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महिला सुरक्षा के उपाय फेल

पिछली सदी में समाज इस बात को लेकर बेहद आशान्वित था कि अगली सदी में महिलाएं पुरुषों के बराबर कदम से कदम मिलाकर चलेंगी। इसकी शुरुआत भी हुई।

Shreya
Published on: 12 Dec 2019 10:24 AM GMT
महिला सुरक्षा के उपाय फेल
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श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: पिछली सदी में समाज इस बात को लेकर बेहद आशान्वित था कि अगली सदी में महिलाएं पुरुषों के बराबर कदम से कदम मिलाकर चलेंगी। इसकी शुरुआत भी हुई। हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों की बराबरी करने लगी। लेकिन पिछले एक दशक से पुरुष और महिलाओं के बीच के रिश्ते जिस तरह खराब हुए उसे सभ्य समाज कभी भी नहीं स्वीकार करेगा। इसकी वजह देश में बढ़ते यौन हिंसा के मामले हैं। इनकी अचानक बाढ़ सी आ गई है। आपको जानकर हैरानी होगी कि आज जो केस सामने आ रहे हैं वो असली संख्या का मात्र एक फीसदी हैं। यानी यौन हिंसा के 99 फीसदी मामले दर्ज ही नहीं होते हैं। यही नहीं, जितने भी मामले दर्ज होते हैं उनमें सिर्फ 12 से 20 फीसदी मामलों में सुनवाई पूरी हो पाती है।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2007 से 2016 के बीच महिलाओं के प्रति अपराध में 83 फीसदी का इजाफा हुआ है। साथ ही हर घंटे में दुराचार के चार मामले दर्ज किए जाते हैं। दुनिया की बात करें तो 38 फीसदी महिलाओं की हत्या उनके किसी अंतरंग साथी द्वारा की जाती है। विश्व बैंक की 2018 की रिपोर्ट बताती है कि कुछ देशों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की कीमत उन देशों की जीडीपी के 3.7 फीसदी तक चुकानी पड़ती है।

30 फीसदी महिलाओं के साथ शारीरिक हिंसा

भारत में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4) के अनुसार भारत में 15 से 49 वर्ष की उम्र की 30 फीसदी महिलाओं के साथ किसी न किसी तरह की शारीरिक हिंसा होती है। रिपोर्ट बताती है कि इसी उम्र वर्ग की 6 फीसदी महिलाएं कम से कम एक बार यौन हिंसा का शिकार जरूर बनती हैं। करीब 31 फीसदी शादीशुदा महिलाएं अपने पति के हाथों शारीरिक, यौन या भावनात्मक हिंसा की शिकार होती हैं। देश में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर दुराचार के दर्ज मामलों का औसत 6.3 है। जिन राज्यों में महिला साक्षरता बहुत कम है वहां यह स्थिति ज्यादा ही खराब है।

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मात्र 0.5 फीसदी केस ही दर्ज होते हैं। जिन राज्यों में महिला साक्षरता दर ज्यादा है वहां महिलाओं के खिलाफ हिंसा की ज्यादा रिपोर्टिंग होती है। लेकिन एक पहलू यह भी है कि हिंसा की शिकार मात्र 3.5 फीसदी महिलाएं पुलिस के पास जाती हैं। बहुत मुमकिन है कि इन साढ़े तीन फीसदी में भी कई की शिकायत दर्ज ही नहीं की जाती हो।

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उत्तर प्रदेश का हाल

रिपोर्ट बताती है कि देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के जितने मामले दर्ज हुए उनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 56,011 थे। इसके बाद महाराष्ट्र (31979) और पश्चिम बंगाल (30,002) का स्थान रहा। दुराचार के दर्ज मामलों में मध्यप्रदेश सबसे आगे है जहां 5562 केस दर्ज हुए। दिल्ली का हाल कुछ अलग रहा। देश की राजधानी को 2012 के निर्भया कांड के बाद ‘रेप कैपिटल’ कहा जाने लगा था, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि वहां महिलाओं के खिलाफ हिंसा में कमी आई है। जहां 2015 में 17,222 केस दर्ज हुए थे, वहीं 2016 में इनकी संख्या 15,310 तथा 2017 में 13,076 हो गई। 2016 में उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए।

क्या कहता है एनएफएचएस सर्वे

-विगत एक वर्ष में यौन हिंसा की शिकार बनी महिलाएं (पति के इतर किसी अन्य के हाथों)-1432 (प्रति एक लाख में)।

-विगत एक वर्ष में यौन हिंसा की शिकार बनी महिलाएं (पति समेत किसी के भी हाथों)-24,772 (प्रति एक लाख में)।

