Taliban rule in Afghanistan : तालिबान से अब मेल मिलाप की राजनीति, 13 देशों ने सशर्त मान्यता दी

Taliban rule in Afghanistan : अफगानिस्तान में तालिबान के शासन को अंतर्राष्ट्रीय तौर पर मान्यता मिल गयी है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2021-09-01 14:51 IST

तालिबान (फोटो- सोशल मीडिया)

Taliban rule in Afghanistan : अफगानिस्तान में तालिबान के शासन को अंतर्राष्ट्रीय तौर पर मान्यता मिल गयी है। वैसे तो अमेरिका ने 2020 में ही तालिबान से बातचीत और समझौता करके उसे मान्यता दिया था । लेकिन अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी कम से कम 13 देशों ने तालिबान को सशर्त मान्यता दे दी है।

इस बीच भारत ने अलग से तालिबान के साथ बेहतर सम्बन्ध बनाए जाने की दिशा में पहल की है। तालिबान के एक टॉप लीडर से दोहा, क़तर में मीटिंग की गयी है। भारत ने अफगानिस्तान में भरी भरकम निवेश तो कर ही रखा है, साथ ही उसे रणनीतिक रूप से भी अपने हितों की रक्षा करनी है।

सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव

भारत इन दिनों संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का अस्थाई अध्यक्ष है। परिषद् में एक प्रस्ताव पास किया गया है जिसमें तालिबान को अफगानिस्तान में कामकाज संभालने की सशर्त मान्यता दे दी गई है।

प्रस्ताव में कहा गया है कि तालिबान एक अस्थाई सरकार की तरह अफगानिस्तान में काम कर रहा है सो यह सुनिश्चित करना होगा कि वहां आतंकवाद न पनपने पाए। यह जिम्मेदारी तालिबान की होगी। अफगानिस्तान की सरजमीं का इस्तेमाल किसी देश को धमकाने, बदला लेने या फिर आतंकवाद के लिए नहीं किया जायेगा।

फोटो- सोशल मीडिया

जो लोग अफगानिस्तान छोड़ना चाहते हैं उनको सुरक्षित निकलने में मदद करनी होगी। ये प्रस्ताव फ़्रांस की तरफ से प्रायोजित था जिस पर भारत, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम समेत 13 देशों ने अपनी स्वीकृति दे दी । लेकिन रूस और चीन ने न तो प्रस्ताव का विरोध किया और न इसका समर्थन ही किया।

ऐसे में माना जा सकता है कि रूस और चीन भी तालिबान को स्वीकार कर रहे हैं। मोटे तौर पर देखें तो प्रस्ताव में वही बातें हैं जो तालिबान और अमेरिका के साथ दोहा में हुए समझौते में कही गईं हैं।

भारत की सीधी बातचीत

अफगानिस्ताधन पर तालिबान के नियंत्रण के बाद भारत ने पहली बार इसके एक टॉप लीडर से सीधी बातचीत की है। बताया जाता है इसके पहले भी भारत के सुरक्षा अधिकारी और राजनयिक कई बार तालिबान से संपर्क कर चुके हैं । लेकिन यह पहली बार है जब सरकार ने सार्वजानिक तौर पर बातचीत को स्वीकार किया है।

पिछले कुछ महीनों में विदेश मंत्रालय ने यह कहा है कि वह अफगानिस्तान में विभिन्न पक्षों से बातचीत कर रहा है। इस बात से कभी इनकार नहीं किया गया कि तालिबान से बातचीत नहीं हुई है।

जून महीनें में क़तर के एक विशेष दूत ने ऐसी एक बैठक के बारे में पुष्टि भी की थी। काबुल पर तालिबान के कंट्रोल के बाद दूतावास के कुछ लोग जब एयरपोर्ट जा रहे थे तो तालिबानी लड़ाकों ने उनको रोक लिया था। इनके सुरक्षित पैसेज के लिए तालिबान से बात भी की गयी थी।

यह मुलाकात कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल और तालिबान के नेता शेर मोहम्मैद अब्बालस स्टैनिकज़ई के बीच हुई है। विदेश मंत्रालय का कहना है कि मुलाक़ात का अनुरोध तालिबान की तरफ़ से आया था। इस मीटिंग में भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में भारतीयों, अफ़ग़ान नागरिकों, ख़ासतौर पर अल्पसंख्यक अफ़ग़ान नागरिकों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया।

भारत के राजदूत मित्तल ने साफ़ कहा कि अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल आतंकवाद और खासतौर पर भारत के ख़िलाफ़ नहीं होना चाहिए। बताया गया है कि तालिबान के प्रतिनिधि ने भारत की तीनों चिंताओं पर भरोसा दिलाया है।

तालिबान के पोलिटिकल मामलों के नेता मोहम्मंद अब्बा स स्टैनिकज़ई का भारत से पुराना कनेक्शन है। दरअसल, स्टैनिकज़ई कई साल पहले आईएमए देहरादून में भारतीय सेना से प्रशिक्षण पा चुके हैं। तीन दिन पहले भी स्टैनिकज़ई ने एक वीडियो बयान जारी कर भारत के साथ अच्छे संबंधों की बात की थी।


उन्होंने कहा था कि तालिबान भारत के साथ सांस्कृतिक, राजनयिक और व्यापारिक संबंध पहले की तरह रखना चाहता है। इस वीडियो में उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान और भारत के व्यापार के लिए पाकिस्तान के ज़रिए सड़क और हवाई रास्ते खुले रखने की ज़रूरत भी बताई थी। अब इस मीटिंग के जरिये स्टैनिकज़ई ने एक बार फिर यह जताने की कोशिश की है कि तालिबान भारत के साथ बेहतर संबंध चाहता है।

हक्कानी नेटवर्क

अफगानिस्तान में तालिबान के कंट्रोल के बाद भारत को सबसे बड़ी चिंता हक्कानी नेटवर्क को लेकर है। तालिबान का एक शीर्ष नेता सिराजुद्दीन हक्कानी अफगानिस्तान में 2008-2009 में भारतीय दूतावास पर हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इन हमलों में भारतीय राजनयिकों समेत 75 लोग मारे गए थे। तालिबान को लेकर यह भी चिंता है कि यह गुट बहुत कुछ पाकिस्तान के इशारों पर भी चलता है।

तालिबान के पिछले शासन के साथ भारत के अनुभव बहुत कड़वे रहे हैं। 1999 में भारत की इंडियन एयरलाइंस के विमान का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था। वे उसे अफगानिस्तान ले गए थे। अपने लोगों को छुड़ाने के लिए भारत को तीन पाकिस्तानी आतंकी छोड़ने पड़े थे।

पिछले बीस साल में भारत ने अफगानिस्तान में भारी निवेश किया है। देश के सभी 34 राज्यों में उसकी छोटी बड़ी कई परियोजनायें चल रही हैं जिसमें काबुल में बना नया संसद भवन भी शामिल है।

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