किसानों के गुस्से से भाजपा को सियासी नुकसान, पश्चिमी यूपी में लग सकता है झटका

BJP को आने वाले दिनों में यूपी में पंचायत चुनाव लड़ना है और उसके बाद अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि राकेश टिकैत के आंसुओं के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय में गुस्सा है और यह आने वाले चुनावों में भाजपा के लिए महंगा पड़ सकता है।

Update: 2021-01-30 04:39 GMT
किसानों के गुस्से से भाजपा को सियासी नुकसान, पश्चिमी यूपी में लग सकता है झटका

नई दिल्ली: नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के सीमाओं पर चल रहा किसान आंदोलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए भारी साबित हो सकता है। गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली की सड़कों पर उपद्रव और लालकिले पर धार्मिक झंडा फहराए जाने के बाद दम तोड़ रहा किसान आंदोलन भाकियू नेता राकेश टिकैत के आंसुओं से फिर भड़क उठा है। इसके बाद मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा और आंदोलन को और तेज करने का फैसला किया गया।

भारतीय जनता पार्टी को आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव लड़ना है और उसके बाद अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि राकेश टिकैत के आंसुओं के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय में गुस्सा है और यह आने वाले चुनावों में भाजपा के लिए महंगा पड़ सकता है।

इन सीटों पर जाट मतदाता निर्णायक

उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय की आबादी करीब 4 फ़ीसदी है मगर यदि पश्चिमी उत्तर प्रदेश को देखा जाए तो यहां पर रहने वाले लोगों में 17 फ़ीसदी जाट हैं। सहारनपुर, मेरठ और अलीगढ़ मंडल में शामिल जिलों की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटों पर जाट मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करते रहे हैं। इन सीटों के अलावा लगभग दो दर्जन सीटें ऐसी हैं जिन पर जाट मतदाता किसी प्रत्याशी को जिताने की ताकत रखते हैं। इस समीकरण के लिहाज से समझा जा सकता है कि जाटों की नाराजगी भाजपा के लिए कितनी महंगी पड़ सकती है।

 

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तब मिला था जाट बिरादरी का समर्थन

2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी अच्छा प्रदर्शन किया था। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी विजय के पीछे जाट बिरादरी का समर्थन भी बड़ा कारण रहा है मगर अगर आने वाले पंचायत और विधानसभा चुनाव में जाट बिरादरी भाजपा से बिदकी तो पार्टी को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

फिर जिंदा हो गया किसान आंदोलन

गुरुवार की शाम तक दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन दम तोड़ता नजर आ रहा था और दो किसान यूनियनों ने आंदोलन से अलग हो जाने का एलान कर दिया था। योगी सरकार ने भी आंदोलन को खत्म कराने के लिए कमर कस ली थी। दिल्ली-उत्तर प्रदेश के गाजीपुर बॉर्डर पर यूपी प्रशासन ने आंदोलनरत किसानों को बोरिया बिस्तर समेटने की चेतावनी भी दे दी थी। आंदोलन स्थल पर पुलिस व फोर्स की भारी संख्या में मौजूदगी और योगी सरकार के कड़ा रुख अपनाते ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश सियासी गर्मी बढ़ गई। इसी बीच गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे राकेश टिकैत ने साफ तौर पर घोषणा कर दी कि जान दे देंगे मगर किसी कीमत पर

आंदोलन खत्म नहीं करेंगे।

राकेश टिकैत ने बोला भाजपा पर हमला

उन्होंने दिल्ली और यूपी की पुलिस को साफ तौर पर चुनौती दे दी कि अगर हिम्मत हो तो उन्हें गिरफ्तार करके दिखाए मगर आंदोलन नहीं खत्म होगा। उन्होंने कहा कि हम कृषि बिलों की वापसी की मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं और मांग पूरी होने तक हमारा धरना जारी रहेगा।