-किसी भी तरह की हिंसा की शिकार महिलाएं-48,748 (प्रति एक लाख में)।

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े

महिलाओं द्वारा यौन हिंसा की शिकायत-212.6 (प्रति एक लाख में)।

महिलाओं पर किसी भी तरह की हिंसा - 397 (प्रति एक लाख में)।

मामले जो दर्ज नहीं किए गए

यौन हिंसा (वैवाहिक रेप के अलावा)- 85.2 फीसदी।

यौन हिंसा (वैवाहिक-रेप समेत) - 99.1 फीसदी।

महिलाओं के खिलाफ कुल हिंसा के मामले - 99.2 फीसदी

(स्रोत: मिंट)

आंकड़ों की बानगी

हमारे शहर महिलाओं के लिए कितना असुरक्षित हैं, इसकी बानगी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2017 की रिपोर्ट से साफ है। 2017 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 3.59 लाख मामले दर्ज हुए। 2016 में ये आंकड़ा 3.38 लाख तथा 2015 में 3.2 लाख का था। भारत में 2017 में दुराचार के 32,559 मामले दर्ज किए गए यानी रोजाना करीब 90। वर्ष 2017 में ही देश की अदालतों ने दुराचार के मात्र 18300 मामले ही निपटाए। साल के आखिर में 1,27,800 से ज्यादा मामले लंबित थे।

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नहीं दिख रहा महिला हेल्पलाइन का असर

हैदराबाद और उन्नाव की घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। केन्द्र और राज्य सरकारों के लाख प्रयास के बावजूद महिला उत्पीडऩ की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। यूपी की ही बात कीजिए तो यहां जिस उद्देश्य से महिला हेल्पलाइन 1090 की शुरूआत हुई थी और ऐसा लगा था कि इसके स्थापित होने के बाद अब महिला उत्पीडऩ की घटनाएं पूरी तरह से बंद हो जाएगी पर घटनाएं कम होने की बजाय दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही हैं।

घरेलू हिंसा के अलावा घर की दहलीज के बाहर भी महिलाओं का मानसिक और शारीरिक उत्पीडऩ किए जाने की घटनाएं आम होती जा रही हैं। उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग के पास रोज डेढ़ सौ से लेकर दो सौ शिकायतें आ रही हैं। यह बात अलग है कि कुछ शिकायतें व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए भी की जाती हैं जो अपनी राजनीतिक शत्रुता के लिए किसी दूसरे व्यक्ति पर आरोप लगवाने का काम करते हैं।

सोशल मीडिया पर परेशान करते हैं अराजक तत्व

1090 हेल्पलाइन पर आने वाली अधिकांश शिकायतें सोशल मीडिया के माध्यम से महिलाओं के मानसिक उत्पीडऩ की ही रहती हैं। इसके अलावा घरेलू हिंसा की भी शिकायतें खूब आती हैं। साल 2019 का अंतिम महीना चल रहा है और इसके पूरा होने में अभी तकरीबन 15 दिन बाकी हैं। पर अब तक जो भी आंकड़े इन 11 महीनों में सामने आए हैं उनको देखकर आश्चर्य होता है। अक्टूबर के अंत तक 2,13,581 महिलाओं ने 1090 हेल्पलाइन पर अपनी शिकायत कर दुखड़ा रोया। इनमें से 2,10,507 शिकायतों का निस्तारण किया गया। इसी तरह इसके पहले के वर्ष यानी 2018 की बात करें तो इस वर्ष 2, 66,005, वर्ष 2017 में 2,21,943 शिकायतें मिली जिनका निस्तारण भी किया गया।

25 से 30 वर्ष की महिलाएं सर्वाधिक शिकार

महिलाओं के मानसिक उत्पीडऩ की शिकार युवतियों की यदि औसत उम्र देखी जाए तो सबसे अधिक 25 से 30 वर्ष की होती हैं। इनका लगभग 31 प्रतिशत शिकार होता है। इसके अलावा 15 से 20 वर्ष आयु की 21 फीसदी, 30 से 40 वर्ष आयु की 17 फीसदी तथा 40 से 50 वर्ष आयु की छह प्रतिशत महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं होती हैं। अब अगर सोशल मीडिया की बात करें तो इस समय व्हाट्सएप और फेसबुक पर अश्लील टिप्पणी अथवा फोटो डालकर युवतियों को बदनाम करने का चलन खूब बढ़ा है।

