जानिए क्या है मुमताज, बुरहानपुर और अश्वत्थामा का रिश्ता, आइये पढ़ें पूरी खबर
मुगल बादशाह शाहजहां की प्रिय मुमताज बेगम को बुराहनपुर के असीरगढ़ में दफनाया गया और जब ताजमहल बन कर तैयार हो गया, तो 6 महीने बाद उन्हें आगरा ले जाकर दफनाया गया।
Mumtaz Begum : अश्वत्थामा, मुगल बादशाह शाहजहां की प्रिय मुमताज बेगम और मोती बेगम, सैकड़ों साल पुराना अद्भुत जलापूर्ति सिस्टम, अकबर के नवरत्नों में शामिल अब्दुल रहीम खानखाना, फ्रेंच लेखक जूल्स वर्नी की किताब 'अराउंड द वर्ल्ड इन 80 डेज, खोए की जलेबी, रुमाली रोटी और रस्सी - इन सब चीजों में एक चीज कॉमन है जिसका नाम है बुरहानपुर! मध्य प्रदेश का वो शहर जिसे शेर शाह सूरी ने दक्कन का दरवाजा बताया था।
अब बुरहानपुर (Burhanpur) इसलिए चर्चा में आया है क्योंकि इस शहर के एक शराब व्यापारी ने अपनी पत्नी को ताजमहलनुमा सात बेडरूम का घर गिफ्ट किया है। ये तो बात मोहब्बत की है जिसकी मिसाल शाहजहां - मुमताज के नाम पर दी जाती है।
मुमताज़ बेगम के लिए बनाया खास हम्माम
दरअसल, जब अकबर ने बुरहानपुर को 1601 में खानदेश सल्तनत से छीन कर मुगल साम्राज्य में मिला लिया था उसके बाद ये जगह मुगल साम्रज्य में बहुत महत्वपूर्ण स्थान पर रहा। शाहजहां ने यहां बहुत समय बिताया था और यहां शाही किला बनवाया था। इसी किले में मुमताज़ बेगम के लिए बनाया खास हम्माम था। जिसकी दीवारों पर जो भित्तिचित्र बने हैं उनमें एक हूबहू ताजमहल जैसा है।
शाहजहां ने अपनी दिलोजान से प्यारी बेगम मुमताज़ की याद में ताजमहल भले ही आगरा में बनवाया था लेकिन मुमताज बेगम का असली रिश्ता बुरहानपुर से रहा था। मुमताज बेगम ने अपना ज्यादातर समय बुरहानपुर में ही बिताया था और यहीं अपने 14वें बच्चे के जन्म के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी।
मुमताज को बुराहनपुर के असीरगढ़ में दफनाया गया और जब ताजमहल बन कर तैयार हो गया तो 6 महीने बाद उन्हें आगरा लेजाकर दफनाया गया। बुरहानपुर में मुमताज की याद में एक काला ताजमहल भी बनाया गया था। शाहजहॉं की एक और प्रिय बेगम मोती का भी मकबरा यहीं है, जिसे मोती महल नाम से जाना जाता है।
आअश्वत्थामा
Ashwatthama
महाकाव्यों के अनुसार बुरहानपुर का असीरगड़ दुर्ग एक प्राचीन दुर्ग है। इसके भीतर एक शिव मंदिर भी है। कहा जाता है कि अनंत पथिक अश्वत्थामा अब भी प्रत्येक दिन इस मंदिर के दर्शनार्थ यहाँ आते हैं तथा शिवलिंग को पुष्पांजलि अर्पित करते है। यह मंदिर अत्यंत छोटा है। इसके समीप अश्वत्थामा (Ashwatthama) नामक एक जलकुंड भी है।
पानी सप्लाई सिस्टम
बुरहानपुर (Burhanpur) में एक बेहतरीन जल सप्लाई व्यवस्था है जिसे मुगलों ने बनाया तहस। इस अनोखी जल प्रणाली के पीछे कोई और नहीं बल्कि अब्दुल रहीम खानखाना थे। उन्होंने एक बेहद कामयाब व्यवस्था बनाई जिसमें जलाशय, कुंड, नहरें और पाइपलाइन शामिल थीं। ये आज भी मौजूद हैं।
जूल्स वर्नी
फ्रेंच लेखक जूल्स वर्नी का मशहूर उपन्यास है 'अराउंड द वर्ल्ड इन 80 डेज'। इस उपन्यास में एक व्यक्ति की विश्व यात्रा का वर्णन है जो उसने 80 दिन में पूरी की। वह जिन जगहों पर गया उसमें बुरहानपुर भी शामिल है।
रस्सी
बुरहानपुर कपास, कपड़े और रस्सी उद्योग के लिए मशहूर रहा है। यहां एक से एक रस्सियां बनती थीं जिनकी सप्लाई दुनिया भर में होती थी। आज भी ये शहर इन चीजों के लिए जाना जाता है।
जलेबी और रोटी
जलेबी तो बहुत सामान्य सी मिठाई है लेकिन बुराहनपुरी जलेबी कुछ अलग तरह की होती है। यहां के खानपान पर मुगलई छाप काफी है। शायद यही वजह है कि खानपान भी अलग तरह का है। यहां जलेबी में मावा यानी खोया भरा होता है। जलेबी के अलावा बुराहनपुरी रुमाली रोटी भी काफी मशहूर है। ये रोटियां सेंकने का अंदाज़ मुगलकाल से चला आ रहा है।
एक मान्यता है कि इस शहर का जिक्र भृगु संहिता में किया गया है क्योंकि उसकी रचना भृगु ऋषि ने ताप्ती नदी के तट पर बैठ कर की थी। ऐसा कहा जाता है कि इसे प्राचीनकाल में ब्रह्मपुरी कहा जाता था, लेकिन इसके कोई प्रमाण मौजूद नहीं हैं।