रामायण और महाभारत काल से ही है छठ मनाने की परंपरा, जानें महत्व
महाभारत काल से ही छठ या सूर्य पूजा की जाती है और कहा जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और कहा जाता है कि वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे।
अंशुमान तिवारी
लखनऊ: बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और देश के कई अन्य हिस्सों में दीपावली के बाद बुधवार से लोक आस्था के महापर्व छठ की छटा बिखरेगी। भगवान सूर्य के उपासना के इस पर्व को सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इसमें सूर्य की कृपा प्राप्त करने के लिए उनकी उपासना की जाती है। सूर्य उपासना के इस महापर्व को मनाने की परंपरा रामायण और महाभारत काल सही रही है।
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अब पूरे देश में दिखने लगी पर्व की महत्ता
पहले यह पर्व बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही मनाया जाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे पूरे देश में इस पर्व की महत्ता दिखने लगी है। दिल्ली, कोलकाता और मुंबई जैसे महानगरों में भी इस पर्व के मौके पर श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ता है। छठी षष्ठी का अपभ्रंश है और श्रद्धालुओं में यह छठ के नाम से ही प्रसिद्ध है।
कार्तिकी छठ ज्यादा लोकप्रिय
वैसे साल में दो बार छठ पर्व मनाया जाता है। पहली बार छठ पर्व चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाया जाता है और इसे चैती छठ भी कहा जाता है। साल में दूसरी बार कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। चैती छठ की अपेक्षा कार्तिकी छठ ज्यादा बड़े पैमाने पर मनाया जाता है और यह श्रद्धालुओं में काफी लोकप्रिय है।
द्रोपदी ने भी किया था छठ का व्रत
छठ पर्व को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार महाभारत काल में द्रौपदी ने छठ व्रत किया था। इस कथा के अनुसार जब पांडव जुए के दौरान अपना सारा राजपाट हार गए तब द्रौपदी ने छठ का व्रत किया था। मान्यता है कि छठ व्रत करने से ही द्रोपदी की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं और पांडव राजपाट वापस पाने में भी कामयाब रहे।
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रामराज्य की स्थापना के लिए व्रत
एक और पौराणिक कथा के अनुसार लंका के राजा रावण का वध करने के बाद अयोध्या लौटने पर भगवान श्रीराम और माता सीता ने भी रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और भगवान सूर्य की पूजा अर्चना की थी।
भगवान सूर्य के अनन्य भक्त थे कर्ण
एक अन्य मान्यता के अनुसार महाभारत काल से ही छठ या सूर्य पूजा की जाती है और कहा जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और कहा जाता है कि वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे। कर्ण को अर्जुन की टक्कर का धनुर्धारी माना जाता था और मान्यता है कि सूर्य की कृपा से ही उन्हें महान योद्धा बनने में कामयाबी मिली थी।
इस बार नक्षत्रों का शुभ संयोग
भगवान भास्कर की उपासना का महापर्व छठ के नहाय- खाय के साथ आज सू शुरू हो रहा है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ होकर व्रत का समापन शुक्ल पक्ष की सप्तमी 21 नवंबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होगा। जानकारों के मुताबिक छठ पूजा पर इस बार ग्रह नक्षत्रों का बहुत ही शुभ संयोग निर्मित हो रहा है। इस योग में पूजन से सुख शांति बनी रहेगी और अभीष्ट की प्राप्ति होगी।
21 नवंबर को होगा व्रत का पारण
छठ महापर्व के पहले दिन नहाय- खाय के साथ महापर्व आरंभ हो जाएगा। खरना 19 नवंबर को होगा जबकि 20 नवंबर को अस्ताचलगामी सूर्य को प्रथम अर्घ्य दिया जाएगा । वही 21 नवंबर को प्रातःकाल की बेला में उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा।
चार दिवसीय महापर्व पर भगवान सूर्य के साथ माता षष्ठी देवी की भी पूजा-अर्चना का विधान है। छठ महापर्व के पहले दिन नहाय-खाय के साथ लौकी की सब्जी, चने की दाल और हाथ की चक्की से पीछे हुए गेहूं के आटे की पूड़ियां खाई जाती हैं। 19 नवंबर को शाम को स्नान के बाद नए चावल से बने गुड़ की खीर का प्रसाद ग्रहण किया जाएगा।
छठ व्रत का मुख्य प्रसाद है ठेकुआ
छठ व्रत का मुख्य प्रसाद ठेकुआ है। ठेकुआ आटा, गुड़ और देसी घी से बनाया जाता है। छठ व्रत का प्रसाद तैयार करने में साफ सफाई का काफी ध्यान रखा जाता है। काफी संख्या में श्रद्धालु मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर भी प्रसाद बनाते हैं। ऋतु फल में नारियल, केला, सेब, अनार, पपीता, कंद, सिंघाड़ा, शरीफा, संतरा, अनन्नास, नींबू, हल्दी, कोहड़ा, मूली, पान, सुपारी आदि का सामर्थ्य के अनुसार गाय के दूध के साथ अर्घ्य दिया जाता है।
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