प्रत्येक तिमाही पर आकलन करने वाली साइबर मीडिया टीम ने पाया कि अक्टूबर तक 23,468 शिकायतें मिली। जबकि इसके पहले के वर्ष यानी कि 2018 में यह आंकड़ा 17 हजार के आसपास था। वीमेन पावर लाइन पर अक्सर इस बात की शिकायतें आती हैं कि युवक उन्हें व्हाटसएप के माध्यम से लगातार गलत मैसेज भेजकर परेशान कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर ही ब्लैकमेलिंग कर महिलाओं को परेशान करने की पांच प्रतिशत, अश्लील मैसेज भेजने की 15 प्रतिशत, 58 प्रतिशत मानहानि, सात प्रतिशत हैंकिग की शिकायतें पाई गयीं।

घरेलू कामकाजी महिलाएं अनजान काल्स से परेशान

घरेलू कामकाजी महिलाओं को भी फोन कर उन्हें परेशान करने की शिकायतें भी खूब आती हैं। इनका आंकड़ा प्रतिशत 11 है। ये महिलाएं घर पर रहती हैं। उनका घर से निकलना कम होता है। बावजूद इसके वे अराजक तत्वों का शिकार होती हैं। एक अनुमान के अनुसार इस तरह की शिकायतों का प्रतिशत पचास से ऊपर हैं। इसक बाद समाज के अराजकतत्वों द्वारा सबसे ज्यादा शिकार स्कूली छात्राएं होती हैं। यह आंकड़ा 34 प्रतिशत है। वहीं दूसरी तरफ वीमेन पावर लाइन पर अक्सर घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं भी खूब शिकायतें करती रहती हैं।

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राज्य सरकार ने उठाए कदम

हाल ही में डीजीपी ने एक आदेश जारी किया है जिसमें कहा गया है कि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक अगर कोई महिला सडक़ पर अकेली है और 112 पर फोन करके सुरक्षा मांगती है तो पुलिस उसे सुरक्षित स्थान तक पहुंचाएगी। डीजीपी ने सभी पुलिस अधिकारियों से कहा कि पुलिस रिस्पांस विहकिल (पीआरवी) केवल 112 पर आई काल पर महिला को सुरक्षा उपलब्ध कराए। यह भी कहा है कि हर जिले में कम से कम 10 प्रतिशत पीआरवी पर एक पुरुष चालक, एक पुरुष कांस्टेबल और दो महिला सिपाही तैनात किए जाएं। योगी सरकार ने दुराचार, बाल और महिला उत्पीडऩ के केसों को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाए जाने की मंजूरी दे दी है। प्रदेश में 218 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का फैसला लिया गया है। इसमें दुराचार के मामलों की 144 फास्ट ट्रैक कोर्ट और पॉक्सो एक्ट से जुड़े मामलों की 74 फास्ट ट्रैक में सुनवाई होगी।

कैमरे लगेंगे, पिंक बूथ बनेंगे

राज्य सरकार महिलाओं के उत्पीडऩ को लेकर हर संभव प्रयास कर रही है। निर्भया फंड के तहत चल रही योजनाओं का विस्तार किया जाएगा। इंटीग्रेटेड स्मार्ट कंट्रोल रूम बनाया जाएगा, जिसमें 67.75 करोड़ रुपये खर्च होंगे। शहर में संवेदनशील स्थानों पर लगने वाले 1500 कैमरे इस कंट्रोल रूम से जुड़ेंगे। इसके लिए लखनऊ पुलिस लाइन में बिल्डिंग बनाई जाएगी। राज्य सरकार जल्द ही शहर में 10 पिंक बूथ भी बनाने जा रही है।

महिला पावर लाइन की क्षमता दोगुनी करने के लिए 80 टर्मिनल (कंप्यूटर) के लिए नया सेटअप तैयार करने की योजना है । पेट्रोलिंग के लिए 110 पिंक स्कूटर और 10 एसयूपी खरीदी जानी है। सरकार ने तमाम ऐसे कदम उठाए हैं जिनसे महिलाओं को मुश्किल हालात में सुरक्षा प्रदान की जा सके। इसके तहत कई मोबाइल एप लांच किए गए। जोर-शोर से उनका प्रमोशन किया गया कि मुसीबत के समय एक क्लिक पर मदद मिलेगी, लेकिन अब हालात यह हैं कि अब वो कहीं मिलते ही नहीं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यूपीकॉप ऐप में सारी सुविधाएं हैं। जबकि यूपीकॉप ऐप में महिलाओं के लिए कोई अलग से इंतजाम है ही नहीं।

