आगरा में परवेज मुशर्रफ: खीर पर बात हुई लेकिन कश्मीर पर फेल हो गयी समिट

Pervez Musharraf in Agra: एक वाकया कश्मीर विवाद सुलझाने से भी जुड़ा है, जब आगरा में जुलाई 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और परवेज़ मुशर्रफ के बीच शिखर सम्मलेन हुआ था।

Report :  Neel Mani Lal
Update: 2023-02-05 08:40 GMT

Pervez Musharraf (Pic: Social Media)

Pervez Musharraf in Agra: भारत के साथ जनरल परवेज़ मुशर्रफ की ज्यादातर कड़वी यादें ही जुड़ी हुईं हैं। कारगिल युद्ध इसका सबसे बड़ा कारण है जो मुशर्रफ ने छेड़ा था। एक वाकया कश्मीर विवाद सुलझाने से भी जुड़ा है, जब आगरा में जुलाई 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और परवेज़ मुशर्रफ के बीच शिखर सम्मलेन हुआ था।

भारत के बुलावे पर आये थे मुशर्रफ

आगरा शिखर सम्मलेन के लिए जनरल परवेज़ मुशर्रफ भारत के आमंत्रण पर आये थे। लगता था कि कश्मीर मसला सुलझ ही जाएगा लेकिन मुशर्रफ की यात्रा के दौरान की गई कुछ मुखर टिप्पणियां अंततः शिखर सम्मेलन की अंतिम विफलता का कारण बनीं। शिखर सम्मलेन में पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री अब्दुल सत्तार और भारत की तरफ से जसवंत सिंह थे।

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1999 का सबसे खराब साल 

मई - जुलाई 1999 में कारगिल संघर्ष के बाद पाकिस्तान में उसी साल अक्टूबर में तख्तापलट हुआ और प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की सरकार को गिरा कर सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने कमान अपने हाथ में ले ली। अभी यह ड्रामा खतम ही हुआ था कि दिसंबर 1999 में कंधार विमान अपहरण कांड हुआ। यानी 1999 का साल कारगिल और विमान अपहरण के चलते भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक बहुत खराब साल के रूप में गिना जाता है। वर्ष 2000 बिना किसी बड़े संघर्ष से गुजरा लेकिन कोई वास्तविक स्थिरता भी नहीं थी। युद्ध भी नहीं था लेकिन शांति भी नहीं थी।

उम्मीदों का साल 2001

2001 का साल नई उम्मीदों के साथ शुरू हुआ। भारत – पाकिस्तान तनातनी 2001 में जनरल मुशर्रफ को वार्ता के लिए भारत आने के निमंत्रण के साथ लगता कि समाप्त हो गयी है। मुशर्रफ ने न्योता ख़ुशी खुशी स्वीकार कर लिया। हालाँकि इस न्योते से लोगों में नाराजगी भी थी क्योंकि कारगिल के घाव अभी हरे ही थे। ऐसे में आरोप ये भी लगा कि यह बातचीत अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के दबाव में हो रही थी। लेकिन तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी इस बारे में एक अलग विचार रखते थे। वर्ष 2000 के अंत में उन्होंने लिखा था कि – "एक आत्मविश्वासी और लचीला राष्ट्र बीते कल के असुविधाजनक मुद्दों को आने वाले सुदूर कल के लिए स्थगित नहीं करता है।"

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दिल्ली में परवेज़

परवेज़ मुशर्रफ आगरा बातचीत में भाग लेने के लिए दिल्ली पहुंचे। वहां उनका 21 तोपों की सलामी के साथ गर्मजोशी से स्वागत किया गया। उसके बाद राष्ट्रपति के आर नारायणन ने औपचारिक रूप से उनका स्वागत किया। मुशर्रफ राजघाट में महात्मा गांधी की समाधि पर भी गए। वहां जाने वाले वह पहले पाकिस्तानी नेता थे, उन्होंने वहां पुष्पांजलि और श्रद्धांजलि अर्पित की। मुशर्रफ के लिए भारत यात्रा

विशेष रूप से मार्मिक थी और उन्होंने दरियागंज में अपने पैतृक घर का दौरा भी किया। मुशर्रफ के पैतृक घर को 1946 में मुशर्रफ के दादा ने बेच दिया था और भारत के विभाजन के बाद परिवार पाकिस्तान चला गया था। मुशर्रफ का एक पुराने नौकर के साथ भावनात्मक मुलाकात भी हुई जिसने उन्हें एक छोटे लड़के के रूप में देखा था।

पहले दिन ही विवाद

मुशर्रफ की यात्रा में यहाँ तक तो सब ठीक रहा लेकिन यात्रा के पहले दिन कुछ कडवाहट भी देखी गयी। हुआ ये कि मुशर्रफ ने कश्मीरी अलगाववादी हुर्रियत के नेताओं के साथ बंद कमरे में बैठक कर डाली। भारत सरकार ने बैठक का विरोध किया और एक कनिष्ठ अधिकारी को अपने प्रतिनिधि के रूप में भेजकर विरोध जता दिया। यही नहीं, मुशर्रफ के दिल्ली पहुंचने से कुछ घंटे पहले कश्मीर में सीमा नियंत्रण के पार भारतीय और पाकिस्तानी सैनिकों के बीच गोलाबारी भड़क उठी थी।

