दीपावली 2020: शुभ मुहूर्त और राशि के अनुसार पूजन विधि

दीपावली की संध्या कालीन दीपक का पूजन सूर्यास्त के साथ ही किया जाता है। शाम 5.15 से 6 बजे के मध्यसंध्या तक पूजन शुभ है। माता लक्ष्मी और श्री गणेश के पूजन स्थिर लग्न में किया जाता है।

Update:2020-11-12 08:21 IST
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पं. देवेंद्र भट्ट (गुरूजी)

लखनऊ: त्रेता युग में भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और उनकी अयोध्या नगरी। अनुज लक्ष्मण एंव भार्या माता जानकी के संग चौदहवर्ष के बनवास एंव अन्यायी रावण का वध के उपरांत श्रीराम आयोध्या वापस आते हैं। अयोध्यावासियों, ने नगर को दीपोत्सव में बदल दिया। लक्ष्मीं स्वरूप माता जानकी के अगमन पर दीपोत्सव की यह परंपरा सनातन हिंदू संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण त्योहार होता है। यह उत्सव पांच दिन का होता है। प्रथम दिन का उत्सव कार्तिक मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को मनाया जाता है। यह धनतेरस नाम से प्रचलित है। जिसमें शुभ मूहर्त में सोने चांदी धातु एंव अन्य सामान क्रय करने का विधान है।

अगले दिन का उत्सव कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी है। जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से जानते हैं। विविधताओं को समेटने वाला हमारा सनातन धर्म जिसमें अपने गृह को स्वच्छ करने के उपरंत कूड़े के ढेर पर रात्रि के प्रथम प्रहर के अंत में दीपक जलाए जाने का विधान है। उसके अगले दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या को दीपवली त्योहार मनाते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को गोवर्धन (अन्नकूट) होता है। द्वितिया को भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। इन त्योहारों में शुभ मुर्हूत के अनुसार ही पूजन एवं उत्सव से जुड़े अन्य अनुष्ठान संपादित किया जाना चाहिए। जिससे घर में धन संपदा समाज में ऐश्वर्य वर्ष भर स्वस्थ पूर्वक आनंद के साथ जीवन यापन हो।

धनतेरस एवं नरक चतुर्दशी

कार्तिक मास कृष्ण त्रयोदशी को संमुदर मंथन के दौरान भगवान धनवन्तरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे धातु के कलश के प्रतीक स्वरूप धातु के वर्तन सिक्के (चांदी, लक्ष्मी गणेश मूर्ति एंव धनिया के बीज) खरीदना शुभ होता है। नरक चतुर्दशी को यमदूत के लिए सूर्यास्त के पश्चात दीपदान किया जाता है। कहा जाता है कि कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध करके सोलह हजार एक सौ कन्याओं को मुक्त करा कर सम्मान दिया था। नरक के पापमुक्ति हेतु इस दिन सूर्योदय के पूर्व उठकर शरीर में तेल मालिस करें। एंव चिचड़ा के जड़ पानी डालकर स्नान करने से इस लोक के पाप से मुक्ति मिलती है। वायु पुराण के अनुसार इसी तिथि को संकट मोचन हनुमान जयंती मनाई जाती है।

इस वर्ष त्रयोदशी का प्रारम्भ 12 नवबंर दिन गुरूवार सांय 6.30 बजे हस्त नक्षत्र में है। समाप्ती 13 नवबंर को शाम 4.11 pm तक है। धनतेरस की खरीद 12 नवबंर को 6.32 pm से 13 नवबंर को शाम 4.11 बजे के पूर्व कर लें। इसके पश्चात तुला राशि का भद्रा दोष है। अत: त्याज्य है। पुन: चतुर्दशी(नरक चतुर्दशी) दिनांक 13 नवबंर को 4:11 pm से 14 तारीखदिन शनिवार को दोपहर 1.11 pm पर समाप्ति है। अत: नरक चतुर्दशी का दीपदान 13 को सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के प्रथम प्रहर ही अंतिम घड़ी में घर के बाहर फेके गए कूड़ा कबाड़ पर दक्षिणामुखी सरसो के तेल का दीपक जलाएं। धन त्रयोदशी में धातु का सिक्का बर्तन चांदी-सोना, लक्ष्मी गणेश मूर्ति 12 नवबंर की शाम 6.31pm से रात्रि 9:08pm तक अथवा 13 नवबंर को मध्यान 12:05 से अपराह्न 2.29 तक करना शुभ है।

