ये गुरु कहां करें फरियादः बंद हो गए शिक्षण संस्थान, सड़क पर आ रहे परिवार
कोरोना महामारी ने चारों तरफ अपना कोहराम मचा रखा है। जिसके कारण सारे शैक्षणिक संस्थानों को मजबूरी में बंद करना पड़ता है। लॉकडाउन लग जाता है। इनकम के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, धीरे धीरे हालात बिगड़ने लगते हैं।
पटना: सिर्फ 1 रुपया गुरु दक्षिणा लेकर पढ़ाने वाले चर्चित मैथेमैटिक्स गुरु आरके श्रीवास्तव के दर्द को कोई नहीं समझ सका। जिन्होनें सैकड़ों विद्यार्थियों को जो की आर्थिक रूप से गरीब और कमजोर थे आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई, एनडीए में सफ़लता दिलाकर उनके सपनों को लगा चुके है पंख। बिहार के आरके श्रीवास्तव ने कोरोना संकट में उन शिक्षकों के दर्द को बयान किया, जो आर्थिक संकट के कारण काफी परेशान है। प्राइवेट शैक्षणिक संस्था बंद होने से शिक्षकों का परिवार काफी परेशानी में आ चुका है। इस पत्र को सभी को जरूर पढ़ना चाहिये।
शिक्षक की भूमिका अहम होती है
जो स्टूडेंट्स की खुशियो से झूम उठता है, उनकी छोटी सी तकलीफ में परेशान हो जाता, उस गुरु के दर्द को किसी ने नही समझा, शिक्षण और प्रशिक्षण का मूल उद्देश्य व्यक्ति को सफल जीवन जीने के लिए सशक्त बनाना तथा स्वयं, परिवार, समाज, राष्ट्र और मानवता के लिए सर्वश्रेष्ठ योगदान देना है। इसमें शिक्षक की भूमिका अहम होती है।
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जिस शिक्षक/ शिक्षिका ने अपना सम्पूर्ण जीवन बच्चों को बेहतर और सफल नागरिक बनाने में लगा दिया। जो उनकी हर सफलता पर खुशियों से झूम उठते हैं, गर्व महसूस कर सभी को बताते है की मेरे स्टूडेंट्स ने यह मुकाम हासिल किया, कभी डाट से तो कभी प्यार से सही राह दिखाते हैं।
शिक्षक अपने स्टूडेंट्स के लिये सब कुछ करते हैं
हमेशा उनको समझाते की जीतने वाले मैदान नहीं छोड़ते और मैदान छोड़ने वाले जीतते नही। पढाते समय कभी कोई परेशानी होती तो तुरंत उनके पैरेन्टस को बताते, फिर प्रतिदिन फोन कर हालचाल पूछते हैं। पढ़ाई या अन्य कोई शिकायत आने पर तुरंत उसे दूर करते हैं, स्कूल या कोचिंग प्रांगण में शिक्षक अपने स्टूडेंट्स के लिये वह सब कुछ करते जिस पर सभी गर्व महसूस करें।
किसी ने नहीं लिया गुरुओं का हाल
कोरोना महामारी ने चारों तरफ अपना कोहराम मचा रखा है। जिसके कारण सारे शैक्षणिक संस्थानों को मजबूरी में बंद करना पड़ता है। लॉकडाउन लग जाता है। इनकम के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, धीरे धीरे हालात बिगड़ने लगते हैं। ऐसे में क्या कोई स्टूडेंट्स या उसके माता पिता ने उन शिक्षकों से फोन कर हालचाल पूछा?
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क्या कभी यह जानने की कोशिश किसी स्टूडेंट्स या अभिभावक ने किया कि उनकी मैम या सर कैसे हैं या अभी कहां पर हैं। आप सभी सोचकर बताएं कि इस महमारी से कौन नही लड़ रहा। यह समय एक दुसरे को अपनी परेशानी बताकर नैतिक जिम्मेदारी से भागने का नही बल्कि एक दुसरे का ताकत बनने का समय है । स्कूल और कोचिंग बंद होने से शिक्षकों को वेतन मिलना बंद हो गया है। बहुतों की तो नौकरी चली गयी।
अभिभावक अपने आप से सवाल पूछें
यदि ऐसी ही स्थति रही तो सिर्फ स्कूल में चेयरमेन, एक क्लर्क और साफ सफाई करने वाले रह जायेंगे। उसके बाद जब आपके बच्चे स्कूल या कोचिंग में कदम रखेंगे तो क्या वह मैम या सर मिल जायेंगे जो आपके साथ कदम से कदम मिलाकर हमेशा खड़े रहते थे। आपके बच्चों के सपनो को पंख लगाने के लिये हमेशा प्रेरित कर सही दिशा देते हैं। जब आप अभिभावक अपने आप से सवाल पूछेंगे तो आपको पता चलेगा की आपके बच्चो की सफलता की डोर उन शिक्षको के हाथों में था जिनका आपने इस संकट की घड़ी में कभी फोन कर एकबार हालचाल भी नही पूछा।
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ऐसी शिक्षा का क्या मतलब
जब आपके बच्चे आपसे सवाल पूछेंगे की आपने हमारे गुरु को कोरोना जैसे संकट में जहां उनकी नौकरी चली गयी उन्हें गुरु दक्षिणा तो नही दे सके उल्टे उन्हे बुरे हालात में छोडकर आ गये तो क्या आपके पास इन सवाल का जवाब होगा। जब आपके बच्चे आपसे पूछेंगे की ऐसी शिक्षा का क्या मतलब जब हम एक दुसरे की मदद ही न कर सके, नही चाहिये हमे ऐसी शिक्षा तब क्या आप पैरेन्टस जवाब दे पायेंगे।