जनजागरूकता का अभाव

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर वैसे तो सरकार हर प्रयास करती है पर जनजागरूकता के अभाव में महिलाएं इनके संसाधनों का उपयोग ही नहीं कर पाती हैं। पिछले साल ही प्रदेश सरकार ने वुमेन पावर लाइन 1090 एप लांच किया था। इसे महिलाएं स्मार्ट फोन में डाउनलोड कर सकती थीं, परतु एक साल में ही यह ऐप गूगल प्ले स्टोर से गायब हो गया है।

वुमन सेफ्टी ऐप में एक ऐसा भी फीचर है, जिसकी मदद से स्मार्टवॉच से भी कंट्रोल किया जा सकता है और इमरजेंसी मैसेज भेजा जा सकता है। इसमें पैनिक बटन दबाते ही मैसेज, वीडियो और मेल चला जाएगा और मदद मिलेगी, पर इस ऐप के बारे में पता चला कि यह काम ही नहीं करता है।

साल 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रक्षा ऐप को एक समारोह में बड़े जोरशोर से लांच किया था। इसमें पुलिस को कॉल करने के लिए बटन, इमरजेंसी कॉलिंग, लोकेशन शेयरिंग और मैसेज भेजने की सुविधा है। इंटरनेट न होने पर भी यह ऐप मैसेज भेज सकता है। पर अधिकतर महिलाओं का कहना है कि यह काम का नहीं है। इससे कोई न मेल और न मैसेज ही पुलिस को जाता है।

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महिला सम्मान प्रकोष्ठ ने बनाया विकल्प एप

महिलाओं के सम्मान के लिए उत्तर प्रदेश महिला सम्मान प्रकोष्ठ की भी स्थापना की गयी थी। इस प्रकोष्ठ में 20-22 कर्मचारी कार्यरत हैं। एक सीओ स्तर की अधिकारी इस पूरे सिस्टम की मानिटरिंग करती है। प्रकोष्ठ ने विकल्प नामक एक पोर्टल भी बनाया हुआ है जिसमें महिलाएं ऑनलाइन अपनी शिकायतें दर्ज करा सकती हैं। पूरे प्रदेश से यहां शिकायतें आती रहती हैं। 2016 में शुरू हुए इस पोर्टल का उद्देेश्य महिलाओं के उत्पीडऩ को रोकना है। पर इसका प्रचार प्रसार न हो पाने के कारण महिलाओं को लाभ नहीं मिल पा रहा है क्योंकि इसकी लोकप्रियता 1090 वीमेन पावर लाइन की तरह नहीं है।

उत्तर प्रदेश पुलिस ‘महिला सम्मान प्रकोष्ठ’ की ओर से महिला संबंधी अपराधों की रोकथाम के लिए देश का पहला वेब पोर्टल बनाया गया था। यह पोर्टल आने वाली शिकायतों को सम्बन्धित पुलिस अधिकारियों अथवा जिलों में संदर्भित कर देता है। एक तरह से यह पोस्टमैन का काम करता है। पर इधर कुछ साल से इसकी उपयोगिता में कमी आई है जिसके कारण शिकायतों की संख्या प्रतिदिन औसतन पांच अथवा सात ही होती है।

लोकप्रिय है वीमेन पावर लाइन 1090

यूपी पुलिस ने वीमेन पावर लाइन की स्थापना आज से कुछ वर्ष पूर्व की थी जो दिन पर दिन लोकप्रिय होता गया। इस काल सेंटर पर 1090 नम्बर पर प्रदेश के किसी भी कोने से महिलाएं, युवतियां किसी भी वक्त फोन कर अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं। यहां पर तैनात पुलिस कर्मी अभद्र व्यवहार करने वाले पुरुष को फोन करके पहले उसे परमर्श देते हैं। यदि वह अनसुना करता है तो फिर उसके खिलाफ वैधानिक कार्रवाई की जाती है।

शिकायत कब और कैसे करें

कोई व्यक्ति फोन के माध्यम से आपके साथ छेडख़ानी कर रहा हो। कोई व्यक्ति साइबर माध्यम से आपका उत्पीडऩ कर रहा हो। कोई व्यक्ति आपका पीछा करता हो तो शिकायत की जा सकती है।

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शिकायत कौन कर सकता है

पूरे उत्तर प्रदेश से कोई भी लडक़ी अथवा महिला फोन से अपनी शिकायत कर सकती है। यदि कोई महिला या लडकी स्वयं शिकायत दर्ज करने में असमर्थ है तो उसकी सहमति से कोई अन्य महिला या लडक़ी शिकायत कर सकती है।

