Jambu Pahadi Masale Benefits: खाने में जान फूंक देता है ये जंबू नाम का अजूबा मसाला, इसके कई अचूक उपाय
Jambu Pahadi Masale Ke Fayde: जम्बू का उपयोग खांसी और सर्दी के इलाज के लिए किया जाता है और इसमें गले में खराश को दूर करने की क्षमता होती है।
Jambu Pahadi Masale Ke Fayde: हमारे खाने में स्वाद का तड़का लगाने वाले गरम मसालों की अब तक प्रचलित 100 से भी ज्यादा प्रजातियां है। जो कि हमारी अकूत प्राकृतिक संपदाओं की ही देन हैं। ये मसाले ना सिर्फ हमारे खाने के स्वाद को दूना करने में मददगार साबित होते हैं बल्कि हमारे स्वास्थ की रक्षा करने में इनका औषधीय इस्तेमाल भी जमकर किया जाता है। इन्हीं मसालों की लंबी फेहरिस्त के बीच एक ऐसा मसाला भी है, जो अभी तब बहुतायत में इस्तेमाल में नहीं लाया जाता है। जबकि खाना पकाने में पारंगत लोग इस मसाले की खूबियों से भलीभाती परिचित हैं। इस मसाले को जम्बू के नाम से जाना जाता है। खाने में स्वाद बढ़ाने के साथ ही ये हमारे स्वास्थ के लिहाज से भी बेहद फायदेमंद है। इसमें मौजूद विटामिन सी हमारे शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और शरीर में हानिकारक बैक्टीरिया के विकास को रोकने में मदद करता है।
जम्बू का उपयोग खांसी और सर्दी के इलाज के लिए किया जाता है और इसमें गले में खराश को दूर करने की क्षमता होती है। जम्बू स्वस्थ त्वचा को बनाए रखने में मदद करता है।जंबू या झम्बू या जम्बू या जिसे फरन भी कहा जाता है , गुलाबी फूलों वाली एक बारहमासी जड़ी बूटी है, जिसके पत्ते और पुष्पगुच्छ सूख जाते हैं और उनका उपयोग मसाला बनाने के लिए किया जाता है। जम्बू नाम का ये मसाला उत्तराखंड के अल्पाइन हिमालय में 2500-3000 मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है।
जंबू को अंग्रेजी में ’हिमालायन चाइव्स’ कहते हैं और वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार यह प्याज के विस्तृत परिवार का सदस्य है। सूखी घास के तिनके या कोमल रेशे जैसा दिखलाई देने वाला जंबू अपनी तेज खुशबू और बेहतरीन स्वाद के लिए जाना जाता है।
तड़के और चटनी में भर देता है गजब का स्वाद
इस हर्ब के लाजवाब स्वाद और सुगंध के चलते इसे लहसुन और प्याज ना खाने वाले वाले पहाड़ी ब्राह्मण जंबू का इस्तेमाल लहसुन और प्याज जैसा स्वाद पाने के लिए तड़के के तौर पर करते हैं। हालांकि वर्तमान समय में प्रमुखता से तिब्बत से आने वाला जंबू अब वहां के बदलते परिवेश और पर्यावरणीय बदलाव के चलते लगभग विलुप्त हो गया है। यही वजह है कि लगातार घट रही इसकी पैदावार के चलते पहाड़ी स्थलों पर अब इसकी कीमत केसर के भाव हो चुकी है। यही वजह है कि इस कीमती मसाले को खरीदने से भी लोग बचने लगे हैं।
लेकिन स्थानीय प्रयासों के चलते इस अंचल में पर्यटन बढ़ने के साथ अब जंबू की पैदावार को बढ़ाने की ओर भी खास प्रयास किए जा रहें हैं। यहां आने वाले पर्यटक अब जंबू की खूबियों से परिचित हो रहे हैं। यहां बने रेस्टोरेंट अब मेहमानों को जंबू को नमक के साथ पीसकर एक पारंपरिक चटनी को परोस रहें हैं। इसके अतिरिक्त पड़ोसी नेपाल के मुस्तांग वाले इलाके में उम्दा स्वाद और खुशबू वाले खास किस्म के जंबू की खेती की जाती है जिसके स्वाद के साथ ही साथ इसके औषधीय गुणों के बारे में जानकारी फैलने के बाद इसका व्यापार और डिमांड अब बढ़ती जा रही है। इसका वैज्ञानिक नाम एलियम स्ट्रैची है। यह मूल रूप से हिमालय की चोटियों पर उत्तराखंड में पाया जाता है। इसमें गुलाब की तरह फूल भी लगते हैं।
