देवउठनी एकादशी के साथ शुरू होंगे शुभ मुहूर्त, ख़ास है ये दिन

देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है और सभी शुभ कार्य जैसे विवाह आदि शुरू हो जाते हैं। कहा जाता है कि विष्णु जी जागने के पश्चात सबसे पहले तुलसी की प्रार्थना सुनते हैं।

Update:2020-11-20 20:23 IST
देवउठनी एकादशी के साथ शुरू होंगे शुभ मुहूर्त, ख़ास है ये दिन

नील मणि लाल

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी या देवोत्थान प्रबोधनी एकादशी मनाई जाती है। देवउठनी एकादशी इस बार 25 नवंबर को मनाई जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार एक साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं, जबकि एक माह में 2 एकादशी तिथियां होती हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं।

मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है और सभी शुभ कार्य जैसे विवाह आदि शुरू हो जाते हैं। कहा जाता है कि विष्णु जी जागने के पश्चात सबसे पहले तुलसी की प्रार्थना सुनते हैं। इस दिन तुलसी और विष्णु जी के विग्रह स्वरूप शालीग्राम का विवाह किया जाता है।

विष्णु और तुलसी का विवाह

मान्यताओं के अनुसार वृंदा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी। उनका विवाह शंखचूड़ नामक राक्षस से हुआ था। सभी उस राक्षस के अत्याचारों से त्रस्त थे। जब देवों और शंखचूड़ के बीच युद्ध हुआ तो वृंदा के सतीत्व के कारण उसे मारना असंभव हो गया था। सभी देवों ने इस बारे में विष्णु जी से सहायता मांगी। विष्णु शंखचूड़ का रूप धारण करके वृंदा के समक्ष गए। नारायण को अपना पति समझकर वृंदा पूजा से उठ गई जिससे उनका व्रत टूट गया।

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परिणाम स्वरुप युद्ध में शंखचूड़ की मृत्यु हो गई। जब इस बात का पता वृंदा को चला तो उन्होंने विष्णु से कहा की ‘हे नारायण में जीवनभर आपकी भक्ति की है फिर आपने मेरे साथ ऐसा छल क्यों किया?’ विष्णु के पास वृंदा के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था। वे चुपचाप खड़े होकर सुनते रहे और वृंदा की बात का कोई उत्तर नहीं दिया। उत्तर प्राप्त न होने पर वृंदा ने क्रोधित होकर कहा कि आपने मेरे साथ पाषाण की तरह व्यव्हार किया है। आप पाषाण के हो जायें।

वृंदा के श्राप के कारण नारायण पत्थर के बन गए और उन्‍हें शालिग्राम कहा जाने लगा। इस घटना से सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। तब सभी देवों ने वृंदा से प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए वृंदा ने नारायण को क्षमा कर दिया और सती हो गई। उनकी राख से एक पौधा उत्पन्न हुआ तो तुलसी कहलाया।

विष्णु जी अपने द्वारा किए गए छल के कारण पश्चाताप में थे। जिसके कारण उन्होंने अपने एक स्वरूप को पत्थर का कर दिया। उसके बाद विष्णु ने कहा कि उनकी पूजा तुलसी दल के बिना अधूरी मानी जाएगी। वृंदा का मान रखते हुए सभी देवों ने उनका विवाह पत्थर स्वरूप विष्णु से करवा दिया। इसलिए तुलसी और शालीग्राम का विवाह किया जाता है।

भगवान शिव के विग्रह के रूप में शिवलिंग की पूजा होती है, उसी तरह भगवान विष्णु के विग्रह के रूप में शालिग्राम की पूजा की जाती है। नेपाल के गण्डकी नदी के तल में पाया जाने वाला गोल काले रंग के पत्‍थर को शालिग्राम कहते हैं। शालिग्राम में एक छिद्र होता है और उस पर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं।

इस दिन से शुरू हो जाते हैं मांगलिक कार्य

मान्यता है कि आषाढ़ मास की एकादशी को श्रीहरि विश्राम के लिए चार महीनों तक श्रीरसागर में चले गए थे। इन चार महीनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं। वहीं, देवउठनी एकादशी के दिन से घरों में मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। भगवान के जगने से सृष्टि में तमाम सकारात्मक शक्तियों का संचार होने लगता है। इस दिन भगवान के जगने का उत्सव देवतागण भी व्रत पूजन द्वारा मनाते हैं।

ये कार्य देंगे शुभफल

एकादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि कामों के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग करें। जल में लाल फूल और चावल भी डाल लेना चाहिए। इस दौरान सूर्य मंत्र - ऊँ सूर्याय नम:। ऊँ भास्कराय नम: - का जाप करना चाहिए।

भगवान विष्णु के साथ ही लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा में सामान्य पूजन सामग्री के अतिरिक्त दक्षिणावर्ती शंख, कमल गट्टे, गोमती चक्र, पीली कौड़ी भी रखना चाहिए। सुबह स्नान के बाद तुलसी को जल चढ़ाएं। देवोत्‍थान पर सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं और ओढ़नी यानी चुनरी अर्पित करें। सुहाग का सामान भी तुलसी को चढ़ाएं। अगले दिन यानी 26 नवंबर को ये चीजें किसी गरीब सुहागिन को दान करें।

