Pluto Ka Vatavaran : नए शोध से पता चला क्यों गायब हो रहा है प्लूटो का वातावरण
Pluto Ka Vatavaran : वर्तमान में प्लूटो से लुप्त होता वातावरण खगोलशास्त्रियों के लिए एक अलग समस्या का कारण बन गया है।
Pluto Ka Vatavaran : अगस्त 2006 में अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (International Astronomical Union) ने प्लूटो को एक ग्रह के रूप में सौर्य मंडल से बाहर कर दिया था। इसी के साथ प्लूटो ने ग्रह होने का दर्जा भी खो दिया था।
वर्तमान में प्लूटो से लुप्त होता वातावरण खगोलशास्त्रियों के लिए एक अलग समस्या का कारण बन गया है। इस समस्या को मद्देनज़र वैज्ञानिकों ने पाया है कि प्लूटो का वातावरण एक विशेष रूप के परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है।
नाइट्रोजन से बनी दूरबीनों का इस्तेमाल
इसी विषय पर साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (South West Research Institute - SwRI) के वैज्ञानिकों ने प्लूटो के पतले वातावरण का अध्ययन करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और मैक्सिको में कई जगहों पर नाइट्रोजन से बनी दूरबीनों का इस्तेमाल (nitrogen se bani telescopes) किया है।
इस शोध की शुरुआत 2018 में प्लूटो ग्रह का एक तारे के सामने से गुजरने के बाद की गई थी। शोधकर्ताओं ने बताया कि प्लूटो का सूर्य से बहुत दूर जाने के कारण इसका वातावरण वास्तविक रूप से इसकी असल सतह पर वापस लौट रहा है। प्लूटो पहले की अपेक्षा और अधिक ठंडा भी हो रहा है।
वैज्ञानिकों द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार
थर्मल इनर्सिया (Thermal Inertia) के कारण प्लूटो के सतह पर दबाव (Surface Pressure) और वायुमंडलीय घनत्व (Atmospheric Pressure) में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है । साथ ही प्लूटो की सूर्य से लगातार दूरी बढ़ते रहने के कारण प्लूटो को पहले की तुलना कम धूप मिल पा रही है, जिसके चलते प्लूटो पर मौजूद वातावरण खात्में कई कगार पर आ गया है।
SwRI के वैज्ञानिक डॉ लेस्ली यंग (Dr. Leslie Young) के अनुसार-"प्लूटो के वायुमंडल की निरंतर दृढ़ता (continued persistence) से पता चलता है कि प्लूटो की सतह पर नाइट्रोजन बर्फ जलाशयों (ice reservoirs) को सतह के नीचे मौजूद गर्मी से गर्म रखा गया था लेकिन हालिया रिपोर्ट और जांच के मुताबिक ये ठंडा होना शुरू हो रहे हैं।"
पृथ्वी के विपरीत प्लूटो का वातावरण इसकी सतह की बर्फ के वाष्प दबाव (Vapour Pressure) पर निर्भर है अर्थात प्लूटो के सतह पर मौजूद बर्फ के तापमान में निम्न बदलाव होने पर भी इसके वायुमंडलीय घनत्व में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।