अनुज हनुमत
चित्रकूट। सरकारी दावे या आंकड़े कुछ भी कहें, लेकिन एक बात आज भी सच है कि बुन्देलखंड से पलायन अभी भी जारी है। रोजगार न होने की वजह से यहां के सैकड़ों परिवार रोजाना पलायन करने पर मजबूर हैं। आप रेलवे स्टेशनों और बस स्टेशनों पर देख सकते हैं कि कैसे काम की तलाश में अभी भी लोगों को बाहरी स्थानों पर जाना पड़ता है। मोदी सरकार का एक कार्यकाल पूरा हो चुका है और दूसरा कार्यकाल चल रहा है, लेकिन अभी भी किसी के पास बुन्देलखंड के पलायन को रोकने का एक्शन प्लान नहीं है।
ताजा तस्वीरें चित्रकूट जिले के मानिकपुर विकासखंड अंतर्गत आने वाले टिकरिया, जमुनिहाई,मंनगवा और मारकुंडी गांवों की हैं जहां से परिवारों का पलायन हो रहा है। सभी काम की तलाश में आसपास के जिलों में जा रहे हैं। मानिकपुर जंक्शन पर 35 वर्ष के दुर्गा प्रसाद का ऐसा ही परिवार मिला। दुर्गा प्रसाद टिकरिया गांव के निवासी हैं। इनका पूरा परिवार बच्चों सहित पलायन को मजबूर है क्योंकि इनके पास कोई काम नहीं है।
पेट कराता है सबकुछ
दुर्गा प्रसाद कहते हैं कि जब कौनो काम नहीं आए तो घर का पेट चलावे खातिर काम तो करेंन का पड़ी,चाहे वहिके खातिर बाहर जाए का पड़े। दुर्गा प्रसाद ये बात बताते-बताते थोड़ा भावुक भी हो गए। उनका कहना था कि कौन अपनी जमीन, समाज, अपनों और घर को छोडऩा चाहता है, लेकिन कमबख्त ये पेट सबकुछ कराता है।
इस दौरान एक दृश्य और भयावह था और वह था छोटे छोटे बच्चों की पढ़ाई का नुकसान। अधिकांश बच्चे स्कूल जाने वाले थे और बाकी का एडमिशन होना था। लेकिन रोजगार की चाहत में पलायन करने को मजबूर इस परिवार के पास घर छोडऩा ही आखिरी विकल्प था। फिलहाल यहां से बाहर काम पर जाने वाले परिवारों के बच्चों का भविष्य भी संकट में है क्योंकि बाहर ये बच्चे भी काम ही करते हैं।
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काम की तलाश में बाहर जाने को मजबूर
ऐसे ही कई लोग स्टेशन पर अपने परिवार के साथ ट्रेन का इंतजार कर रहे थे जिन्हें रोजगार की तलाश में बाहर जाना था। इन सभी का यही कहना था कि काम के लिए बाहर जाना पड़ेगा। चाहे बच्चों के भविष्य का नुकसान ही क्यों न हो। जिंदगी तो बचेगी। फिलहाल इस मुद्दे पर जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं। जब इस संबंध में जनप्रतिनिधियों से बात की गई तो उनका कहना था कि सरकार बुन्देलखंड में रोजगार के लिए बड़े एक्शन प्लान में काम कर रही है। जल्द ही हर हाथ में रोजगार होगा।
खनिज सम्पदा की भारी लूट
आंकड़ों की मानें तो बुन्देलखंड का क्षेत्र बहुत गरीब एवं पिछड़ा है, लेकिन ये आधा सच है। वाकई यहां के अधिकांश लोग गरीबी और पिछड़ापन के शिकार हैं, लेकिन उसका कारण यहां के वो मुट्ठी भर लोग हैं जिन्होंने यहां की खनिज सम्पदा को जमकर बारी-बारी से लूटा। सिर्फ खुद ही नहीं लूटा बल्कि बाहर के लोगों से भी लुटवाया। बड़ी-बड़ी गाडिय़ां, कई मंजिला बड़े-बड़े बंगले, खूब सारा रुपया ये सब यहां की बदहाली पर करारा तमाचा है। जब इतनी ही गरीबी और पिछड़ापन है तो फिर ये ऐशोआराम कहां से आता है। शायद इसका उत्तर है यहां हो रहा अवैध खनन।
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हर गांव में दुख भरी कहानियां
देश का यह वह हिस्सा है जहां का प्रत्येक गांव भूख और आत्महत्याओं की दु:ख भरी कहानियों से भरा पड़ा है। बुन्देलखंड के विकास पर पानी की कमी, अनुपजाऊ भूमि और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी तीनों एक साथ प्रहार करते आए हैं। बुन्देलखंड दशकों से सूखे की मर झेल रहा है और अगर हम वर्ष 2000 के बाद से अब तक का समय देखें तो यहां के लोगों ने लगभग 8 बार सूखे का दौर देखा है।
