Guru Arjan Dev Martyrdom Day 2021 : इसलिए जहांगीर बन गया था जान का दुश्मन, अकबर करते थे पसंद

Guru Arjan Dev Martyrdom Day 2021: सिख धर्म के आध्यात्मिक जगत में गुरु श्री अर्जुन देव को सर्वोच्च दिया जाता है। सिख धर्म को मानने वाले लोग उन्हें ब्रह्मज्ञानी कहकर पूजते हैं। आज उनके 415वें शहादत दिवस पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने "उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए" और "आदि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के संकलन और श्री हरमंदिर साहिब के निर्माण में योगदान" के लिए श्रद्धांजलि अर्पित की।

Written By :  Vijay Kumar Tiwari
Published By :  Shivani
Update:2021-06-14 14:09 IST

Guru Arjan Dev Martyrdom Day 2021 : सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी को शहीदों के सरताज के रूप में जाना जाता है। सिख धर्म के आध्यात्मिक जगत में गुरु श्री अर्जुन देव को सर्वोच्च दिया जाता है। सिख धर्म को मानने वाले लोग उन्हें ब्रह्मज्ञानी कहकर पूजते हैं। आज उनके 415वें शहादत दिवस पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने "उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए" और "आदि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के संकलन और श्री हरमंदिर साहिब के निर्माण में योगदान" के लिए श्रद्धांजलि अर्पित की। 1588 ई. में, गुरु अर्जन देव ने हरमंदर साहिब की नींव रखी जिसे स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है।

इसके अलावा इन लोगों ने भी गुरु अर्जन देव की शहादत को याद करके श्रद्धांजलि दी है।




आज कैलेंडर के हिसाब से गुरु अर्जन देव का शहादत दिवस है। पांचवें सिख गुरु ने पवित्र सिख ग्रंथ, आदि ग्रंथ के पहले संस्करण को संकलित किया था, जिसे बाद में गुरु ग्रंथ साहिब में विस्तारित किया गया था। गुरु अर्जन देव की काबिलियत को देखकर गुरु रामदासजी ने 1581 में उन्हें पांचवें गुरु के रूप में गुरु गद्दी पर सुशोभित किया था।

सिख धर्म को मानने वाले बताते हैं कि श्री गुरुग्रंथ साहिब में तीस रागों में गुरु जी की वाणी संकलित है, जिसे गुरुजी ने स्वयं उच्चारित 30 रागों में 2218 शबदों को श्री गुरुग्रंथ साहिब में दर्ज किया है।
बताया जाता है कि श्री गुरुग्रंथ साहिब का संपादन गुरु श्री अर्जुन देव जी ने भाई गुरदास की सहायता से 1604 में किया। वैसे तो गुरुजी शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी थे। उनके मन में सभी धर्मों के प्रति अथाह स्नेह था। मानव-कल्याण के लिए उन्होंने आजीवन कार्य किए। गुरु श्री अर्जुन देव जी ने सिख संस्कृति को घर-घर तक पहुंचाने के लिए अथाह प्रयत्‍‌न किए। सुखमनी साहिब उनकी अमर-वाणी है।
कहा जाता है कि अकबर की मौत के बाद उसका पुत्र जहांगीर बादशाह बना तो वह गुरु जी की बढ़ती लोकप्रियता से ईर्ष्या करने लगा। 1606 ई. में लाहौर में मुगल बादशाह जहांगीर ने उन्हें बंदी बना लिया था और मृत्युदंग की सजा सुनाई थी।

गुरु अर्जुन देव के मुरीद थे अकबर

बाताया जाता है कि मुगलकाल में अकबर, गुरु अर्जुन देव के मुरीद थे, लेकिन जब अकबर का निधन हो गया तो इसके बाद जहांगीर के शासनकाल में इनके रिश्तों में खटास पैदा हो गई। ऐसा कहा जाता है कि शहजादा खुसरो को जब मुगल शासक जहांगीर ने देश निकाला का आदेश दिया था, तो गुरु अर्जुन देव ने उन्हें शरण दी। यही वजह थी कि जहांगीर ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी।
इसके बाद एक दिन उसने भीषण गर्मी के दौरान लोहे के गर्म तवे पर बैठाकर गुरु जी के शीश पर गर्म रेत डालवा दी। इससे गुरुजी के सारे शरीर पर फफोले निकल आए। इसके बाद उसने गुरुजी को लोहे की जंजीरों में बांधकर रावी नदी में फिंकवा दिया। गुरु अर्जुन देव ईश्वर को यादकर सभी यातनाएं सह गए और 30 मई, 1606 को उनका निधन हो गया।
कहते हैं कि गुरुजी का मात्र 43 वर्ष तक अपना जीवन जी सके पर उनका जीवनकाल अत्यंत प्रेरणादायी रहा। उन्होंने सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी वह डटकर आवाज उठायी।
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