आगरा में आशा

कश्मीर मुद्दे सहित दोनों देशों के बीच विभिन्न विवादों को सुलझाने की ऊंची आशाओं के बीच आगरा शिखर सम्मेलन 15 जुलाई 2001 को शुरू हुआ। दोनों पक्षों ने शिखर सम्मेलन की शुरुआत उम्मीद और सदिच्छा की भावना से की। परवेज़ मुशर्रफ ने शिखर सम्मेलन के लिए 'सतर्क आशावाद', 'लचीलापन' और 'खुले दिमाग' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने भी 'साहसिक और अभिनव' उपाय करने और दोनों देशों के बीच 'मूल मुद्दे' पर चर्चा करने का वादा किया।

दिल्ली में वन टू वन बातचीत

रविवार 15 जुलाई की सुबह राष्ट्रपति मुशर्रफ प्रधानमंत्री वाजपेयी से सीधी बातचीत के लिए आगरा पहुंचे। पहले दिन मुशर्रफ और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच 90 मिनट की आमने-सामने की बातचीत हुई। कश्मीर मुद्दे, सीमा पार आतंकवाद, परमाणु खतरा जोखिम में कमी, युद्ध बंदियों की रिहाई और वाणिज्यिक संबंधों पर चर्चा हुई। वार्ता सही दिशा में चली और दोनों नेताओं द्वारा इसे 'सकारात्मक, स्पष्ट और रचनात्मक' घोषित किया गया। उम्मीदें थीं कि दोनों नेता एक समझौते पर पहुंचेंगे और शिखर सम्मेलन के अंत में एक संयुक्त बयान या घोषणा की जाएगी। शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री वाजपेयी का सबसे महत्वपूर्ण एजेंडा कश्मीर के लोगों की आर्थिक बेहतरी पर जोर देना था, जिसके लिए उन्होंने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के साथ बातचीत को भी आमंत्रित किया। किसी भी पक्ष ने वार्ता के सार के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया, लेकिन इतना जरूर कहा कि चर्चा बहुत रचनात्मक रही और अगले दिन तीसरे दौर की वार्ता की योजना बनाई गई। उसी दिन मुशर्रफ को ताजमहल का दौरा करने का भी समय मिला, और बाद में वह उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा आयोजित रात्रिभोज में शामिल हुए। इसी दिन खबर आई कि कश्मीर में भारतीय सैनिकों और इस्लामी आतंकवादियों के बीच भारी लड़ाई में कम से कम 18 लोगों के मारे गए हैं। इससे बातचीत का माहौल तनाव के साए में आ गया।

तीसरा दिन: आगरा

दोनों पक्षों ने 16 जुलाई का अधिकांश समय आम सहमति के मुद्दे खोजने और दोनों नेताओं द्वारा हस्ताक्षर किए जाने वाले अंतिम बयान पर सहमत होने की कोशिश में बिताया। चूँकि बातचीत का दौर आगे बढ़ा दिया गया था सो, मुशर्रफ की राजस्थान में अजमेर की पहले से तय यात्रा रद्द कर दी गई। कई मसौदा प्रस्तावों के आदान-प्रदान के बाद करीब नौ घंटे की देरी के बावजूद एक ऐसा दस्तावेज पेश नहीं किया जा सका जिस पर दोनों पक्ष हस्ताक्षर करने को तैयार थे। घोषणा की गयी कि कोई समझौता नहीं हुआ है। और राष्ट्रपति मुशर्रफ इस्लामाबाद लौट गए।

चर्चा हुई खीर पर

परवेज़ मुशर्रफ ने एक बार कहा था कि आगरा शिखर सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने उनको बताया था कि अटल बिहारी वाजपेयी खाना बनाने के काफी शौकीन थे। मुशर्रफ के अनुसार – "बातचीत के दौरान मैंने उनसे पूछा कि उनको क्या बनाना पसंद है, और जवाब में उन्होंने कहा खीर। चूंकि मुझे भी खीर पसंद है, इसलिए मैंने उनसे खीर के बारे बातचीत कि खीर में कौन-कौन से गुण होने चाहिए।"

वापस जाना चाहते थे मुशर्रफ

परवेज मुशर्रफ ने बाद में एक इंटरव्यू में कहा था कि वह आगरा शिखर सम्मेलन को बीच में ही छोड़ देना चाहते थे लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा ऐसा करने से मना किया गया था। मुशर्रफ के अनुसार, उनके और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच यह निर्णय लिया गया था कि संयुक्त घोषणापत्र में कहा जाएगा कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक विवाद है और इसे राजनीतिक बातचीत के माध्यम से सुलझाया जाएगा लेकिन अटल जी अंतिम समय में इससे पीछे हट गए। संयुक्त घोषणापत्र का दूसरा मसौदा कुछ बदलावों के साथ तैयार किया गया था लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी को वह भी मंजूर नहीं था। मुशर्रफ ने कहा – "मुझे यह पसंद नहीं आया और मैं तुरंत जाना चाहता था, लेकिन हमारे विदेश सचिव की सलाह के कारण ऐसा नहीं कर सका। मैं भी इस मुद्दे के बारे में प्रेस से बात करना चाहता था लेकिन ऐसा नहीं कर सका क्योंकि प्रेस को उस होटल में आने की इजाजत नहीं थी जहां मैं रह रहा था और हमें सुरक्षा कारणों से प्रेस में जाने की इजाजत नहीं थी।"

मुशर्रफ के अनुसार – "रात 11 बजे मेरी अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात हुई और मैंने उनसे दो टूक कहा कि लगता है कि हम दोनों के ऊपर कोई है जो हम पर शासन करने की ताकत रखता है। मैंने यह भी कहा कि आज हम दोनों का अपमान हुआ है। मैं उन्हें तेज-तर्रार तरीके से धन्यवाद देने के बाद अचानक चला गया।"

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