औषधीय गुणों की खान है ये मसाला
पहाड़ी इलाकों में पाए जाने वाले जंबू मसाले का इस्तेमाल लाजवाब खुशबू और स्वाद पाने के लिए सब्जी या दाल में तड़का लगाने के लिए किया जाता है। वहीं ये मसाला खाने में जितना स्वाद बढ़ाने में माहिर है, उतना ही यह औषधीय गुणों से भी भरपूर है। यही वजह है कि इसे संजीवनी बूटी भी कहा जाता है।
पहाड़ी इलाकों के निवासी जंबू के औषधीय गुणों से बखूबी वाकिफ हैं । यही वजह है कि वे इसका इस्तेमाल अपने दैनिक आहार में करके खुद को स्वस्थ रखते हैं। ये खाने का स्वाद तो बढ़ाता ही है, साथ ही औषधीय गुण होने के कारण कई रोगों को दूर करने में भी मदद करता है।
इस तरह करें इस खास मसाले को स्टोर
इस खुशबूदार मसाले को 12 महीने इस्तेमाल में लाने के लिए उत्तराखंड के लोग जंबू की पत्तियों को सुखा कर इसे रख लेते हैं । इसकी पत्तियों को घी में रोस्ट कर के कई महीनों तक स्टोर किए जाने का चलन है। एक अध्ययन के अनुसार, घी में तले हुए सूखे जंबू के डंठल की भी स्वादिष्ट सब्जी बनती है। जबकि नेपाल में इसे उड़द की दाल के साथ तड़के के तौर पर इस्तेमाल किए जाने का चलन है। जंबू में ग्लूटामेट तत्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो अमीनो एसिड के तौर पर भी देखा जाता है। खाने में स्वाद बढ़ाने में इसकी अहम भूमिका मानी जाती है। इसके अलावा इसके तने से सब्जी भी बनाई जाती है।
कई बीमारियों के लिए घरेलू चिकित्सा में होता है इसका इस्तेमाल
हिमालय के खजाने में कई दुर्लभ औषधीय पौधे व जड़ीबूटियां पाई जाती हैं जिनमें जंबू का भी विशेष महत्व है। जंबू को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कोच, लोदम, धुंधवार जैसे कई नामों से प्रचलित है। इसकी पत्तियां बहुत पतली होती हैं। इसकी 250 अलग-अलग प्रजातियां होती हैं। इस पौधें की पत्तियों से लेकर जड़ों तक हर चीज का औषधीय इस्तेमाल किया जाता है। यह 10,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर प्राकृतिक रूप से पैदा होता है। उच्च हिमाचली क्षेत्र में अधिकता से पाए जाने वाला यह मसाला एमेरिलिस परिवार से जुड़ा है।
इसके प्रयोग की जमीन से ऊपर नजर आने वाले हिस्सों को चुना जाता है। इसके बाद इसे छायादार जगह पर हवा की मदद 15 दिन के भीतर ही सुखा लिया जाता है। इसके बाद इसका उपयोग विभिन्न औषधीय चिकित्सा में औषधि के रूप में किया जाता है। इस हर्ब में ऐलिसिन, एलिन, डाइन एलाइन सल्लम आमेर एवं अन्य स्टोन क्रिस्टल मौजूद रहते हैं। जिनकी मदद से बुखार, खांसी और पेटदर्द की समस्या से निजात पाया जा सकता है।
एक अध्ययन में पाया गया है कि जंबू के सेवन से पेट से संबंधित बीमारियां जैसे कि गैस, अपच और कब्ज को दूर किया जा सकता है। वहीं खून साफ करने, शरीर को स्फूर्ति और नसों में ताकत लाने के लिए भी अलग अलग तरह से इसका औषधीय इस्तेमाल किया जाता है। जंबू ब्लड शुगर, अस्थमा, जॉन्डिस, सर्दी-खांसी, जोड़ों का दर्द, बदन दर्द, कोलेस्ट्रॉल की समस्या से निजात पाने में, हार्ट की बीमारियों में इसका उपयोग किया जाता है। चिकित्सा के क्षेत्र में लगातार बेहतरीन प्रदर्शन कर रही इस जड़ी बूटी पर कई मेडिकल रिसर्च के बाद उत्तराखंड में इसकी पैदावार में लगातार इजाफा होता जा रहा है।