नई मुसीबतः प्लाज्मा थेरेपी को झटका, ठीक हुए कोरोना मरीजों में एंटीबॉडी गायब

कोरोना वायरस की एक और मिस्ट्री सामने आई है। वो यह कि कोरोना संक्रमित मरीज जब स्वस्थ हो गए तो उनमें से कुछ के खून में एंटीबॉडी नहीं मिलती है।

Update:2020-07-25 13:55 IST

लखनऊ: कोरोना वायरस की एक और मिस्ट्री सामने आई है। वो यह कि कोरोना संक्रमित मरीज जब स्वस्थ हो गए तो उनमें से कुछ के खून में एंटीबॉडी नहीं मिलती है। भारत में कोरोना के खिलाफ बनी एंटीबॉडी दो महीने में खत्म होने के संकेत मिल रहे हैं।

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चीन स्थित शंघाई पब्लिक हेल्थ क्लीनिकल सेंटर के शोधकर्ताओं ने अप्रैल में ही पता लगाया था कि कोरोना मरीजों के स्वस्थ हो जाने पर 30 फीसदी के खून में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी के हाईलेवल नदारद थे। इससे पता चलता है कि ऐसे मरीजों के शरीर में अन्य प्रकार की एंटीबॉडी और इम्यूनिटी थी जिससे ये ठीक हो गए।

यूरोप में भी हुई रिसर्च में यही पता चला है। अध्ययन में पता चला है कि प्लाज्मा देने के बाद संक्रमित मरीजों के शरीर में तेजी से एंटीबॉडी तो मिल रहे हैं लेकिन एक निश्चित समय के बाद यह गायब भी हो रहे हैं। अभी तक प्लाज्मा थेरेपी के बारे में कहा जाता था कि कोई भी व्यक्ति स्वस्थ होने के बाद छह माह तक 15-15 दिनों के अंतराल से प्लाज्मा दान कर सकता है। अब अध्ययन में साबित हुआ है कि कोरोना वायरस की पहचान होने से 90 दिन के बीच ही प्लाज्मा देने के बाद मरीज में एंटीबॉडी देखने को मिल सकती है। लंदन के एक रिसर्च में तो 50 दिन में ही एंटीबॉडी गायब हो जाने की बात पता चली है।

मरीजों के खून से एंडीबॉडी गायब होने के मामले तमाम देशों में सामने आ चुके हैं। स्पेन में की गई स्टडी के मुताबिक वहां भी तीन माह में कई मरीजों में एंटीबॉडी समाप्त होने के केस रिपोर्ट किए गए हैं। लखनऊ के केजीएमयू में भी इस तरह के केस मिल रहे हैं। लखनऊ स्थित केजीएमयू के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग ने कई मरीजों में दो माह के भीतर आइजीजी एंटीबॉडी खत्म होने की पुष्टि की है। केजीएमयू में कई ऐसे मामले मिले हैं जिनमें कोरोना से ठीक हुए लोगों में एंटीबॉडी नहीं मिली है या कुछ दिनों बाद उनके ब्लड प्लाज्मा में एंटीबॉडी नदारद हो गई है। अच्छी बात ये है कि ऐसे मरीजों के दोबारा संक्रमित होने के मामले सामने नहीं आए हैं।

क्या है एंटीबॉडी?

एंटीबॉडी शरीर का वो तत्व है, जिसका निर्माण हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में वायरस को बेअसर करने के लिए पैदा करता है। संक्रमण के बाद एंटीबॉडी बनने में कई बार एक हफ्ते तक का वक्त लग सकता है। इसलिए अगर इससे पहले एंटीबॉडी टेस्ट किए जाएं तो सही जानकारी नहीं मिल पाती है। ऐसी स्थिति में कई बार आरटी-पीसीआर टेस्ट कराया जाता है।

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सार्स, इबोला में हुआ है प्रयोग

कोरोना का मुकम्मल इलाज दुनिया में कहीं नहीं है। लेकिन प्लाज्मा थेरेपी भी कारगर साबित हुई है। इसमें कोरोना से ठीक हो चुके शख्स का प्लाज्मा दूसरे मरीज को चढ़ाया जाता है। यह प्लाज्मा कारगर है भी या नहीं, ये जांचने के लिए दानकर्ता का एंटीबॉडी टेस्ट होता है। अलग अलग वायरस के खिलाफ अलग तरह की एंटीबॉडी का निर्माण होता है। एच1एन1 फ्लू, इबोला और सार्स के प्रकोप में डोनर्स के प्लाज्मा या सीरम से इलाज में सफलता पाई गई थी।

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