रिपोर्टों के अनुसार पिछले 15 साल में लगभग 62 लाख लोग यहां से पलायन कर चुके हैं। यानी कि बुन्देलखंड की धरती से हर रोज लगभग 6000 लोग पलायन करते हैं। यहां की सबसे बड़ी समस्या रोजगार का न होना है जो जनप्रतिनिधियों की विचार शून्यता का परिणाम है। लगातार सूखा पडऩे के कारण खेती में कुछ खास नही है और फिर बैंकों का कर्ज किसानों-मजदूरों को यहां से पलायन करने पर मजबूर कर देता है।
मौजूदा समय में बुन्देलखंड की हालत यह है कि अधिकांश गांवों में आपको बुजुर्ग व्यक्ति ही दिखेंगे क्योंकि नौजवान रोजगार की तलाश में यहां से पलायन कर चुके हैं। स्वराज्य अभियान के 2015 के सर्वे के अनुसार सूखे की मार झेल रहे इस क्षेत्र का हर छठा घर घास की रोटी खाने के लिए अभिशप्त है।
पिछले सूखे में यहां के हर पांचवा घर भूखा सोया और 60 फीसदी घरों को दूध, 53 फीसदी घरों को दाल मयस्सर नहीं हुई और मजबूरी में 40 फीसदी परिवारों को अपना पशुधन बेचना पड़ा। बुन्देलखंड में नौकरी आज भी एक सपना है क्योंकि रोजगार का कोई बड़ा माध्यम नहीं है। उद्योग विकसित हुए और सिमट गए, कताई मिलें भी बड़ी तेजी से बंद हो रही हैं। यहां मूलभूत सुविधाओं का आज भी अभाव है ।
उद्योग धंधों का बंद होना सबसे बड़ा कारण
बुन्देलखंड के पिछड़ेपन के लिए यहां के बंद हो गए उद्योग धंधों को सबसे बड़ा कारण माना जाता है। बुन्देलखंड में रोजगार का कोई बड़ा साधन न होने के कारण बेरोजगारी इस कदर बढ़ी कि लाखों लोगों को पलायन करना पड़ा। बुन्देलखंड की चर्चा के दौरान जब हमने चित्रकूट धाम मंडल का दौरा किया तो सारी हकीकत से सामना हुआ। एशिया की एकमात्र बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री जिसका शिलान्यास अस्सी के दशक में हो गया था, लेकिन कुछ काम होने के बाद इस फैक्ट्री को बंद कर दिया गया।
बुन्देलखंड के हजारों किसानों-मजदूरों को मिलने वाला रोजगार का ये बड़ा केंद्र शुरू होने से पहले ही बंद हो गया। करोड़ों-अरबों की मशीनें नीलाम कर दी गईं। आज भी बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री की दीवारें चीख-चीखकर अपनी बदहाली पर रो रही हैं। इसी प्रकार मानिकपुर की बॉक्साइट फैक्ट्री दशकों पहले बंद हो गई थी। इस फैक्ट्री में हजारों मजदूर काम करते थे, लेकिन फैक्ट्री बन्द होते ही सब बेरोजगार हो गए। वैसे तो पूरे चित्रकूटधाम मंडल में छोटे-छोटे उद्योग बड़ी संख्या में थे, लेकिन आज सब बन्द हैं।
अन्य इलाकों की फैक्ट्रियां भी बंद
भरुआ सुमेरपुर में मौजूदा समय में लगभग सभी फैक्ट्रियां बन्द हो चुकी हैं। एकाध फैक्ट्रियां चालू हैं, लेकिन ये नाकाफी हैं। फैक्ट्रियां बंद होने के कारण बड़ी संख्या में आसपास के लोग बेरोजगार हो गए। बुन्देलखंड की चर्चा करने पर स्थानीय लोगों ने बताया कि भरुआ सुमेरपुर की पहचान इन्ही फैक्ट्रियों से होती थी, लेकिन आज इनके बंद होने के कारण सबकुछ बदल गया है। यही हालत हमीरपुर और महोबा की भी है। कुल मिलाकर अगर हम सपनों के बुन्देलखंड की बात करें तो सबसे पहले सरकार को यहां उद्योग-धंधों को चालू करना होगा। तभी यहां का विकास हो सकता है और पलायन रुक सकता है।
अब मोदी व योगी से आस
फिलहाल बुन्देलखंड के लोगों को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से काफी आशाएं हैं। कुछ समय पूर्व बुदेलखंड के दौरे पर आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि बुंदेलखंड के भाग्य का उदय होगा। उन्होंने कहा था कि सरकार बिना भेदभाव सबको सुरक्षा देगी और किसी को अराजकता फैलाने नहीं देगी। पीएम नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि केंद्र सरकार बुन्देलखंड के विकास के लिए चिंतित है। अब देखना होगा कि इन दावों और घोषणाओं का क्या भविष्य होगा।