Air Pollution: सांस की नली को चोक कर रहा प्रदूषण, हर उम्र के लोगों को बहुत बड़ा खतरा

Air Pollution Effects: जो प्रदूषण हमें घने कोहरे की मानिंद दिखाई देता है वह नम हवा में लटके विभिन्न आकार के धूल कणों, साथ ही गैर-धातु ऑक्साइड, कार्बनिक कम्पाउंड और हेवी मेटल से बना होता है।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2024-11-20 14:06 IST

Air Pollution  (photo: soical media )

Air Pollution Effects: लखनऊ से लेकर दिल्ली और लाहौर तक इन दिनों सिर्फ एक ही चिंता है - जहरीली हवा की। बहुत बड़ा क्षेत्रफल घने स्मॉग की चपेट में है। हजारों लाखों लोग तरह तरह की बीमारियों के जबर्दस्त खतरे में हैं। इन बीमारियों में अस्थमा, सीओपीडी, फेफड़ों का कैंसर और सांस संक्रमण शामिल हैं। ये सब बीमारियां तरह तरह के वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने के कारण बढ़ जाती हैं, जिनमें सबसे अधिक असर पार्टिकुलेट मैटर (पीएम), ओजोन और नाइट्रोजन ऑक्साइड की वजह से होता है। ये भी जान लीजिए कि बाहरी वायु प्रदूषण हर साल 32 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार है।

जो प्रदूषण हमें घने कोहरे की मानिंद दिखाई देता है वह नम हवा में लटके विभिन्न आकार के धूल कणों, साथ ही गैर-धातु ऑक्साइड, कार्बनिक कम्पाउंड और हेवी मेटल से बना होता है। ये अति सूक्ष्म कण सांस के साथ शरीर में जाता है और सांस की नली से लेकर फेफड़े तक में जमा होता जाता है।

आंतरिक सूजन

पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे ये सूक्ष्म कण जब शरीर में पर्याप्त मात्रा में जमा हो जाते हैं तो ये आंतरिक सूजन पैदा कर सकते हैं। सांस की नली और फेफड़े समेत पूरा श्वसन सिस्टम, सूजन की वजह से सिकुड़ जाता है। पशुओं और इंसानों पर किये गए कई अध्ययनों में इसे साबित किया जा चुका है। अमेरिका की पर्यावरण संरक्षा एजेंसी द्वारा 2009 में किये गए अध्ययन से ये भी पता चला है कि मोटर इंजन, कारखाने और कोयला जलने से निकलने वाले कार्बन कण और धातुएं शरीर में एक मजबूत रिएक्शन पैदा कर सकती हैं।

वायुमार्ग की सूजन

- जो चीजें वायुमार्ग की जलन पैदा करती हैं, जैसे कि ठंडी हवा, सूक्ष्म कण प्रदूषण, एलर्जी, लिपोपॉलीसेकेराइड और गैसें, वह सांस के सिस्टम में सूजन के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाती है और ब्रोन्कोकन्सट्रिक्शन के कारण फेफड़ों की कार्यक्षमता को कम कर सकती हैं।

- सूजन शरीर में सेल्स यानी कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती है या मार सकती है।

- सूक्ष्म कण प्रदूषण के बार-बार संपर्क में आने से शुरुआती चोट बढ़ जाती है और सेल्स की क्षति के साथ पुरानी सूजन को बढ़ावा मिलता है।

कैंसर का खतरा

महामारी विज्ञान संबंधी अध्ययनों ने साबित किया है कि लकड़ी का धुआँ, कोयला जलाने, इंजन का धुआं आदि ऐसे जीनोटॉक्सिक हैं, जिनमें मौजूद आर्सेनिक, कैडमियम और क्रोमियम आदि से कैंसर हो सकता है।टरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर ने कण प्रदूषण सहित बाहरी वायु प्रदूषण द्वारा कैंसर होने की संभावना पर एक मूल्यांकन में भी यही निष्कर्ष निकाला है।

वर्ष 2009 के बाद से, कई महामारी विज्ञान संबंधी अध्ययनों में पता चला है कि लम्बे समय तक सूक्ष्म कण प्रदूषण के संपर्क में रहने से फेफड़े के कैंसर की घटनाओं और मृत्यु दर दोनों का संबंध पाया गया है।

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