क्रूरता की सारी हदें पार, पिता की गोद में बैठी बच्ची को मारी गोली

सेना के आदेश पर पुलिस ने पिता की गोद में बैठी सात वर्षीय बच्ची को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया

Update: 2021-03-26 08:07 GMT

Photo - Social media, protesters and army face to face in Myanmar

यंगून। इतिहास गवाह है कि सेना ने जब भी सत्ता संभाली है, तब—तब जनता पर क्रूरता की सारी हदें पार हुई हैं। ऐसा ही नजारा इन दिनों म्यांमार में देखा जा रहा है। फरवरी में सेना ने यहां तख्तापलट कर दिया था, जिसके बाद से सेना के खिलाफ प्रदर्शन में अब तक कई प्रदर्शनकारी मारे जा चुके हैं। प्रदर्शनकारियों पर म्यांमार की सेना क्रूरता की सारी सीमाएं पार कर दी हैं। प्रदर्शनकारियों को कुचलने के लिए सेना किसी भी हद तक जा रही है। आलम यह है कि सेना के आदेश पर पुलिस ने पिता की गोद में बैठी सात वर्षीय बच्ची को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया है। बताया जा रहा है पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को कुचलने के लिए घर का दरवाजा तोड़कर अदंर दाखिल हुई और डर से पिता की गोद में बैठी बच्ची को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया।

प्रदर्शनकारियों को कुचलने में लगी सेना

मृतक बच्ची का नाम खिन मायो चित बताया जा रहा है, प्रदर्शनकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई में जान गंवाने वाली सबसे कम उम्र की बच्ची है। वहीं पुलिस की गोलीबारी में अब तक कई लोगों की मौत हो चुकी है। एक चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस मांडले शहर में प्रदर्शनकारियों को ढूंढ रही थी। इसी दौरान कुछ पुलिसकर्मी आए और खिन के घर का दरवाजा तोड़ते हुए अंदर दाखिल हो गए। पुलिस ने मृतक बच्ची के पिता से पूछा कि प्रदर्शन के लिए कोई बाहर गया था क्या। उसके पिता ने जब प्रदर्शन में शामिल होने की बात से इनकार किया तो पुलिसवाले भड़क गए और उसे मारने—पीटने लगे। यह सब देखकर बच्ची सहम गई और वह पिता की गोद में जाकर बैठ गई। इसी बीच पुलिसवाले ने बच्ची को गोली मार दी, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई।

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प्रमुख नेताओं की रिहाई की मांग को लेकर प्रदर्शन जारी


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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सेना की गोलीबारी में 20 बच्चों की मौत हो चुकी है। बता दें कि 1 फरवरी को तख्तापलट के बाद से यहां लगातार प्रदर्शन जारी है। सेना के खिलाफ बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतरकर प्रमुख नेताओं की रिहाई की मांग कर रहे हैं। वहीं सेना ने आंग सान सूची सहित सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर ​लिया है, और अभी उन्हें छोड़ने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं। सेना का आरोप है कि नवंबर में हुए चुनाव में व्यापक स्तर पर धांधली हुई थी। इसी के चलते यहां एक साल तक का आपालकाल लगाया गया है।

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