अब लागू होगी इमरजेंसी: मौसम में अप्रत्याशित बदलाव, हो जाएं सतर्क

तापमान में ये बदलाव केवल आपके शहर, राज्य या देश में नहीं हो रहा है ये वैश्विक स्तर पर हो रहा है। पूरी दुनिया इससे प्रभावित हो रही है। इसे देखकर ये सवाल उठने लगा है कि क्या जलवायु आपातकाल घोषित करने का समय आ गया है?

Update:2021-02-25 16:06 IST
अब लागू होगी इमरजेंसी: मौसम में अप्रत्याशित बदलाव, हो जाएं सतर्क

रामकृष्ण वाजपेयी

नई दिल्ली: मौसम में बहुत तेजी से बदलाव हो रहा है। लगता है फरवरी में ही गर्मी सारे रिकॉर्ड तोड़ देगी। हर आदमी मौसम के पारे में हो रहे बदलाव से परेशान है। मौसम के इस बदलाव से सांस की तकलीफें, रक्तचाप, सर्दी खांसी जैसी बीमारियों के मरीज भी बढ़े हैं। लेकिन हम आपको जो बताने जा रहे हैं उसके सामने ये तकलीफें कुछ भी नहीं हैं। तापमान में ये बदलाव केवल आपके शहर, राज्य या देश में नहीं हो रहा है ये वैश्विक स्तर पर हो रहा है।

जलवायु आपातकाल घोषित करने का समय आ गया?

पूरी दुनिया इससे प्रभावित हो रही है। इसे देखकर ये सवाल उठने लगा है कि क्या जलवायु आपातकाल घोषित करने का समय आ गया है? हालांकि किस स्तर पर और कितनी वैश्विक तापमान में वृद्धि हुई है, कोई भी इस बारे में पूरी तरह से निश्चित नहीं है। आसन्न खतरा आने में सदियों लग सकती हैं या फिर यह बहुत करीब भी हो सकता है।

कोविड-19 ने हमें सिखा दिया है कि हमें उम्मीद के मुताबिक तैयारी करनी चाहिए। इस मामले में हम एक महामारी के जोखिम से अवगत थे। हम यह भी जानते थे कि हम पर्याप्त रूप से तैयार नहीं थे। हमने सार्थक तरीके से काम किया। आज हम COVID -19 का मुकाबला करने के लिए वैक्सीन के उत्पादन को तेजी से ट्रैक करने में सक्षम हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन के बदलाव की गति बदलने के लिए कोई वैक्सीन नहीं है, जब हम इसके सीमा बिंदुओं को पार कर लेते हैं।

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2006 में इतना था अधिकतम तापमान

मोटे तौर पर इसे ऐसे समझें वर्ष 2006 में 26 फरवरी को ऑल टाइम रिकॉर्ड 34.1 डिग्री सेल्सियस रहा है। मौसम विभाग का कहना है कि इस सप्ताह के अंत तक अधिकतम तापमान 33 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है जो ऑल टाइम रिकॉर्ड से एक कदम पीछे होगा।

आखिरी के दो दिन हो सकते हैं और सख्त

2006 से पहले वर्ष 2004 में अधिकतम तापमान 32.5 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किया गया था। वहीं, 1993 में यह 33.9 तक पहुंचा था। इस माह के अंत तक अधिकतम तापमान 33 तक छलांग लगाएगा। फरवरी के बचे हुए सप्ताह में धूप की तपिश अधिक रहेगी और आखिरी के दो दिन और सख्त देखने को मिल सकते हैं।

स्काईमेट वेदर की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बार फरवरी का औसत अधिकतम तापमान 27.5 डिग्री सेल्सियस के आसपास रह सकता है जबकि सामान्य तौर पर यह 24 के करीब रहता है।

सितंबर रहा करीब दो दशकों में सबसे गर्म

इसी तरह पिछले साल सितंबर करीब दो दशकों में सबसे गर्म रहा था। औसत अधिकतम तापमान 36.2 डिग्री रहा। अक्टूरबर में ठीक इसका उलटा देखने को मिला जब 58 सालों का रेकॉर्ड टूटा। उस महीने औसत न्यू3नतम तापमान केवल 17.2 डिग्री दर्ज हुआ।

नवंबर में उससे भी पुराना रेकॉर्ड धराशायी हो गया। औसत न्यूमनतम तापमान 10.2 डिग्री रहा जो कि 1949 के बाद सबसे कम था। दिसंबर का महीना पिछले 15 साल में सबसे ठंडा साबित हुआ। जनवरी में भी ठंड जारी रही। पिछले महीने शीतलहर वाले 7 दिन दर्ज किए गए जो 2008 के बाद सबसे ज्यादा रहे। फरवरी में फिर मौसम गर्मी में चरम पर पहुंच रहा है।

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(सांकेतिक फोटो- सोशल मीडिया)

यानी ये सब उतना सीधा और सरल नहीं है जितना दिखाई दे रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हमें अब अपनी जलवायु पर कार्रवाई करने की जरूरत है। क्योंकि अलार्मिंग स्थिति बेहद करीब है। उनके हिसाब से इस जलवायु परिवर्तन को एक धीमे-धीमे आने वाले बहुत दूर के खतरे के रूप में सोच बदलने की जरूरत है।

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना जरूरी

वैज्ञानिकों के दृष्टिकोण में हमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए अभी से योजना बनाने की जरूरत है, लेकिन साथ ही हमें जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों को ध्यान में रखकर योजना बनाने की भी आवश्यकता है, जैसे कि सभी को भोजन उपलब्ध कराने की क्षमता, अप्रत्याशित बाढ़ के जोखिम को प्रबंधित करने की योजना आदि।

वैज्ञानिकों के मुताबिक क्लाइमेट के टिपिंग बिंदुओं को तोड़ना प्रलयकारी होगा और संभावित रूप से COVID-19 से कहीं अधिक विनाशकारी होगा। कुछ लोगों को इसे सुनने में मज़ा नहीं आ सकता है, या उन्हें ये विज्ञान कथा जैसा लग सकता है।

यह हमारी जलवायु परिवर्तन पर तत्काल प्रतिक्रिया करने की भावना को दबाता है, जैसे कि हमने महामारी के लिए किया है, हमें इस बारे में अधिक से अधिक बात करनी चाहिए कि पहले क्या हुआ है और हम नहीं चेते तो फिर से होगा। अन्यथा हम अपनी धरती के साथ एक जुआ खेलना जारी रखेंगे और अंत में, केवल हारे हुए - होंगे हम।

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