स्टडीः घर से नहीं ऑफिस में होता है ज्यादा बेहतर काम

Mental health at work: अध्ययन में दुनिया के 65 देशों के 54,831 कर्मचारियों को शामिल किया गया। यह अध्ययन अमेरिका की एक रिसर्च संस्था सैपियंस लैब ने किया।

Newstrack :  Network
Update:2024-11-05 14:41 IST

Mental health at work  (photo:social media )

Mental health at work: कोरोना महामारी के दौरान काम करने का तरीका काफी बदला रहा। बहुत सी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम यानी वर्क फा्रम होम की सुविधा दे दी थी। कोरोना महामारी के खत्म होने के बाद भी कई ऐसी कंपनियां हैं जो अपने कर्मचारियों आज भी वर्क फा्रम होम की सुविधा दे रही हैं। वहीं कई कर्मचारी वर्क फा्रम होम को बेहतर मानते हैं। घर से काम करना बेहतर है या आफिस से इसी को लेकर हाल की में अमेरिका में एक स्टडी की गई। जिसमें कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं।

कर्मचारियों के बीच बनता है तालमेल

अध्ययन में सामने आया कि वर्क फ्रॉम होम का कल्चर यानी घर से काम करने के बजाय आफिस जाकर काम करना बेहतर होता है। आफिस में काम करने वालों की मानसिक सेहत घर में काम करने वालों की तुलना में ज्यादा बेहतर होती है। अध्ययन में दुनिया के 65 देशों के 54,831 कर्मचारियों को शामिल किया गया। यह अध्ययन अमेरिका की एक रिसर्च संस्था सैपियंस लैब ने किया।

स्टडी के अनुसार ऑफिस में काम करने से कर्मचारियों के बीच अच्छे रिश्ते बनते हैं और काम में गर्व की भावना विकसित होती है जो मेंटल हेल्थ के लिए ज्यादा जरूरी हैं, बजाय वर्क-लाइफ को बैलेंस करने के। जिसमें वर्कलोड और फ्लेक्सिबिलिटी जैसे पहलू आते हैं।


अमेरिका-यूरोप से उलट है भारत

स्टडी में एक और हैरान करने वाली बात सामने आई। स्टडी में सामने आया कि भारत में जो लोग ऑफिस से काम करते हैं, उनकी मेंटल हेल्थ, घर से या हाइब्रिड तरीके से काम करने वालों से काफी बेहतर पाई गई। यह अमेरिका और यूरोप के बिल्कुल अलग है। जहां हाइब्रिड वर्कर्स की मेंटल हेल्थ सबसे अच्छी पायी गई।


वर्कलोड को लेकर छिड़ी है बहस

यह रिपोर्ट ऐसे समय पर आई है जब भारत में वर्कलोड, स्ट्रेस और टॉक्सिक वर्कप्लेस को लेकर बहस छिड़ी हुई है। वहीं हाल ही में पुणे में एक 26 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंट की मौत ने तो इस बहस को और भी हवा दे दिया है। स्टडी में वर्कलोड को कर्मचारियों के बीच परेशानी का एक प्रमुख कारण बताया गया है। लेकिन ये वर्क-लाइफ बैलेंस फैक्टर, मेंटल हेल्थ पर कुछ अन्य मानकों की तुलना में आधे ही प्रभावी पाए गए।


वर्कप्लेस पर तालमेल बेहद जरूरी

स्टडी में वर्कप्लेस को लेकर कहा गया है कि वर्कप्लेस पर कर्मचारियों के बीच तालमेल होना बहुत जरूरी है। तालमेल से आपसी रिश्ते और उनके काम में गर्व और उद्देश्य की भावना देखने को मिलती है। जो आपके मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे ज़्यादा असर डालते हैं, चाहे आप किसी भी तरह का काम क्यों न करते हों। वहीं स्टडी में आफिस में कर्मचारियों के बीच खराब रिश्ते और काम में गर्व और उद्देश्य की कमी को, गंभीर उदासी या निराशा, अवांछित होने की भावना और कम ऊर्जा के स्तर और प्रेरणा से जोड़ा गया है।


टीम में काम करने वालों की मेंटल हेल्थ होती है ज्यादा बेहतर

इस स्टडी में भारत में 5,090 लोगों का सैंपल लिया गया था। जहां सहकर्मियों के साथ खराब संबंधों और मानसिक परेशानी के बीच संबंध वैश्विक औसत से ज्यादा मजबूत पाया गया। दुनिया भर में जो लोग टीमों में काम करने वाले थे उनका मेंटल हेल्थ बेहतर था अकेले काम करने वाले लोगों की तुलना में। लेकिन टीम के आकार के साथ मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में ज्यादा तेज थी।

सैपियंस लैब की फाउंडर और न्यूरोसाइंटिस्ट तारा थियागराजन ने कहा, भारत में असहनीय वर्कलोड का संकेत देने वालों का 13 प्रतिशत वास्तव में वैश्विक औसत (16प्रतिशत) और अमेरिका (18प्रतिशत) से काफी बेहतर है, जबकि अपने सहयोगियों के साथ अच्छे संबंधों का संकेत देने वाले लोग वैश्विक औसत के बराबर हैं जो लगभग 50 प्रतिशत है। स्टडी में वैश्विक स्तर पर पाया गया कि ग्राहक सेवाओं और शारीरिक श्रम करने वालों ने ज्ञान-आधारित नौकरियों में कार्यरत लोगों की तुलना में काफी खराब प्रदर्शन किया।

स्टडी में मेंटल हेल्थ कोशेंट नामक एक नजरिए का उपयोग किया गया, जो मानसिक भावना और काम के 47 पहलुओं का आंकलन करता है जो एक समग्र मानसिक स्वास्थ्य स्कोर में एकत्र होते हैं।

थियागराजन ने कहा, हम मानसिक स्वास्थ्य को केवल मनोदशा और दृष्टिकोण कारकों के रूप में परिभाषित नहीं करते हैं, बल्कि इसे मानसिक क्षमताओं के पूर्ण पूरक के रूप में परिभाषित करते हैं जो हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने और उत्पादक रूप से कार्य करने की अनुमति देते हैं। इनमें अनुकूलनशीलता और लचीलापन, सामाजिक स्व, ड्राइव और प्रेरणा, अनुभूति और मन-शरीर संबंध शामिल हैं।

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