Chhath pooja: द्रौपदी ने इस गांव में दिया सूर्य को अर्घ्य, भीम से है ये संबंध

हर सार कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ का महापर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। बिहार- झारखंड का ये पर्व अब देश के अलग-अलग हिस्सों में मनाया जाने लगा है। इस साल छठ पूजा 18 नवंबर से 21 नवंबर तक मनाया जाएगा।

Update:2020-11-18 11:34 IST
द्रौपदी ने सूर्य को दिया था अर्घ्य, भीम का भी था इस गांव में ससुराल

हर सार कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ का महापर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। बिहार- झारखंड का ये पर्व अब देश के अलग-अलग हिस्सों में मनाया जाने लगा है। इस साल छठ पूजा 18 नवंबर से 21 नवंबर तक मनाया जाएगा। जो आज से नहाए-खाए से शुरू हो गई है।

छठ पूजा का खास महत्व

रांची में छठ पूजा का खास महत्व है। यहां के नगड़ी गांव में छठ का व्रत रखने वाली महिलाएं नदी या तालाब की बजाय एक कुएं में छठ की पूजा करती हैं। आइए आपको इसके पीछे की मान्यता बताते हैं। बताया जाता है कि इस कुंए के पास द्रौपदी सूर्योपासना करने के साथ सूर्य को अर्घ्य भी दिया करती थी। कहा जाता है कि वनवास के दौरान पांडव झारखंड के इस इलाके में काफी दिनों तक ठहरे थे। एक बार पांडवों को प्यास लगी लेकिन कही पानी नहीं मिला तब द्रौपदी के कहने पर अर्जुन ने जमीन में तीर मारकर पानी निकाला था।

द्रौपदी ने सूर्य को दिया अर्घ्य

इसी जल के पास से द्रौपदी सूर्य को अर्घ्य दिया करती थी। सूर्य की उपासना करने से पांडवों पर सूर्य का आशीर्वाद बना रहा। यही कारण है कि यहा आज भी छठ का महापर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।

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भीम से भी है संबंध

इसके अलावा ऐसी भी मान्यताएं है कि यहां भीम का ससुराल हुआ करता था। भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच का जन्म यहीं हुआ था। इस गांव की एक और मान्यता है कि महाभारत में वर्णित एकचक्रा नगरी नाम ही अपभ्रंश होकर अब नगड़ी हो गया है। इसी गांव के एक छोर से दक्षिणी कोयल तो दूसरे छोर से स्वर्ण रेखा नदी का उदगम होता है। जो झारखंड के इस छोटे से गांव से निकल कर ओडिशा और पश्चिम बंगाल होती हुई सीधी समुद्र में जाकर मिल जाती है। सोने से संबंध होने के कारण इसका नाम स्वर्ण रेखा पड़ा है।

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चार दिन का छठ का पर्व

बता दें, की छठ का ये पर्व चार दिनों तक चलता है। पहले दिन नहाए-खाए के साथ इस व्रत की शुरुआत होती है। इस दिन साफ़ सफाई पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। वही दूसरे दिन को लोहंडा-खरना कहा जाता है। पूरे दिन उपवास रखकर शाम को गन्ने के रस की बनी खीर का सेवन किया जाता है । तीसरे दिन, दिन भर उपवास रखकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य दूध और जल से दिया जाता है। चौथे दिन महिलाए बिल्कुल उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य देती है। इसके बाद कच्चे दूध और प्रसाद को खाकर महिलाए व्रत का समापन करती है।

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