गाजीपुर बॉर्डर को यूपी पुलिस और फोर्स की ओर से चारों ओर से घेर लिए जाने के बाद राकेश टिकैत ने यहां तक कह डाला कि वे आत्महत्या कर लेंगे मगर आंदोलन खत्म नहीं करेंगे। अपने समर्थकों के बीच सरकार को कोसते हुए उन्होंने भाजपा पर भी सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि बीजेपी के समर्थक हमारे बुजुर्गों पर लाठियां चला रहे हैं मगर हम दिल्ली से बिना इंसाफ लिए वापस नहीं लौटने वाले।

टिकैत के एलान पर तीखी प्रतिक्रिया

राकेश टिकैत का यह एलान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी असरकारक साबित हुआ। राकेश टिकैत के कड़ा रुख अपनाने की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तीखी प्रतिक्रिया हुई और मुजफ्फरनगर के सिसौली में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। किसान आंदोलन के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए हर घर से लोग महापंचायत में पहुंचे। इसके साथ ही सियासी दलों ने भी आंदोलन को समर्थन देकर किसानों की मांगों के प्रति एकजुटता दिखाई।

लोगों का मूड भांपकर नरेश टिकैत की पलटी

भाकियू नेता के बयान का इतना जबर्दस्त असर हुआ कि गुरुवार की दोपहर में आंदोलन खत्म करने का एलान करने वाले नरेश टिकैत ने भी पलटी मार ली। राकेश टिकैत के बड़े भाई और भाकियू के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने गुरुवार की दोपहर आंदोलन खत्म करने की बात कही थी मगर लोगों का मूड मिजाज भांपते हुए उन्होंने भी आंदोलन जारी रखने का एलान कर दिया। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर राकेश टिकैत को गिरफ्तार किया गया तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक लाख किसान अपनी गिरफ्तारी देने के लिए तैयार हैं।

सियासी दल भी खुलकर समर्थन में उतरे

किसान आंदोलन के समर्थन में अब सियासी दल भी खुलकर सामने आ गए हैं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राकेश टिकट से फोन पर बातचीत की और किसान आंदोलन को पूरा समर्थन देने का वादा दोहराया। राष्ट्रीय लोकदल के नेता चौधरी अजीत सिंह ने भी राकेश टिकट से बातचीत की और उन्हें आंदोलन के लिए डटे रहने को कहा। मुजफ्फरनगर की पंचायत में किसानों को समर्थन देने के लिए चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी और आप सांसद संजय सिंह भी पहुंचे और कहा कि यह आंदोलन किसानों के जीवन मरण की लड़ाई है। कांग्रेस के पूर्व सांसद और जाट नेता हरेंद्र मलिक और पूर्व विधायक पंकज मलिक भी किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन करने के लिए अखाड़े में कूद पड़े हैं।

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भाजपा को भारी पड़ सकती है नाराजगी

सियासी जानकारों का कहना है कि किसानों में जाट के अलावा अन्य जातियां भी शामिल है और पंचायत में हिस्सेदारी करने वालों में अन्य जातियों के लोग भी शामिल थे। किसानों के मुद्दे पर गांव से जुड़े इन लोगों की नाराजगी भाजपा के लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि सियासी नुकसान की आशंका से ही योगी सरकार की पुलिस ने पैर वापस खींच लिए और गुरुवार की रात किसान आंदोलन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लग सकता है झटका

जानकारों के मुताबिक अगर जल्द ही किसानों से जुड़ा यह महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं सुलझा तो भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ा सियासी नुकसान उठाना पड़ सकता है। आने वाले दिनों में प्रदेश में पंचायत चुनाव होने हैं। पंचायत चुनावों में ग्रामीण मतदाताओं की बड़ी भूमिका होगी। इन मतदाताओं की नाराजगी भाजपा के लिए भारी साबित पड़ सकती है। इसके साथ ही भाजपा को सियासी नजरिए से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव लड़ना है। अगर जाट व अन्य जातियों की नाराजगी यूं ही बरकरार रही तो चुनावों में भाजपा को झटका लगना तय माना जा रहा है।

अंशुमान तिवारी

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