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ध्यान रखें कभी भी सूर्यास्त के बाद तुलसी के पत्ते ना तोड़ें। अमावस्या, चतुर्दशी तिथि पर भी तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए। रविवार, शुक्रवार और सप्तमी तिथि पर भी तुलसी के पत्ते तोड़ना शास्त्रों के अनुसार वर्जित है। अकारण तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए। अगर वर्जित किए गए दिनों में तुलसी के पत्तों का काम हो तो तुलसी के झड़े हुए पत्तों का उपयोग करना चाहिए। वर्जित की गई तिथियों से एक दिन पहले तुलसी के पत्ते तोड़कर रख सकते हैं। पूजा में चढ़े हुए तुलसी के पत्ते धोकर फिर से पूजा में उपयोग किए जा सकते हैं।

कैसे करें व्रत - पूजन

देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं प्रातःकाल में स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौक बनाएं। भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करें। फिर दिन की धूप में विष्णु के चरणों को ढंक दें। देवउठनी एकादशी को रात्रि के समय सुभाषित स्त्रोत पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का श्रवण और भजन आदि का गायन करें। घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़े और वीणा बजाएं। इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं :

‘उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।

त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌।

उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।

गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः।

शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।‘

इसके बाद विधिवत पूजा करें। भगवान का मन्दिर अथवा सिंहासन को विभिन्न प्रकार के लता पत्र, फल, पुष्प और वंदनबार आदि से सजाएं।

आंगन में देवोत्थान का चित्र बनाएं, तत्पश्चात फल, पकवान, सिंघाड़े, गन्ने आदि चढ़ाकर डलिया से ढंक दें तथा दीपक जलाएं। विष्णु पूजा या पंचदेव पूजा विधान अथवा रामार्चनचन्द्रिका आदि के अनुसार श्रद्धापूर्वक पूजन तथा दीपक, कपूर आदि से आरती करें।

इस मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करें : यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन।

तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥‘

इस मंत्र से प्रार्थना करें :

‘इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।

त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थ शेषशायिना।

इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।

न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन।‘

साथ ही प्रह्लाद, नारद, पाराशर, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीष,शुक, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत, पंचामृत व प्रसाद वितरित करें। तत्पश्चात एक रथ में भगवान को विराजमान कर स्वयं उसे खींचें तथा नगर, ग्राम या गलियों में भ्रमण कराएं।

शास्त्रानुसार जिस समय वामन भगवान तीन पद भूमि लेकर विदा हुए थे, उस समय दैत्यराज बलि ने वामनजी को रथ में विराजमान कर स्वयं उसे चलाया था। ऐसा करने से भगवान विष्णु योग निद्रा को त्याग कर सभी प्रकार की क्रिया करने में प्रवृत्त हो जाते हैं।

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ख़ास है ये दिन

- एकादशी के व्रत से अशुभ संस्कार नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन निर्जल या केवल जलीय पदार्थों पर उपवास रखना चाहिए। यदि उपवास नहीं रख रहे हैं तो इस दिन चावल, प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा, बासी भोजन आदि बिलकुल न खाएं।

- इस दिन शालीग्राम के साथ तुलसी का आध्यात्मिक विवाह देव उठनी एकादशी को होता है। इस दिन तुलसी की पूजा का महत्व है। तुलसी दल अकाल मृत्यु से बचाता है। शालीग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है।

- इस दिन भगवान विष्णु या अपने इष्ट-देव की उपासना करना चाहिए। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करने से लाभ मिलता है।

- कुंडली में चंद्रमा के कमजोर होने की स्थिति में जल और फल खाकर या निर्जल एकादशी का उपवास जरूर रखना चाहिए। व्यक्ति यदि सभी एकदशियों में उपवास रखता है तो उसका चंद्र सही होकर मानसिक स्थिति भी सुधर जाती है।

- देवउठनी एकादशी की पौराणिक कथा का श्रावण या वाचन करना चाहिए। कथा सुनने या कहने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

- देवोत्थान एकादशी का व्रत करने से हजार अश्वमेघ एवं सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है।

- पितृदोष से पीड़ित लोगों को इस दिन विधिवत व्रत करना चाहिए। पितरों के लिए यह उपवास करने से अधिक लाभ मिलता है जिससे उनके पितृ नरक के दुखों से छुटकारा पा सकते हैं।

- देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने से भाग्य जाग्रत होता है।

- कहा जाता है कि जो व्यक्ति एकादशी करता रहता है वह जीवन में कभी भी संकटों से नहीं घिरता और उनके जीवन में धन और समृद्धि बनी रहती है।

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सहालग की शुभ तिथियाँ

25 नवंबर को तुलसी पूजा पर तुलसी और सालिग्राम का विवाह कराने के बाद शुभ संस्कारों की शुरुआत होगी। 25, 27 और 30 नवंबर और दिसंबर में चार मुहूर्त विवाह के लिए श्रेष्ठ हैं। यदि इन सात मुहूर्त में विवाह नहीं किया तो फिर अगले साल 2021 के अप्रैल माह तक इंतजार करना पड़ेगा। अगले साल 2021 में जनवरी से लेकर मार्च तक विवाह के मुहूर्त नहीं हैं। अप्रैल, मई, जून और जुलाई में कुल 38 मुहूर्त हैं। इसके बाद चातुर्मास शुरू हो जाएगा और फिर चार माह तक विवाह नहीं किया जा सकेगा।

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