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दिवाली पूजन

दीपावली की संध्या कालीन दीपक का पूजन सूर्यास्त के साथ ही किया जाता है। शाम 5.15 से 6 बजे के मध्यसंध्या तक पूजन शुभ है। माता लक्ष्मी और श्री गणेश के पूजन स्थिर लग्न में किया जाता है। अत: वृष लग्न में संध्या 5:33 pm से रात्रि 7.20 pm के मध्य करना शुभ होगा। वणिक वर्ग द्वारा महानिशा पूजन किया जाता है। उनके लिए सिंह लग्न रात्रि 12:01 से 2:25 am के मध्य किया जाना शुभ है। व्यापारिक प्रतिष्ठानों मे जहां दिन में मूर्ति स्थापना एवं पूजा का विधान प्रचलन में है। वहां दोपहर 1:40pm से 2.24pm तक मूर्ति स्थापना एवं पूजन करना शुभ है। ध्यातव्य है कि सनातन संस्कृति में तिथि का निर्धारण चंद्रमा की चाल का घटी एंव पल के साथ सामंजस्य बैठाकर किया जाता है।

अत: प्राय: देखा गया है कि एक ही तारीख को एक से अधिक तिथियों का योग भी हो जाता है। ऐसे में एक सामान्य विधान है कि सुर्योदय की तिथि संपूर्ण दिन के लिए मान्य है। परंतु कुछ त्योहार दिन प्रधान होते हैं। तो कुछ नक्षत्र प्रधान एंव कुछ तिथि प्रधान होते है और कुछ राशि प्रधान होते है। ऐसे में जिस पर्व को रात्रि प्रधान माना गया है। उसमें सुर्योदय की तिथि का सिद्धांत का अव्यवाहरिक है। यथा दीपावली में कार्तिक आमवस्या की रात्रि प्रधान है। तो पर्व का निर्धारण रात्रि को ध्यान में रख कर किया जाएगा। अगले दिन 15 नवबंर को गोवर्धन पूजा अथवा अन्यकूट पूजन है। कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितिया को भैय्या दूज (भाई-बहन) का पर्व है। इसी दिन कायस्थ कुल द्वारा भगवान चित्र गुप्त का पूजन एंव संध्या काल में कलम दवात का पूजन होगा।

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दीपावली पूजन में कुछ मंत्रों का उपयोग

कुबेर मंत्र- देवताओं के कोषाध्यक्ष भगवान कुबेर को लाल चंदन की माला द्वारा प्रसन्न करने हेतु मंत्र प्रयोग करें।

"ओम यक्षाय कुबेराय वैश्रववाय धन धन्याधिपतये धन धान्या समृद्धि में देहि दापय स्वाहा"

महालक्ष्मी मंत्र-कमल गट्टे की माला पर जपें

" ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं श्री ॐ।"

श्री गणेश मंत्र- धन ऐश्वर्य कार्य में बाधा निवारण हेतु गणेश मंत्र का जाप हाथीदाँत अथवा रूद्राक्ष की माला पर किया जाता है।

" ॐ वक्रतुण्डाय दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजन मे वशमानय स्वाहा।"

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राशियों के अनुसार पूजा पद्धितयों में थोड़ा बहुत अंतर करके धन, सुख, वैभव, आरोग्य प्राप्ति संभव है।

मेष राशि: इस राशि के जातक पूजन के समय केसरिया वस्त्र धारण करें। आसनी भी केसरिया रंग की हो। लाल एक रंगे पर माता लक्ष्मी और गणेश की स्थापना करें। पीले प्रसाद का भोग लगावएं। कुबेर मंत्र का जाप करें।