क्या करता है 1090

शिकायत दर्ज होने के बाद उन्हें एसएमएस के माध्यम से शिकायत संख्या उपलब्ध कराई जाती है जिसके द्वारा भविष्य में भी शिकायतकर्ता अपनी शिकायत के सम्बन्ध में वीमेन पावर लाइन से सम्पर्क कर सकता है। दर्ज होने के बाद शिकायत तत्काल काउंसिलिंग सेक्शन में स्थानान्तरित हो जाती है जहां इसका निस्तारण पुरूष पुलिस कर्मियों द्वारा काउंसिलिंग के माध्यम से किया जाता है। दर्ज शिकायतों में पीडि़ता की पहचान काउंसिलिंग सेक्शन में भी गोपनीय रखी जाती है। यदि आरोपी काउंसिलिंग के बाद भी नहीं सुधरता है तो अन्य कार्रवाई की जाती है। आवश्यकता पडऩे पर संबंधित थाने के माध्यम से विधिक कार्रवाई भी की जाती है।

क्या है घरेलू हिंसा

शारीरिक पीड़ा, जीवन या अंग या स्वास्थ्य को खतरा या लैंगिक दुव्र्यवहार अर्थात महिला की गरिमा का उल्लंघन, अपमान या तिरस्कार करना या अतिक्रमण करना या मौखिक और भावनात्मक दुव्र्यवहार अर्थात अपमान, उपहास, गाली देना या आर्थिक दुव्र्यवहार अर्थात आर्थिक या वित्तीय संसाधनों, जिसकी वह हकदार है, से वंचित करना,मानसिक रूप से परेशान करना ये सभी घरेलू हिंसा कहलाते हैं।

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किस काम का फास्ट ट्रैक

मध्य प्रदेश में दो साल में दुष्कर्म के मामलों में 32 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन आरोपियों के पास अपील के बहुविकल्प होने के कारण किसी को भी फांसी पर नहीं लटकाया जा सका। इन जघन्य मामलों में मध्य प्रदेश लोक अभियोजन विभाग द्वारा प्रकरणों का त्वरित निराकरण किया गया। यह विभाग पूरे देश में अव्वल है। 2018 एवं 2019 में दरिंदगी के मामलों में विभाग ने 32 आरोपियों को फांसी की सजा दिलाई, लेकिन अभी तक कोई भी फांसी के फंदे पर लटका नहीं है।

दरअसल, जिला कोर्ट से फांसी की सजा सुनाने के बाद हाईकोर्ट में अपील की जाती है तो और वहां भी फांसी की सजा बरकरार रहती है तो आरोपी 90 दिन में सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है। वहां से भी फांसी की सजा मिलने पर भी तीन विकल्प और रहते हैं। पहला, पुनर्विचार याचिका:आरोपी सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकते हैं। दूसरा, राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका: पुनर्विचार याचिका खारिज हो जाती है तो आरोपी राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल कर सकते हैं। तीसरा, क्यूरेटिव याचिका:क्यूरेटिव याचिका तब दाखिल की जाती है, जब किसी दोषी की राष्ट्रपति के पास भेजी गई दया याचिका और सुप्रीम कोर्ट में डाली गई पुनर्विचार याचिका दोनों खारिज हो जाएं। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट अपने ही फैसलों पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार हो जाता है।

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तय समयसीमा में हो फैसला: बाथम

राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष विमला बाथम से जब ‘अपना भारत’ ने बात की तो उन्होंने बताया कि निर्भया कांड में सात साल से अधिक हो चुके हैं पर अब तक दोषियों को फांसी नहीं दी जा सकी है। ये तो बहुत पहले हो जाना चाहिए था जो अब तक नहीं हो पाया है। यूपी के बारे में महिला आयोग की अध्यक्ष कहती हैं कि जनसंख्या के लिहाज से देखा जाए तो यहां पर दुराचार की घटनाएं अन्य राज्यों के मुकाबले कम हैं। देखने में भले ऐसा लगता हो कि यूपी में अधिक घटनाएं हो रही हैं। पर यह कोई विषय नहीं हैं। सरकार को चाहिए कि एक भी दुराचार की घटना न हो पाए।

साथ ही समाज से भी अपील है कि वह अपने घरों में बेटी-बेटे में भेदभाव न करें। उनके मन में मानसिकता ही ऐसी पैदा न हो कि उनमें फर्क आए। घर से ही ऐसी शिक्षा मिले कि बेटे के मन में भी कोई खराब मानसिकता न आने पाए। ऐसी शिक्षा दी जाए कि बेटा अथवा बेटी मानसिक रोगी न बन सकें। आयोग का कहना है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट तो बन गए हैं, लेकिन समय सीमा निर्धारित होनी चाहिए। इन अदालतों को छह महीने में ही न्याय देना चाहिए। समय से अगर न्याय मिल जाए तभी समाज में एक संदेश जाएगा।

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