HC ने कहा- महिलाओं को है अबॉर्शन कराने का हक, चाहे कारण कोई भी हो

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को महिलाओं का अपनी पसंद से जीवन जीने के अधिकार का समर्थन करते हुए कहा कि चाहे कोई भी कारण हो, उनके पास अनचाहा गर्भ गिराने का विकल्प होना चाहिए। गर्भवती महिला कैदियों पर एक खबर का स्वतः संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर महिला अबॉर्शन करना चाहे तो उसे हॉस्पिटल ले जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट-1971 के दायरे को महिला के मानसिक स्वास्थ्य तक बढ़ाया जाना चाहिए।

Update: 2016-09-21 09:18 GMT

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को महिलाओं का अपनी पसंद से जीवन जीने के अधिकार का समर्थन करते हुए कहा कि चाहे कोई भी कारण हो, उनके पास अनचाहा गर्भ गिराने का विकल्प होना चाहिए। गर्भवती महिला कैदियों पर एक खबर का स्वतः संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर महिला अबॉर्शन करना चाहे तो उसे हॉस्पिटल ले जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट-1971 के दायरे को महिला के मानसिक स्वास्थ्य तक बढ़ाया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति वी के टाहिलरमानी और न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर की पीठ ने कहा कि अधिनियम का लाभ सिर्फ शादीशुदा महिलाओं को ही नहीं, बल्कि उन महिलाओं को भी मिलना चाहिए जो सहजीवन में विवाहित दंपति के रूप में अपने पार्टनर के साथ रहती हैं।

कोर्ट ने कहा कि अधिनियम में प्रावधान है कि कोई महिला 12 सप्ताह से कम की प्रेग्नेंट है तो वह अबॉर्शन करा सकती है और 12 से 20 सप्ताह के बीच महिला या भ्रूण के स्वास्थ्य को खतरा होने की स्थिति में दो डॉक्टर्स की सहमति से अबॉर्शन करा सकती है। कोर्ट ने कहा कि उस अवधि में उसे अबॉर्शन कराने की अनुमति दी जानी चाहिए भले ही उसके शारीरिक स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं हो।

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