सावित्रीबाई फुले: देश की पहली महिला शिक्षक, जानें उनके जीवन से जुड़ी बातें
सावित्रीबाई ने विधवा की शादी, छुआछूत को मिटाना, महिला को समाज में सही स्थान दिलवाना और दलित महिलाओं की शिक्षा जैसे कई कार्य किये। इतना ही नहीं उन्होंने बच्चों के लिए स्कूल खोलना शुरू किया। पुणे से स्कूल खोलने की शुरुआत हुई और करीब 18 स्कूल खोले गए।
लखनऊ: 3 जनवरी को देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की जयंती है। सावित्रीबाई फुले ने अपना जीवन लड़कियों को पढ़ाने और समाज को ऊपर उठाने में लगा दिया। उन्नीसवीं सदी के दौर में जब भारतीय महिलाओं की स्थिति बड़ी ही दयनीय थीं। उस दौरान शिक्षा, महिला सशक्तिकरण के लिए उन्होंने जो किया उसके लिए आज भी पूरा देश उन्हें नमन करता है। बता दें, सावित्रीबाई फुले एक दलित परिवार में पैदा हुई थीं, लेकिन तब भी उनका लक्ष्य यही रहता था कि किसी के साथ भेदभाव ना हो और हर किसी को पढ़ने का अवसर मिले। चलिए जानते हैं सावित्री बाई से जुड़ी कुछ बातें...
कौन थीं सावित्रीबाई फुले?
सावित्रीबाई फुले एक समाजसेविका थीं, जिनका लक्ष्य लड़कियों को शिक्षित करना था। इसके अलावा वो भारत की पहली महिला शिक्षक, कवियत्री भी थी। सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के एक दलित परिवार में हुआ था। मात्र नौ साल की उम्र में उनकी शादी क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले से हो गई, उस समय ज्योतिबा फुले की उम्र महज 13 साल थी।
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सावित्रीबाई ने विधवा की शादी, छुआछूत को मिटाना, महिला को समाज में सही स्थान दिलवाना और दलित महिलाओं की शिक्षा जैसे कई कार्य किये। इतना ही नहीं उन्होंने बच्चों के लिए स्कूल खोलना शुरू किया। पुणे से स्कूल खोलने की शुरुआत हुई और करीब 18 स्कूल खोले गए।
लड़कियों के लिए खोला देश का पहला स्कूल
ज्योतिबा फुले ने स्त्रियों की दशा सुधारने और समाज में उन्हें पहचान दिलाने के लिए उन्होंने 1854 में एक स्कूल खोला। यह देश का पहला ऐसा स्कूल था जिसे सिर्फ लड़कियों के लिए खोला गया था। उस दौरान लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया।
एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं सावित्रीबाई
उस दौरान जब सावित्रीबाई लड़कियों को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फेंका करते थे। इस वजह से सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं।
लोगों की सेवा करते हुए दुनिया को कहा अलविदा
सावित्रीबाई के पति क्रांतिकारी और समाजसेवी थे। फुले दंपति ने एक अस्पताल भी खोला था। इसी अस्पताल में प्लेग महामारी के दौरान सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक प्लेग से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण उनको भी यह बीमारी हो गई और 10 मार्च 1897 को प्लेग द्वारा ग्रसित मरीज़ों की सेवा करते वक्त सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया।
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