Turkey: दक्षिणपंथी रूझान वाले एर्दोगन ने जीता राष्ट्रपति का चुनाव, तुर्किये के साथ भारत के संबंधों पर पड़ेगा असर
Turkey: दुनिया का एकमात्र लोकतांत्रिक, सेकुलर और उदार मुस्लिम देश तुर्किये ने अपना नया राष्ट्रपति चुन लिया है। देश की कमान एकबार फिर दक्षिणपंथी नेता रेसेप तैयप एर्दोगन को मिली है।
Ankara: दुनिया का एकमात्र लोकतांत्रिक, सेकुलर और उदार मुस्लिम देश तुर्किये ने अपना नया राष्ट्रपति चुन लिया है। देश की कमान एकबार फिर दक्षिणपंथी नेता रेसेप तैयप एर्दोगन को मिली है। एर्दोगन बीते 20 सालों से सत्ता में हैं। 28 मई को आई नतीजे में उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी और तुर्किये के गांधी कहे जाने वाले विपक्ष के साझे उम्मीदवार कमाल केलिकदारोग्लू को हरा दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एर्दोगन को कुल 52.1 प्रतिशत वोट मिले। वहीं, केलिकदारोग्लू 47.9 प्रतिशत मत ही हासिल कर पाए।
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साल 2003 में पहली बार सत्ता पर काबिज हुए रेसेप तैयप एर्दोगन तब से लेकर अब तक शीर्ष पर बने हुए हैं। वर्तमान में चुनाव जीतने के बाद उनका 2028 तक सत्ता में बने रहने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। नतीजे आने के बाद उन्होंने अपने घर के बालकनी से करीब 3 लाख लोगों को संबोधित किया था। इस दौरान उन्होंने प्रमुख सियासी विरोधी का मजाक उड़ाते हुए कहा, बाय-बाय केलिकदारोग्लू।
विनाशकारी भूकंप और आर्थिक संकट के बाद भी जीते
रेसेप तैयप एर्दोगन ने जब पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे, तब उन्होंने अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए काफी काम किया था। जिससे जनता उनकी मुरीद हो गई थी। लेकिन धीरे-धीरे उनका झुकाव इस्लामिक दक्षिणपंथ की तरफ होने लगा। उनके कई फैसलों को लेकर न केवल देश में बल्कि पश्चिम से भी कड़ी प्रतिक्रिया आई। तुर्कीये की इकोनॉमी बेहद खराब दौर से गुजर रही है। महंगाई 40 प्रतिशत से ज्यादा हो चुका है। देश की करेंसी लीरा डॉलर के मुकाबले अब तक के निचले स्तर पर है।
इस साल फरवरी में आए विनाशकारी भूकंप ने आर्थिक संकट से जूझ रहे तुर्किये के लोगों पर जले पर नमक छिड़कने की तरह काम किया। इस प्राकृतिक आपदा में 50 हजार से अधिक लोग मारे गए। लाखों लोग बेघर हो गए। इस आपदा ने दो दशक से सत्ता में बैठे एर्दोगन की कुर्सी हिला दी थी। लोगों में उन्हें लेकर नाराजगी साफतौर पर नजर आ रही थी। लेकिन चुनाव नतीजों ने स्पष्ट कर दिया कि तमाम कमजोरियों के बावजूद तुर्किये के जनता के बीच वे ही लोकप्रिय हैं।
भारत के साथ संबंधों पर पड़ेगा असर !
रेसेप तैयप एर्दोगन की सत्ता में वापस निश्चित तौर पर भारत के लिए उत्साहजनक नहीं है। दुनिया में एक आधुनिक इस्लामिक राष्ट्र के तौर पर पहचाने जाने वाले तुर्किये को एर्दोगन को तेजी से रूढ़िवाढ़ की तरफ ले जा रहे हैं। देश में इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया जा रहा है। वे खुद को सुन्नी मुस्लिम देशों के नेता के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं, जो फिलहाल सऊदी अरब है। एर्दोगन का भारत विरोधी रूख जगजाहिर है। उनके शासनकाल में दोनों देशो के रिश्ते काफी खराब हुए हैं।
ऐसे समय में जब दुनिया के अधिकांश खाड़ी मुस्लिम देशों के साथ भारत के संबंध प्रगाढ़ हुए हैं, तुर्किये के साथ संबंधों में गिरावट आई। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एर्दोगन पाकिस्तान के समर्थन में बोलते हैं।
हाल ही में श्रीनगर में हुई जी20 की टूरिज्म की बैठक में भी तुर्किये शामिल नहीं हुआ था। भूकंप पीड़ितों को बड़े पैमाने पर भारत द्वारा मदद पहुंचाने के बावजूद तुर्किये संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे को छेड़ा था और पाकिस्तान के स्टैंड का समर्थन किया था। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय जानकारों का मानना है कि एर्दोगन की सत्ता में वापसी के बाद भारत और तुर्किये के संबंधों में गर्माहट में आने में अब और समय लग सकता है।