यूक्रेन संकट का असर, तेल और गैस के दामों में भारी तेजी
रूस और यूक्रेन के बीच बढ़ते तनाव के कारण आने वाले कुछ महीनों में पेट्रोल-डीजल और गैस की कीमतों में बड़ी बढ़त होने की संभावना वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जताया है।
नई दिल्ली। रूस-यूक्रेन युद्ध संकट (Russia-Ukraine Tension) की आहट से ही लगभग हर चीज की कीमतें तेजी से बढ़नी शुरू हो गईं हैं। सबसे बड़ा असर कच्चे तेल पर पड़ा है और प्रति बैरल दाम 100 डॉलर तक पहुँच रहे हैं। इसके अलावा नेचुरल गैस, सूरजमुखी का तेल, गेहूं, अल्मुमिनियम, निकेल आदि की सप्लाई बाधित होने की आशंका मात्र से दाम चढ़ गए हैं। यूरोप में सबसे ज्यादा तात्कालिक असर दिख रहा है जबकि कच्चे तेल के दामों से भारत समेत पूरी दुनिया प्रभावित हुई है।
युद्ध की बात करने वालों के लिए आसन्न आर्थिक संकट एक बहुत बड़ा सन्देश है कि दो देशों के बीच किसी भी तरह का सशस्त्र संघर्ष बहुत बुरे प्रभाव लाता है।
यूक्रेन पर बढ़ते तनाव के चलते पूर्वी यूरोप से विश्व बाजारों में प्राकृतिक संसाधनों की सप्लाई बाधित होने का अंदेशा है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) द्वारा पूर्वी यूक्रेन के अलगाववादी क्षेत्रों में सेना उतारने के आदेश के बाद तेल की कीमतों में लगभग 5 फीसदी की वृद्धि हुई है और तेल सम्बन्धी शेयर की कीमतों में गिरावट आई है। रूस एक प्रमुख ऊर्जा उत्पादक देश तथा ओपेक प्लस का सदस्य है।
तेल की कीमतें 2014 के बाद से हाल ही में अपने उच्चतम स्तर पर पहले ही बढ़ चुकी हैं। अंतरराष्ट्रीय तेल के मानक ब्रेंट क्रूड की कीमत 2.71 डॉलर या 2.9 फीसदी बढ़कर 98.10 डॉलर प्रति बैरल हो गई है।
अमेरिकी बाजार 21 फरवरी को राष्ट्रपति दिवस के लिए बंद थे लेकिन यूरोप और एशिया के बाजारों में यूक्रेन संकट के झटके सुनाई दिए हैं।
दरअसल, रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई के चलते बड़े पैमाने पर लोग हताहत होंगे, पूरे यूरोप महाद्वीप में ऊर्जा की कमी हो जायेगी और दुनिया भर में आर्थिक अराजकता फ़ैल सकती है। कोरोना महामारी (corona pandemic) से भी कहीं ज्यादा असर इस संकट का पड़ेगा।
भारत के लिए चुनौती
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने आज कहा कि रूस-यूक्रेन संकट और कच्चे तेल की कीमतों में वैश्विक उछाल भारत में वित्तीय स्थिरता के लिए एक चुनौती है। सीतारमण ने कहा कि यह बता पाना मुश्किल है कि कच्चे तेल की कीमतें किस दिशा में जायेंगी। उन्होंने कहा कि ब्रेंट आयल 96 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गया है और देश इस पर नजर रख रहा है। वित्त मंत्री ने कहा कि तेल विपणन कंपनियां खुदरा कीमतों पर फैसला करेंगी।
भारत में कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के चलते पेट्रोल और डीजल की कीमतें 2021 में रिकार्ड लेवल पर पहुँच गईं थीं। नवंबर में केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में क्रमशः 5 रुपये और 10 रुपये प्रति लीटर की कटौती की और अधिकांश राज्यों ने भी मूल्य वर्धित कर में कटौती की जिसके चलते खुदरा दाम कुछ कम हुए थे।
नवंबर में कर कटौती के बाद से तेल कंपनियों ने कीमतों में बदलाव नहीं किया है। हालाँकि ब्रेंट क्रूड नवंबर की शुरुआत में लगभग 84.7 डॉलर प्रति बैरल से गिरकर दिसंबर की शुरुआत में 70 डॉलर से कम हो गया था। अब जिस तरह कीमतें 100 डॉलर के पार जा सकतीं हैं तो पूरी तरह मुमकिन है कि विधानसभा चुनाव निपटते ही पेट्रोल-डीजल के खुदरा दामों में बड़ी वृद्धि की जा सकती है।