ। 1945 में परमाणु बमबारी का शिकार होने वाले दुनिया के पहला शहर हिरोशिमा में महात्मा गांधी की प्रतिमा लगाई गई है। यह विश्व शांति और अहिंसा का प्रतीक है। हिरोशिमा और नागासाकी - जापान के दो शहर जो अगस्त 1945 में अमेरिका के एटम बमों से तबाह कर दिये गए और आज तक उन दोनों शहरों के बाशिंदे रेडियेशन के प्रभाव झेल रहे हैं। उस एटमी तबाही ने दुनिया को बहुत बड़े सबक दिए हैं। लाखों जिंदगियों की कुर्बानी ने न्यूक्लियर बमों की विनाशकारी क्षमता दुनिया को समझा दी है और यही वजह है कि सन 45 से आज तक कोई भी देश एटमी हथियार इस्तेमाल करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया है । क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो उस आग में सब जल जाएंगे।
सामूहिक विनाश
सामूहिक विनाश के लिए परमाणु हथियार की शक्ति का पहली बार 6 अगस्त, 1945 को जापान के होन्शू द्वीप के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र हिरोशिमा में भयानक प्रदर्शन किया गया था।
अगस्त 1945 में हिरोशिमा पर "लिटिल बॉय" और नागासाकी में 'फैट मैन' बम गिराया गया था। इन बमों ने 2,00,000 से अधिक लोगों की जान ले ली थी।
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स्तब्ध रह गए थे गांधी
1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमबारी के बारे में जानकारी मिलने पर, महात्मा गांधी ने कहा था - "अगर दुनिया अहिंसा को नहीं अपनाती, तो यह मानव जाति निश्चित रूप से आत्महत्या होगी।" इस तबाही से स्तब्ध गांधी जी ने बमबारी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बोला था। जब उनसे न्यूयॉर्क टाइम्स के एक पत्रकार ने पूछा कि वह मौन क्यों हैं तो गांधी जी ने कहा - जितना अधिक मैं इसके बारे में सोचता हूं, उतना ही मुझे लगता है कि मुझे परमाणु बम पर नहीं बोलना चाहिए। अगर मैं कुछ कर सकता हूं तो मुझे वह करना चाहिए।गांधी जी मौन क्यों रहे इस बारे में आजतक रहस्य बना हुआ है।
क्या हुआ था सन 45 में
द्वितीय विश्व युद्ध जारी था। अमेरिका के पर्ल हार्बर पर जापान का भयानक हवाई हमला हो गया था। जापान के आक्रामक रुख से अमेरिका स्तब्ध था। जापान को रोकने के लिए एटम बमों का निर्दयी सहारा लिया गया। 6 अगस्त, 1945 को एक अमेरिकी बी-29 बमवर्षक ने जापानी शहर हिरोशिमा पर दुनिया का पहला परमाणु बम गिराया। विस्फोट में अनुमानित 80,000 लोग तुरंत मारे गए; बाद में विकिरण के संपर्क में आने से हजारों और मर जाएंगे। तीन दिन बाद, एक दूसरे बी-29 ने नागासाकी पर एक और एटम बम गिराया, जिसमें अनुमानित 40,000 लोग मारे गए। जापान के सम्राट हिरोहितो ने "एक नए और सबसे क्रूर बम" की विनाशकारी शक्ति का हवाला देते हुए 15 अगस्त 45 को एक रेडियो संबोधन में द्वितीय विश्व युद्ध में अपने देश के बिना शर्त आत्मसमर्पण की घोषणा की।