वृष राशि: इस राशि के जातक श्वेत धोती एंव उपर का वस्त्र धारण करें। भगवान गणेश को हरे दूर्वा का प्रयोग करके भोग लगाएं। महालक्ष्मी मंत्र का ध्यान करें।

मिथुन राशि: इस राशि के जातक हरे रंग के गमछे का प्रयोग अपने बांए भुजा पर रख कर करें। सिद्धिविनायक मंत्र का जाप करें। गणेष भगवान को लाल चंदन लगावें एंव माता लक्ष्मी को गृहणी से सिंदूर लगवाएं। चलित राजकीय मुद्रा का प्रयोग करें एंव पूजन करें।

कर्क राशि: इस राशि के जातक पीला वस्त्र धारण करें एवं अपने आराध्य को भी पीले आसन पर विराजमान करें। चांदी की मुद्रा से पूजन करें। श्वेत चावाल फल आदि से भोग लगावएं। उपलब्ध हो तो मोती भी भगवान गणेश को अर्पित करें।

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सिंह राशि: इस राशि के स्वामी भगवा रंग के वस्त्र धारण करें। पूजन में लाल पुष्प का अवश्य प्रयोग करें। लाल फल से भगवान गणेश को भोग लगाएं। धन कुबेर मंत्र का जाप करें, अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा देवी लक्ष्मी को अर्पित करें।

कन्या राशि: श्वेत एवं हरे वस्त्र साधक को धारण करना चाहिए। चांदी की मुद्रा जिस पर किसी देवी की तस्वीर हो , को रखकर पूजन करे। श्री गणेश को दूर्वा एवं ताम्बूल चढावें।

तुला राशि: इस राशि के जातक लक्ष्मी महा मंत्र का ध्यान करें, पीली खड़ी हल्दी की पाँच गाँठ अवश्य चढाएं, गाय के दूध से श्री गणेश लक्ष्मी को स्नान कराएं। कमल के पुष्प पर माता लक्ष्मी को विराजमान करें।

वृश्चिक राशि: लालचंदन की माला पर कुबेर का ध्यान करें। गंगा जल से लक्ष्मी गणेश का स्नान कराएं। श्री गणेश को लाल लड्डू का भोग लगाएं। लाल रंग का आसन दें।

धनु राशि: इस रशि के जातक ,स्वर्ण धातु का अभूषण माता लक्ष्मी को अर्पित करें। राजकीय मुद्रा भगवान गणेश को अर्पित करें, गुरु बृहस्पति का ध्यान करें। पीले लड्डू को पान के पत्र पर रखकर भोग लगाएं।

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मकर राशि: इस राशि के जातक राजकीय सिक्का जिसमें लौह धातु की प्रधानता हो भगवान गणेश को चढावें। स्टील के वर्तन में अन्न, बर्फी एंव काला तिल चढावें पीपल के वृक्ष के नीचे भी पांच दीपक सरसो के तेल का जला दें।

कुंभ: स्टील के लोटे में गाय का दूध रखकर गणेश लक्ष्मी को स्नान करावें। संभव हो तो नीले रंग का पुष्प चढावें। हनुमान मुर्ति पर सिंदूर एंव चमेली के तेल का लेप करें।

मीन: इस राशि के जातक महा लक्ष्मी को स्वर्ण अभूषण चढाएं। पीतल के थाली में लड्डू का भोग लगाएं। श्री गणेश को पीला वस्त्र पहनाएं, गंगा जल में पिसी हुई हल्दी मिलाकर लक्ष्मी गणेश को स्नान कराएं, स्वंय भी पीले आसन का प्रयोग करें।

त्योहार जीवन का उत्सव है। उत्सव मनाया जाना देवताओं को प्रिय है। साधक को प्रसन्न मुद्रा मे देखकर, आराध्य देव मनवांक्षित वर प्रदान करते हैं।सीमित संसाधन में भी सपत्नी ,बच्चों ,बृद्ध माता-पिता ,बंधु-बाधवो के साथ खुश होकर किया गया अनुष्ठान फलदायी है।

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पं. देवेंद्र भट्ट (गुरूजी)

वास्तु एवं ज्योतिर्विद

ईमेल-आईडी-astrogurudev108@gmail.com

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