Kerala Election 2021: केरल में ईसाई समुदाय बदल सकता है भाजपा की डगर

2016 में लेफ्ट गठबंधन वाली सीपीएम को 56 सीटें, सीपीआई को 19, जनता दल (सेक्युलर) पार्टी को 3 और एनसीपी को 2 सीटें मिलीं थीं। वहीं यूडीएफ गठबंधन वाली कांग्रेस को 22 सीटें, आईयूएमएल को 18 और केरल कांग्रेस (एम) को 6 सीटें मिलीं थीं।

Update: 2021-02-27 06:53 GMT
मिथुन चक्रवर्ती ने जब से आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की है। तभी से ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि वे भाजपा में शामिल हो सकते हैं।

नीलमणि लाल

लखनऊ: केरल में पारंपरिक रूप से कांग्रेस और कम्यूनिस्टों के बीच सत्ता का संघर्ष रहा है जबकि भाजपा ने बीते दो दशकों से यहां राजनीतिक पैठ बनाने की पुरजोर कोशिशें की हैं। इस सुदूर दक्षिणी राज्य में कुल 140 विधानसभा सीटें हैं और यहां 6 अप्रैल को विधानसभा चुनाव होने हैं। 2016 में हुए विधानसभा चुनावों में सीपीएम के नेतृत्व वाले गठबंधन एलडीएफ ने 91 सीटों पर जीत दर्ज की थी और सरकार बनाई। जबकि कांग्रेस के नेतृत्व में यूडीएफ गठबंधन को 47 सीटें मिलीं थीं।

किसको कितनी सीटें

2016 में लेफ्ट गठबंधन वाली सीपीएम को 56 सीटें, सीपीआई को 19, जनता दल (सेक्युलर) पार्टी को 3 और एनसीपी को 2 सीटें मिलीं थीं। वहीं यूडीएफ गठबंधन वाली कांग्रेस को 22 सीटें, आईयूएमएल को 18 और केरल कांग्रेस (एम) को 6 सीटें मिलीं थीं। एक तीसरा गठबंधन भाजपा का भी था लेकिन उसमें से किसी भी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी, बस भाजपा को ही वहां एक सीट मिल सकी थी।

भाजपा की दिक्कतें

भाजपा के लिए केरल में मुश्किल होने के कई कारण हैं। केरल में 45 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिम और ईसाईयों की है और करीब 55 प्रतिशत हिंदू हैं। यहां के हिन्दू वर्ग में सीपीआई, सीपीएम और कांग्रेस का प्रभाव रहा है सो यही दल वोट ले जाते हैं। दूसरी तरफ मुस्लिम और ईसाई भाजपा को लेकर अच्छी राय नहीं रखते सो भाजपा को चुनावी फायदा नहीं मिल पाता है।

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राहुल लगा रहे जोर

इस चुनाव में कांग्रेस पूरा जोर लगा रही है। राहुल गांधी ने केरल के लिए उत्तर भारत तक को दांव पर लगा दिया है। लेकिन मौजूदा समीकरण में एलडीएफ भारी पड़ता नजर आ रहा है। लेफ्ट गठबंधन को पंचायत, नगरपालिका और नगर निगमों तीनों चुनावों में बहुमत मिला है। ऐसे में कांग्रेस की पताका लहराने का रास्ता बहुत आसान नजर नहीं आता।

लेफ्ट मजबूत स्थिति में

दिसंबर में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में एलडीएफ ने 40.2 फीसदी वोट हासिल किए थे जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 37.9 फीसदी वोट हासिल किए। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को 15 फीसद वोट मिले थे। भले ही कांग्रेस को निकाय चुनावों में बहुमत न मिला हो लेकिन वोट प्रतिशत ठीक-ठाक मिला है और मामला करीबी रहा था। अब सवाल यही है कि क्या केरल का पुराना वोटिंग ट्रेंड कांग्रेस की मदद करेगा?

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हिन्दू मुस्लिम समीकरण

केरल में 55 फीसदी हिन्दू हैं लेकिन केरल में हिंदुत्व कार्ड उस तरह काम नहीं करता जैसे देश के बाकी हिस्सों में करता रहा है। केरल के हिन्दू मतदाता लेफ्ट और कांग्रेस को वोट करते हैं। अगर भाजपा ध्रुवीकरण करने में सफल भी हुई, तब भी उसे इन 55 प्रतिशत वोटों में से कितने ही वोट मिल सकेंगे ये बड़ा सवाल है।

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ईसाई समुदाय और भाजपा

भाजपा को केरल जीतने के लिए मुस्लिम और ईसाई वोटरों की जरूरत है। इस बार कुछ ईसाई समूहों में केरल में मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या से चिंता है, इसलिए वे भाजपा की तरफ कुछ सकारात्मक भी हैं।

केरल के एक कैथलिक चर्च ने तो लव जिहाद का मुद्दा उठाते हुए ये भी कहा था कि साजिशन ईसाई लड़कियों को इस्लामिक स्टेट के हाथों बेचा जा रहा है, उन्हें मुसलमान बनाया जा रहा है। जनवरी में ही केरल के कुछ पादरी प्रधानमंत्री मोदी से भी मिले थे। इन कुछ कारणों से लग रहा है कि ईसाई मतदाता भाजपा के प्रति नरम हुए हैं।

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