यूपी और बिहार में धूमधाम से मनाते हैं सुर्यषष्ठी का व्रत

सूर्य षष्ठी का त्यौहार जो आम भाषा में छठः कहा जाता है। सबसे पहले बिहार राज्य में शुरू हुआ था वहां की महिलाएं सूर्यषष्ठी का व्रत रखना शुरू किया जो धीरे-धीरे पूर्वांचल के एकाद जिलों में बढ़ने लगा।

Update:2023-09-06 22:00 IST
यूपी और बिहार में धूमधाम से मनाते हैं सुर्यषष्ठी का व्रत

रजनीश कुमार मिश्र,

 

गाजीपुर: हिंदू धर्म में कई छोटे-बड़े त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। जो वर्षों से चला आ रहा है जैसे होली, रक्षाबंधन, विजयदशमी, दीपावली आदि इसमें एक त्यौहार और भी है सूर्यषष्ठी का त्योहार। जो आम भाषा में छठः का त्यौहार भी कहा जाता है। बिहार और यूपी के पूर्वांचल की महिलाएं सूर्यषष्ठी त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से मनाती हैं।

बिहार से शुरू हुआ छठ

बुजुर्ग बताते हैं कि सूर्य षष्ठी का त्यौहार जो आम भाषा में छठः कहा जाता है। सबसे पहले बिहार राज्य में शुरू हुआ था वहां की महिलाएं सूर्यषष्ठी का व्रत रखना शुरू किया जो धीरे-धीरे पूर्वांचल के एकाद जिलों में बढ़ने लगा। जिसमें गाजीपुर और बलिया की महिलाएं भी छठः का व्रत रखना प्रारंभ कर दिया।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में पड़ता है सूर्य षष्ठी का व्रत

अश्विन मास में पढ़ने वाले दीपावली के छः दिन बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में सूर्य षष्ठी का व्रत का त्यौहार पड़ता है। जो दीपावली के बाद महिलाओं के साथ पुरुष भी सूर्य षष्ठी की तैयारियां शुरू कर देते हैं।

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सूर्यास्त से शुरू और सूर्योदय के बाद समाप्त होता है सूर्य षष्ठी का त्योहार

जो महिलाएं सूर्य षष्ठी का व्रत रखती है वे लोग गंगा घाट या तालाब पर पहुंचकर पूजा पाठ करने के बाद जब सूर्यास्त होने लगता है। तब सूर्य देवता को अर्घ देने का समय आता है, जहां महिलाएं पीतल से बना या बांस के पट्टे बना सुपो में फल रख कर तलाब के पानी में उतरती हैं और अपने पति या पुत्र से अर्घ लेने के बाद गीत गाते हुए वापस अपने घर चली जाती हैं।

घर पर रात भर जगने के उपरांत सुबह चार बजे वापस क्षेत्र व गांव की महिलाओं के साथ घाटो पर पहुंच कर पूजा प्रारम्भ कर देती हैं। जैसे ही सूर्य उदय होता है तो तलाबों में स्नान करने के उपरांत सुर्य देवता को अर्घ देने के बाद सूर्य षष्ठी का व्रत का समापन हो जाता है।

बिहार के साथ-साथ इन जिलों में भी मनाया जाता है सुर्य षष्ठी का व्रत

देश के कुछ राज्यो में जहां यूपी व बिहार के लोग रहते हैं। वहां पर छठः त्योहार को मनाया जाता है लेकिन बिहार के साथ साथ पूर्वान्चल के जिले बलिया, गाजीपुर, देवरिया जो जिले बिहार राज्य से सटे हुए हैं। वहां पर सुर्यषष्ठी का व्रत बड़े ही धुमधाम से मनाया जाता है।

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शुभ कार्य होने पर भरीं जाती है कोसी

जिस घर मे छठः का त्योहार मनाया जाता है। उस घर मे कोइ शुभ कार्य होने पर उस घर कि औरतें परम्पराओं के अनुसार अपने यहां कोसी भरने का कार्यक्रम करती है। जिसमें कुम्हार के लाये मिट्टी से बने बर्तन में फल रख कर और गन्नै को खड़ा कर उस घर कि औरतें पुजा पाठ करती है। जिसमे गांव कि अन्य महिलाएं शामिल होती हैं।

तलाबो व गंगा घाटों पर किया जाता है सुर्यषष्ठी का व्रत

सुर्यषष्ठी के दिन गंगा व तलाब के घाटों को अच्छी तरह से सजाया जाता है। जहां गांव व क्षेत्र कि महिलाएं पहुंच कर सुर्यषष्ठी का

पूजा करती हैं। उस दिन क्षेत्र के तलाबों पर काफी चहल पहल रहता है, तालाबों पर चारों तरफ से घाटों को सजाया जाता है। उस दिन घाटों के चारो तरफ लाईट से उजाला किया जाता है।

ट्रेनो व बसों मे रहती है काफी भीड़

जैसे ही विजयदशमी का समाप्त होता है। वैसे ही दूर दराज से आने वाले लोगों से ट्रेनें व बसों में काफी भीड़ होने लगती है। छठः के त्योहार पर आने के लिए टिकट कराना शुरू कर देते हैं। छठः के त्योहार पर आने के लिए लोगों के वजह से बिहार व यूपी में आने वाली गाडियां भरी रहती हैं।

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तीन दिन पहले सजते है बजार

सुर्यषष्ठी के त्योहार से तीन दिन पहले बजार सज जाते हैं। इस दिन का दुकानदारों को काफी दिनों से इंतजार रहता है। फलों के दुकानो के साथ साथ कपड़ो व जनरल दुकानों पर भी काफी भीड़ रहती है। इस त्योहार में कपड़ों के साथ पूजा पाठ व सिंगार की दुकानों पर भी काफी भीड़ रहती है। फल के व्यापारी लक्ष्मण व जान मुहम्मद का कहना है कि इस दिन का हम लोगों को बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है।

इस दिन गन्नै कि रहती है काफी मांग

सुर्यषष्ठी के दिन गन्नै कि काफी मांग रहती है जिसके वजह से गन्नै के व्यापारी गन्नों को अधिक मूल्यों पर बेचते हैं। लेकिन फिर भी व्रत करने वाले लोग गन्नों को खरीदते हैं। परम्परा के अनुसार उस दिन गन्नै को पानी में खड़ा कर महिलाएं पुजा करती हैं।

सुर्यषष्ठी का महत्व

छठः का व्रत रखने वाली महिलाएं बताती है की अपने पति और पुत्र के लिए ये व्रत रखा जातां है। जो महिलाएं ये व्रत नहीं करती हैं वो दूसरों के व्रत मे शामिल होतीं है और मन्नतें मागती हैं। मन्नत पूरी होने पर अगले साल परम्परा के अनुसार अपने मायके से व्रत शुरू करती हैं।

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