Historical Gurdwaras In Pakistan:100 साल पुराने इस गुरुद्वारे को दोबारा क्यों खोल रही पाक सरकार?
historical gurdwaras in pakistan: पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में 100 साल से अधिक पुराना गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा, जिसे दशकों पहले एक पुस्तकालय में परिवर्तित कर दिया गया था अब उसे दोबारा खोला जाएगा।
लाहौर: पाकिस्तान (Pakistan) के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में सौ साल से भी पहले गुरुद्वारे श्री गुरु सिंह सभा (Gurdwara Sri Guru Singh Sabha) का निर्माण किया गया था। इसे अब खोले जाने की तैयारी है। गुरुद्वारे को दोबारा खोले जाने और मरम्मत के लिये अल्पसंख्यक मामलों के शीर्ष निकाय को जिम्मेदारी सौंप दी गई है। शुक्रवार को यह जानकारी संबंधित अधिकारियों द्वारा दी गई।
जानकारी के मुताबिक खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारे को दो दशक पहले एक पुस्तकालय में तब्दील कर दिया गया था। तब सिख समूहों ने इसका पुरजोर विरोध किया था। फिलहाल यह गुरुद्वारा खैबर पख्तूनख्वा (केपीके) प्रांत की सरकार के नियंत्रण में है। इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ईटीपीबी) के अध्यक्ष आमेर अहमद के मुताबिक, पूरी तरह से विचार-विमर्श के बाद केपीके सरकार ने बोर्ड के रुख को स्वीकार करते हुए मनसेहरा जिले में स्थित गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा का कब्जा ईटीपीबी को देने पर सहमति जता दी है।
बता दें कि ईपीटीबी एक वैधानिक बोर्ड है, जो उन हिंदुओं और सिखों की धार्मिक संपत्तियों और तीर्थस्थलों का प्रबंधन करता है जो विभाजन के बाद भारत के हिस्से में चले गए थे।
सिखों के लिए खुलेगा 100 साल पुराना गुरुद्वारा
अहमद के मुताबिक, अपनी मूल वास्तुकला और आकार में बरकरार ऐतिहासिक और शानदार इस गुरुद्वारे को मरम्मत के बाद कुछ महीनों में सिखों के लिए खोल दिया जाएगा। ईटीपीबी पर इसका नियंत्रण एक मील का पत्थर साबित होगा, क्योंकि यह देश के उत्तरी क्षेत्रों में पहला गुरुद्वारा होगा जिससे धार्मिक पर्यटनों को भी बढ़ावा मिलेगा।
प्रांतीय सरकार ने 20 साल पहले स्थानीय सिख समुदाय के विरोध के बावजूद गुरुद्वारे को पुस्तकालय में बदल दिया था। विभाजन के बाद से ही गुरुद्वारा पूजा के लिए बंद कर दिया गया था।
1905 में रखी गई थी गुरुद्वारे की आधारशिला
हजरो के सिख संत सरदार गोपाल सिंह साथी ने 1905 में गुरुद्वारे की आधारशिला रखी थी। साल 1976 में मनसेहरा को एक जिले के रूप में आधिकारिक रूप से सीमांकित करने के बाद मंदिर को पुलिस विभाग को सौंप दिया गया, जिसने अपने परिसर में एक पुलिस स्टेशन की स्थापना की। 2000 में गुरुद्वारे में एक सार्वजनिक पुस्तकालय स्थापित किया गया था।